भिंडी तोड़ते समय होने वाली खुजली ने परेशान कर रखा है तो बिहार के वैज्ञानिक ने ढूंढ़ लिया है समाधान, जानें

समस्तीपुर के पूसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक। अब मशीन की मदद से भिंडी की तोड़ाई करना होगा संभव। इस मशीन का वजन 272 ग्राम है। यह एक घंटे में 13.64 किलोग्राम भिंडी तोडऩे में सक्षम है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 01:34 PM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 01:34 PM (IST)
भिंडी तोड़ते समय होने वाली खुजली ने परेशान कर रखा है तो बिहार के वैज्ञानिक ने ढूंढ़ लिया है समाधान, जानें
दो साल की मेहनत के बाद बनाई हस्तचालित मशीन। फोटो- जागरण

पूसा (समस्तीपुर), [पूर्णेंदु कुमार]। भिंडी की सब्जी खाने में तो अच्छी लगती है, लेकिन इसे तोडऩे में काफी परेशानी होती है। इसके महीन रेशों से हाथों में खुजली होने के साथ तोडऩे में समय भी लगता है। व्यावसायिक खेती में किसानों को भिंडी तोड़ाई के लिए मजदूर रखने पड़ते हैं। इस पर अच्छी-खासी राशि खर्च करनी पड़ती है। इन परेशानियों से छुटकारा दिलाने के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने तकनीक विकसित की है। यहां कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय से जुड़े विज्ञानियों ने भिंड़ी की तोड़ाई के लिए हस्तचालित यंत्र बनाया है। इससे किसानों को सहूलियत होगी। महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. अमरीश कुमार के नेतृत्व में विज्ञानियों की टीम ने दो साल तक काम कर इसमें सफलता पाई है। 

एक घंटे में 13.64 किलोग्राम भिंडी तोडऩे में सक्षम

यंत्र में ब्लेड, कलेक्टर, बाक्स, फ्लैपर एवं लीवर का इस्तेमाल किया गया है। इस मशीन का वजन 272 ग्राम है। यह एक घंटे में 13.64 किलोग्राम भिंडी तोडऩे में सक्षम है। इसके बाक्स में भिंडी रखने की क्षमता 250 से 300 ग्राम तक है। मशीन बनाने में 200 रुपये का खर्च आता है। विज्ञानी डा. पीके प्रणव का कहना है कि भिंडी तोड़ाई के समय स्टोर करने के लिए चौड़े मुंह वाला एक थैला रखना होगा।

आटा चक्की का हो रहा व्यावसायिक निर्माण

ईं. सुभाष चंद्रा का कहना है कि भिंडी तोडऩे वाली मशीन के पेटेंट के लिए दो-तीन कंपनियों से बात चल रही है।

लागत के अनुरूप कीमत तय की जाएगी। इससे पूर्व आटा चक्की बनाई गई थी, उसका पेटेंट हो गया है। बिहारशरीफ की किसान एग्रो नामक कंपनी उस तकनीक पर चक्की का व्यावसायिक निर्माण कर रही है। विज्ञानी का कहना है कि कृषि कार्यों में जरूरत और सहूलियत को देखते हुए यंत्रों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए कृषि यंत्र प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू किया गया है। मजदूरों की किल्लत और कृषि को लाभकारी बनाने के लिए यंत्रों को बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

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