East Champaran: नक्सल प्रभावित फिजां में सरपट दौड़ रही अमन व शांति की गाड़ी
चमचमाती सड़कों पर दौड़ती रही प्रशासनिक गाडिय़ां कुछ जगहों पर भले ही छोटी-मोटी घटनाएं हुई हैं लेकिन सभी बूथों पर लोकतंत्र का मेला था। बूथों पर लगी लंबी-लंबी कतारें वोट देने की चाहत भारत के सर्वश्रेष्ठ लोकतांत्रिक देश होने का सबूत पेश कर रही थी।
पूर्वी चंपारण, {अनिल तिवारी}। मधुबन से फेनहारा तक की सड़क अतीत व वर्तमान का आइना है। पहले कभी जहां सड़कों का अस्थिपंजर दिखता था आज वह चकाचक है। नक्सल के बारूदी गंध से दूषित आबोहवा में आज अमन व शांति की बयार बह रही है। जिले में निचले स्तर पर लोकतंत्र की बहाली के लिए पंचायत चुनाव का आगाज भी इसी इलाके से हुआ है। कहने को यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा, लेकिन इस चुनावी प्रक्रिया में वे हवा रहे। कुछ जगहों पर भले ही छोटी-मोटी घटनाएं हुई हैं, लेकिन सभी बूथों पर लोकतंत्र का मेला था।
बूथों पर लगी लंबी-लंबी कतारें और घंटों अपनी बारी का इंतजार करने के बाद भी उनके अंदर वोट देने की चाहत भारत के सर्वश्रेष्ठ लोकतांत्रिक देश होने का सबूत पेश कर रही थी। पहले से जहां शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराना प्रशासन के लिए चुनौती हुआ करता था, वहीं आज उन क्षेत्रों में चुनाव उत्सव के माङ्क्षनद मनाए जाने लगे हैं। दूसरे चरण के तहत बुधवार को संपन्न हुए मधुबन, तेतरिया व राजेपुर कभी नक्सल गतिविधियों के लिए जाने जाते थे। लेकिन अब परिस्थिति पूरी तरह बदल गई है। अब यहां के लोगों को भी विकास की बयार भाने लगी है। लोगों को अब नक्सलियों के झूठे वादों से ज्यादा सरकार के विकास वाली नीतियां पसंद आने लगी हैं। मधुबन जहां वर्ष 2005 में नक्सलियों ने दिन दहाड़े उत्पात मचाया था, वहां लोकतंत्र के महापर्व में लोगो ने भारी संख्या में हिस्सा लिया। कभी जिन इलाकों की पहचान टूटी-फूटी सड़कें व नक्सल कांडों से होती थी, वहां आज प्रशासन की गाडिय़ां पूरे दिन सरपट दौड़ती रहीं।
इन क्षेत्रों की चकमक सड़कें विकास की गाथा कहती प्रतीत होती हैं। विकास की रोशनी पहुंचने के साथ ही अब इन क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों का पूरी तरह सफाया हो गया है। राजेपुर निवासी ललन प्रसाद बताते हैं कि अब यहां ङ्क्षहसा नही बल्कि विकास का सिक्का चलता है। लोगों को रोजी रोजगार व शिक्षा चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि लोकतंत्र के हाथ को मजबूत किया जाए। वहीं फेनहारा के रामदेव भगत बताते हैं कि अब चीजें बदल गई हैं। नई पीढ़ी को बेहतर शिक्षा व रोजगार चाहिए। कोई भी ङ्क्षहसा के रास्ते पर अब नही चलना चाहता। ङ्क्षहसा व रक्तपात के दौर का दंश हमने झेला है। आने वाली पीढ़ी के साथ अन्याय न हो इसके लिए उन्होंने विकास के नाम पर अपना वोट दिया है। प्रतिमा कुमारी कहती हैं कि अब हम किसी के बहकावे में नही आने वाले। विकास से इतर कुछ भी मंजूर नही।