मुजफ्फरपुर में स्वास्थ्य विभाग की बहाली में गड़बड़ी की जांच की आंच सिविल सर्जन तक

डीएम को दी गई जांच रिपोर्ट में कहा गया बिना प्रक्रिया के हुई बहाली रद होने की संभावना। न विज्ञापन प्रकाशित हुई न मेरिट लिस्ट बनी और पूरे आवेदनों को ही पंजीकृत भी नहीं किया गया। इस बहाली को जांच टीम ने पूरी तरह गड़बड़ माना है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 11:44 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 11:44 AM (IST)
मुजफ्फरपुर में स्वास्थ्य विभाग की बहाली में गड़बड़ी की जांच की आंच सिविल सर्जन तक
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सिविल सर्जन ने पूरी बहाली की जिम्मेदारी अकेले संभाली थी।

मुजफ्फरपुर, जासं। जिले के स्वास्थ्य विभाग में सैकड़ों पदों पर हुई बहाली में गड़बड़ी को लेकर सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी पर आंच आ गई है। डीएम प्रणव कुमार को दी गई जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सिविल सर्जन ने पूरी बहाली की जिम्मेदारी अकेले संभाली थी। जबकि इसके लिए कमेटी होनी चाहिए थी। रिपोर्ट के अनुसार बहाली के लिए किसी तरह का विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया गया। वहीं जितने आवेदन आए उसे पंजीकृत तक नहीं किया गया। जैसे-तैसे बहाली कर दी गई। इस बहाली को जांच टीम ने पूरी तरह गड़बड़ माना है। इसे देखते हुए बहाली के रद होने की संभावना है।

मालूम हो कि कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए सरकार ने कोविड-19 के मरीजों के इलाज को लेकर मानव बल बढ़ाने के निर्देश सभी जिलों को दिए थे। जिन अस्पतालों में कोरोना मरीजों का इलाज हो रहा था वहां के लिए विभिन्न पदों पर तीन माह के लिए कर्मियों की बहाली की जानी थी। जिले में हुई बहाली में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायत डीएम से की गई। इसकी जांच डीडीसी डॉ. सुनील कुमार झा और अपर समाहर्ता राजेश कुमार के नेतृत्व वाली दो टीमों से कराई गई। जांच टीम ने पाया कि बहाली के लिए कोई मापदंड ही तय नहीं किया गया था। इसके लिए जहां एक कमेटी बनाई जानी चाहिए थी वहां सिविल सर्जन ने खुद सारी शक्ति ले ली। इसके बाद सारे नियमों को ताक पर रखकर कर्मियों की बहाली कर दी गई।

अखबार में विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया गया। जो बहाली प्रक्रिया का पहला मापदंड होना चाहिए था। इतना ही नहीं जितने आवेदन आए उसे जैसे का तैसे छोड़ दिया गया। इस कारण योग्य अभ्यर्थियों के आवेदन देखे तक नहीं गए। ऐसे में यह बहाली में प्रक्रिया का पालन तो नहीं ही हुआ, पारदर्शिता भी शक के घेरे में है। सरकार ने कोरोना के इलाज को लेकर तीन माह के लिए कर्मियों की बहाली का आदेश जारी किया था। जिले में सरकारी अस्पतालों में सिर्फ सदर अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों का इलाज हो रहा है। प्रखंडों में पीएचसी, सीएचसी या रेफरल अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज नहीं हो रहा था। इसे देखते हुए सिर्फ सदर अस्पताल के लिए मानव बल की संख्या बमुश्किल एक से दो दर्जन हो सकती थी। ऐसे में करीब सात सौ की बहाली को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पीएचसी के लिए भी यह बहाली कर दी गई जबकि वहां कोरोना मरीजों का इलाज नहीं चल रहा। ऐसे में बहाली में करोड़ों रुपये के खेल की शिकायत में दम लग रहा है।

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