नमो देव्यै महा देव्यै : मुजफ्फरपुर की इस महिला ने पहले अपने को साबित किया अब युवतियों को दिखा रहीं राह
दो दशक से समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान दे रहीं किरण शर्मा। खेल कला-संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्र में जगा रहीं अलख। युवा स्वयंसेवी संस्था युग सृजन के माध्यम से उन्होंने शहरी एवं ग्रामीण युवतियों को शिक्षा के साथ खेल एवं कला-संस्कृति में आगे बढऩे को प्रेरित किया।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। ऐसी महिला जिन्होंने सेवा भावना एवं प्रतिभा के बल पर पहले अपने को साबित किया और अब युवतियों को राह दिखा रही हैं। खेल, कला-संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्र में उड़ान भरने को आतुर प्रतिभाओं को मंच प्रदान कर रही हैं। नाम है किरण शर्मा। दो दशक से समाज सेवा के क्षेत्र में मिसाल पेश कर रही हैं।
चारों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर स्थापित किया
खरौना निवासी विजय चौधरी की पत्नी एवं ब्रजनंदन चौधरी विंदा देवी महाविद्यालय की प्राचार्या किरण शर्मा चार बेटियों की मां हैं। चारों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर स्थापित किया। सबसे बड़ी बेटी खुशबू जहां एसोसिएट चिकित्सक हैं, वहीं सबसे छोटी बेटी सपना एमबीबीएस कर दिल्ली में अपनी सेवा दे रही है। अन्य दो बेटियां स्वाती एमबीए एवं स्नेहा बीटेक कर चुकी हैं। बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने के साथ-साथ किरण शर्मा ने दो दशक पूर्व समाजसेवा की राह पकड़ी। युवा स्वयंसेवी संस्था युग सृजन के माध्यम से उन्होंने शहरी एवं ग्रामीण युवतियों को शिक्षा के साथ-साथ खेल एवं कला-संस्कृति के क्षेत्र में आगे बढऩे को प्रेरित किया। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि जिले की कई खिलाड़ी एवं कलाकार राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रही हैं। संस्था के माध्यम से स्लम क्षेत्रों के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने के लिए बीस केंद्रों की स्थापना की। महिलाओं को कानूनी रूप से जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया। महिलाओं को उनके अधिकार से अवगत कराया।
बचपन से थी कुछ कर गुजरने की तमन्ना
किरण शर्मा बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में कुछ करने की तमन्ना थी। पिता महेंद्र सिंह ने उनका साथ दिया। उन्होंने पताही नौराष्ट्र विद्यालय से मैट्रिक, एमडीडीएम कॉलेज से वनस्पति शास्त्र में बीएससी एवं बिहार विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री हासिल की। वर्ष 1980 में उनकी शादी खरौना निवासी विजय चौधरी से हो गई। शादी के बाद भी उनके अंदर की सेवा भावना नहीं मरी। पति का साथ मिला और वह अपने सपने को साकार करने में लग गईं। वर्ष 2006 में उन्हें जिला परिषद सदस्य के रूप में सेवा करने का मौका मिला। लेकिन राजनीति उन्हें रास नहीं आई और उन्होंने फिर से समाजसेवा की राह पकड़ ली। आज भी उसी राह पर चल रही हैं।