अपने में रहस्य की पूरी दुनिया समेटे है सीतामढ़ी के सुरसंड का स्वर्ण रानी मंदिर

मंदिर की ईंट वाली दीवार के गुंबद आदि की नक्काशी अद्भुत है। रात में निकलनेवाली पायल की झंकार दो किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ती है। लोगों की मानें तो यह आवाज रानी राजवंशी कुंवर की है। मंदिर निर्माण के बाद निर्माता रानी राजवंशी कुंवर ने चार मजदूरों के हाथ कटवाए।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 09:22 AM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 09:22 AM (IST)
अपने में रहस्य की पूरी दुनिया समेटे है सीतामढ़ी के सुरसंड का स्वर्ण रानी मंदिर
रानी ने ताउम्र उन मजदूरों के परिवारों की परवरिश राजकोष से कराई। फोटो- जागरण

सुरसंड (सीतामढ़ी),संस। सुरसंड के ऐतिहासिक रानी मंदिर (स्वर्ण मंदिर) इतिहास के कई अनछुए पहलुओं को अपने में समेटे है। इसके बारे में जानने की उत्सुकता आज भी लोगों को होती है। इस मंदिर को बारे में कई किस्से-कहानियां हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए गए थे। हालांकि इसके दस्तावेज नहीं हैं। गुफा, रात के अंधेरे में निकली रोशनी के बीच गूंजती पायल की झंकार, तहखाना, सीढी़, कबूतर, विषैले सर्प अभी भी रहस्य के घेरे में हैं। मंदिर की ईंट वाली दीवार के गुंबद आदि की नक्काशी अद्भुत है। रात में निकलने वाली पायल की झंकार दो किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ती है। लोगों की मानें तो यह आवाज रानी राजवंशी कुंवर की है।

पांचवें मुगल शहंशाह शाहजहां अपनी न्यायप्रियता और वैभव विलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। किन्तु इतिहास में उनका नाम केवल इस कारण नहीं लिया जाता। शाहजहां का नाम एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर लिया जाता है, जिसने अपनी बेग़म मुमताज के लिए विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल बनाया। और यह इमारत विश्व धरोहर में शामिल होकर दुनिया का सातवां आश्चर्य बन गई। करीब डेढ़ एकड़ भूमि में निर्मित इस मंदिर की कुछ चीजें भी ताजमहल से मिलती-जुलती हैं। मंदिर निर्माण के बाद निर्माता रानी राजवंशी कुंवर ने चार मजदूरों के हाथ कटवा दिए ताकि ऐसा मंदिर कहीं नहीं बन सके। रानी ने ताउम्र उन मजदूरों के परिवारों की परवरिश राजकोष से कराई। मंदिर की पिछली दीवार पर उक्त मजदूरों की प्रतिमाएं इसकी गवाह हैं। यह मंदिर अब केवल रानी मंदिर रह गया है। कारण मंदिर के स्वर्ण मुकुट समेत स्वर्ण धातुओं की या तो चोरी हो गई या फिर दबंगों के कब्जे में है।

विरासत को सहेजने की नहीं दिखती चिंता

मंदिर की अकूत संपत्ति की चर्चा हर जुबान पर है। यहां तहखाने के भीतर जाने पर लौटना मुमकिन नहीं। अंदर जाने वाले विषैले सर्प के शिकार बन जाते। नेपाल से प्रकाशित एक पुस्तक में इस बात का उल्लेख है कि वर्ष 1896 में राजस्थान के स्वामी रामेश्वर दास की यहां सर्पदंश से मौत हो गई। मंदिर की एक सीढी के नीचे और एक ऊपर आने तथा दोनों के परस्पर मिलकर नया रास्ता बनाने की बात भी समझ से परे है। वर्ष 2007 में पूर्व मुखिया शोभित राउत व पूर्व सरपंच गोपाल बारिक ने कार सेवा के जरिए इसके जीर्णोद्धार की पहल की। बहरहाल, मंदिर का पुनरुद्धार करने व इसके रहस्यों से पर्दा हटाने की दरकार है। ताकि, पर्यटको का ध्यान खींचा जा सके। 

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