बापू की कर्मभूमि चंपारण में फिर से गूंजेगी चरखे की घुर-घुर की आवाज

90 के दशक तक यहां करीब 2000 से ज्यादा लोग रोजगार पाते थे। इसके बाद अब इनकी संख्या घटकर 100 पर सिमट कर रह गई है। फिलहाल चकिया के रामडीहा में छोटे पैमाने पर सूत व रेशम का उत्पादन हो रहा है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 09:44 AM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 01:40 PM (IST)
बापू की कर्मभूमि चंपारण में फिर से गूंजेगी चरखे की घुर-घुर की आवाज
योजना के अंतर्गत पूर्वी चम्पारण जिले में प्राप्त हो रही चरखा व अन्य मशीनें।

मोतिहारी,(पूर्वी चम्पारण), जासं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि चम्पारण में इतिहास बन चुकी चरखे की आवाज एक बार फिर गूंजायमान होगी। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की केआरडीपी योजना से इसकी उम्मीद जगी है। इस योजना के तहत जिले में चरखा व अन्य मशीनें प्राप्त हुई हैं। हाल ही में करघा की भी आपूर्ति हुई है। आने वाले दिनों में कुछ और सुविधाएं उपलब्ध होने की उम्मीद है। गौरतलब हो कि 90 के दशक के शुरुआती सालों तक ढाका के मधुबनी आश्रम, चैनपुर, कुशमहवा, भंडार, बड़कागांव सहित दर्जनों जगहों पर सूत कातने का काम होता था। 90 के दशक तक यहां करीब 2000 से ज्यादा लोग रोजगार पाते थे। इसके बाद अब इनकी संख्या घटकर 100 पर सिमट कर रह गई है। फिलहाल, चकिया के रामडीहा में छोटे पैमाने पर सूत व रेशम का उत्पादन हो रहा है। चिरैया के मदन प्रसाद बताते हैं कि सूत कातना कभी उनका पुश्तैनी रोजगार होती थी। लेकिन अब मजबूरी में वे खुद सब्जी बेचने का काम करते हैं। ऐसे सैकड़ो परिवार हैं जो मजबूरी में या तो पलायन कर गए अथवा स्थानीय स्तर पर किसी अन्य रोजगार में लग गए हैं। सूत कातने में दक्ष उंगलियां कही सब्जी तौल रही हैं तो कही ईंट पाथ रही हैं। मगर, सरकार के नये प्रयास से इस ओर एक बार फिर बेहतरी की नई किरण देखने को मिल रही है। गांधी जी की आत्मा एक बार फिर इस खादी के उत्पादन में देखने को मिल सकता है। गौरतलब हो कि चंपारण जिले के चिरैया स्थित मधुबनी आश्रम में बने खादी वस्त्रों की डिमांड विदेशों तक होती थी। 

मोदी सरकार की नीतियों से जगी है उम्मीद

खादी ग्रामोउद्योग के जिला सचिव अजय कुमार सिंह की मानें तो केंद्र सरकार की तरफ से खादी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पहल की जा रही है। पिछले दिनों केंद्र की केआरडीपी योजना के तहत चरखा व अन्य मशीनें जिले को प्राप्त हुई हैं। जल्द ही करघा भी आने वाला है। जल्द ही चिरैया में कैलेंडरिंग का काम भी शुरू हो जाएगा। इसके शुरू होने से यहां उत्पादित होने वाले सूत व रेशम को फिनिशिंग के लिए बाहर भेजने की जरूरत नही होगी।

जानें चम्पारण में खादी का हाल

जिले में संचालित खादी ग्रामोउद्योग की दुकान

मोतिहारी स्टेशन के पास - 02, मीनाबाजार-01

अरेराज - 01,

चिरैया-01,

घोड़ासहन-01,

मधुबन-01,

तुरकौलिया-01,

छौड़ादानो-01,

रक्सौल-01

साल में 30 लाख तक का माल बिक जाता है। फिलहाल जिले में मात्र 10 लाख रुपये मूल्य के रेशम व तकरीबन 4 लाख मूल्य के कॉटन का उत्पादन ही सालाना हो पा रहा है। 

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