Darbhanga News : कुलपति ने कहा, बाल्यकाल से ही संस्कृत शिक्षा जरूरी
देशद्रोह अशांति आतंकवाद भ्रष्टाचार नाड़ी उत्पीड़न समेत अन्य अमानवीय कृत्यों से दूर रखने में इसका साहित्य काफी समर्थ है। मातृ देवो भव पितृ देवो भवआचार्य देवो भव आचार परमो धर्म समेत सैकड़ों संस्कृत वाक्य मानवाधिकार एवम कर्तव्यों की रक्षा के साथ चारित्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
दरभंगा, जासं। संस्कृत एवम संस्कृति के माध्यम से हमारा देश सम्पूर्ण विश्व के चारित्रिक शिक्षा का केंद्र रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम के साथ स्वदेशो भुवनत्रयम का उदघोष करने वाले संस्कृत साहित्य की ओर आज सभी आशाभरी नजरों से देख रहा है। देशद्रोह, अशांति, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नाड़ी उत्पीड़न समेत अन्य अमानवीय कृत्यों से दूर रखने में इसका साहित्य काफी समर्थ है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव,आचार्य देवो भव, आचार: परमो धर्म: समेत सैकड़ों संस्कृत वाक्य मानवाधिकार एवम कर्तव्यों की रक्षा के साथ चारित्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। बस आवश्यकता है इन आदर्शों से समाज को अवगत कराने के लिए संस्कृत का समावेश प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में ही हो।यानी बाल्यकाल से ही संस्कृत शिक्षा बेहद जरूरी है।ऐसा कर हम बेशक सामाजिक व मानवीय कुरीतियों से छुटकारा पाने में सफल होंगे।
रविवार को संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित सीनेट की 44वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए विद्वान कुलपति डॉ. शशिनाथ झा ने अपने अभिभाषण में उक्त बातें कही। उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि लगे हाथ कुलपति ने अफसोस जताया कि बावजूद इसके संस्कृत भाषा व साहित्य के प्रति समाज में उदासीनता व्याप्त है जो हमसभी के लिए चिंता का व्यापक सबब बना हुआ है।जनता चरित्र शिक्षा के बजाय सिर्फ व्यावसायिक शिक्षा को महत्व देने में लगी है।
समाज में यह दुर्भावना आम हो गयी है कि संस्कृत मात्र पूजा पाठ की भाषा है और इसमें अर्थोपार्जन की संभावनाएं कम है। आधुनिक विद्या की अपेक्षा इसमें रोजगार के अवसर काफी कम हैं जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल ही इतर है।हमें समाज को समझाना होगा कि संस्कृत वांगम्य हमेशा सुसमृद्ध व सर्वगुण सम्पन्न है।इसमें आज भी नवनिर्माण की शक्ति अक्षुण्ण है। संस्कृत साहित्य में वर्तमान विज्ञान,चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र,गणित आज भी विशेषज्ञों का मार्गदर्शन करने में समर्थ है।यानी कि संस्कृत में स्वरोजगार की संभावनाएं किसी भी अन्य भाषाओं से अधिक है। सीनेट की बैठक में पूर्व मंत्री डॉ. मदन मोहन झा, पूर्व एमएलसी दिलीप कुमार चौधरी, बेनीपुर विधायक विनय कुमार चौधरी समेत कई सीनेट सदस्य मौजूद थे।