आसान शिकार के चक्कर में आलसी होते जा रहे पश्चिम चंपारण के वीटीआर के बाघ व तेंदुए

वीटीआर में बाघ एवं तेंदुए जंगली जानवरों की जगह पालतू पशुओं का शिकार कर रहे हैं। एक साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 500 से अधिक बकरियों व अन्य जानवरों का शिकार कर चुके हैं। वीटीआर के वनवर्ती गांवों में लगातार पालतू जानवरों की संख्या बढ़ रही है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 08:40 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 08:40 AM (IST)
आसान शिकार के चक्कर में आलसी होते जा रहे पश्चिम चंपारण के वीटीआर के बाघ व तेंदुए
परंपरागत शिकार को छोड़कर पालतू पशुओं के शिकार में ले रहे दिलचस्पी। फाइल फोटो

बगहा, जासं।आसान शिकार के चक्कर में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के बाघ एवं तेंदुए अब आलसी हो गए हैं। उनका परंपरागत भोजन भी बदलने लगा है। वीटीआर में बाघ एवं तेंदुए जंगली जानवरों की जगह पालतू पशुओं का शिकार कर रहे हैं। एक साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 500 से अधिक बकरियों व अन्य जानवरों का शिकार कर चुके हैं। वीटीआर से जुड़े जानकारों की मानें तो वीटीआर के वनवर्ती गांवों में लगातार पालतू जानवरों की संख्या बढ़ रही है। बीते कुछ साल की तुलना में लगातार इजाफा हो रहा है। लगभग 900वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले वीटीआर में 40 से अधिक बाघ के अलावा तेंदुआ, भालू, हिरन, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर सहित कई तरह के वन्य जीव मौजूद हैं। पहले बाघ एवं तेंदुए अपने भोजन के लिए वन्य जीवों का शिकार बड़े पैमाने पर करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ अब बाघ एवं तेंदुए का टेस्ट भी बदलने लगा है। वे सॉफ्ट टारगेट (पालतू पशुओं) को अपना शिकार बना रहे हैं। इसका एक कारण वीटीआर के वनवर्ती क्षेत्र में पालतू पशुओं की बढ़ती हुई संख्या भी है। वहीं, पालतू पशुओं का शिकार करने के लिए बाघ एवं तेंदुए को अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

गायों व भैसों को चरने के लिए खुले में छोड़ देते पशुपालक

वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो वीटीआर क्षेत्र से सटे गांवों के लोग अपनी गायों और भैंसों को चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं। बाघ द्वारा पशुओं का शिकार करने पर वीटीआर प्रशासन की तरफ से उनको मुआवजा दिया जाता है। इसलिए लगातार पालतू जानवरों की शिकार की घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रकृति प्रेमी मनोज कुमार की मानें तो बाघ एवं तेंदुए का परंपरागत शिकार हिरण काफी फुर्तीले होते हैं। हिरण की दौड़ने की गति लगभग 85 किलोमीटर प्रति घंटा की होती है। जबकि बाघ की गति सर्वाधिक 60 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। वहीं आलसी व बूढ़े हो चले बाघ एवं तेंदुए के समक्ष पालतू जानवर का शिकार एक मात्र विकल्प है। इन उम्रदराज हिंसक वन्य जीवों को काफी मशक्कत करने के बाद भी कभी कभार इनके हाथ निराशा ही लगती है। वीटीआर क्षेत्र में अन्य जगहों की तुलना में पालतू जानवरों की संख्या अधिक है। इसलिए यहां पालतू जानवरों पर हमले की घटनाएं भी अन्य जगहों की तुलना में ज्यादा होती हैं। 

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