मुजफ्फरपुर में बनेगा तिलापिया मछली का प्रजनन केंद्र, चल रही यह तैयारी
प्रायोगिक स्तर पर किए गए इसके पालन में सफलता मिलने के बाद मात्स्यिकी महाविद्यालय ढोली मुजफ्फरपुर ने यह निर्णय लिया है। यहां प्रजनन केंद्र खोलने पर करीब 50 लाख खर्च होंगे। यह सूबे का पहला केंद्र होगा जहां तिलापिया मछली के बीज का उत्पादन होगा।
बेतिया (पश्चिम चंपारण), शशि कुमार मिश्र। केरल व विदेशों में बड़े पैमाने पर उत्पादित की जाने वाली तिलापिया मछली का प्रजनन केंद्र मुजफ्फरपुर में बनेगा। प्रायोगिक स्तर पर किए गए इसके पालन में सफलता मिलने के बाद मात्स्यिकी महाविद्यालय ढोली, मुजफ्फरपुर ने यह निर्णय लिया है। यहां प्रजनन केंद्र खोलने पर करीब 50 लाख खर्च होंगे। यह सूबे का पहला केंद्र होगा, जहां तिलापिया मछली के बीज का उत्पादन होगा।
राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड, हैदराबाद ने सूबे की आबोहवा के अनुसार तिलापिया मछली के उत्पादन का अध्ययन करने की जिम्मेदारी डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के अधीन ढोली मात्स्यिकी महाविद्यालय को बीते साल दी थी। यहां के मत्स्य विज्ञानियों के निर्देशन में पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर व समस्तीपुर के 17 मत्स्यपालकों के यहां प्रयोग के तौर पर इसका पालन कराया गया था। एक साल तक चले प्रयोग के बाद मई में आए इसके नतीजे उत्साहजनक रहे। अध्ययन के दौरान सात माह में इस मछली का उत्पादन एक हेक्टेयर के तालाब में 4395.79 किलोग्राम हुआ है। लागत करीब तीन लाख रुपये आई। कुल मछलियों की बिक्री से छह लाख रुपये मिले। जाड़े के मौसम में भी इसकी ग्रोथ अच्छी दिखी। वहीं रोहू व कतला जैसी मछलियों के पालन से एक हेक्टेयर में दो से ढाई लाख की आमदनी होती है। एक हेक्टेयर में इनका उत्पादन तकरीबन तीन हजार किलो होता है। अध्ययन के दौरान मछली का पालन करने वाले बेतिया के रामनगर निवासी फिरोज अनवर व सुमित कुमार सिंह के अनुसार प्रायोगिक तौर पर पालन के लिए छह से आठ माह का समय निर्धारित किया गया था। तीन माह में ही एक ग्राम की मछली सौ ग्राम की हो गई।
यह है इस मछली की खासियत
यह मछली उथले जल में रहना पसंद करती है। इसका पालन किसान धान के खेत में भी कर सकते हैं। इसका पालन अन्य देसी मछलियों के साथ किया जा सकता है। इसमें तीव्र प्रजनन क्षमता होती है। पांच-छह माह में ही लैंगिक रूप से परिपक्व हो जाती है। मादा की प्रजनन क्षमता उसके शरीर के भार के अनुरूप होती है। एक सौ ग्राम वाली तिपालिया करीब 100 अंडे देती है। मछली में बीचोंबीच एक ही कांटा होता है। यह स्वादिष्ट होती है। मत्स्य विज्ञानी डा. शिवेंंद्र कुमार के अनुसार यहां प्रजनन केंद्र खोलने के लिए राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड को प्रस्ताव भेजा जा रहा है। स्वीकृति के बाद काम शुरू होगा। इससे सूबे में इस मछली का पालन व्यापक रूप से हो सकेगा। अभी इस मछली का बीज छत्तीसगढ़ के रायपुर से आता है।