सुखेत मॉडेल ने दी पूसा के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान

राष्ट्रीय स्तर पर 2001 में पहली बार इस विश्वविद्यालय को कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में इसके प्रभेदों के कारण विश्वसनीयता हासिल हुई थी। 2001 में शक्तिमान 1 एवं शक्तिमान 2 नामक मक्के की किस्म को विकसित किया गया। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 08:06 AM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 08:06 AM (IST)
सुखेत मॉडेल ने दी पूसा के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय मना रहा 51 वां स्थापना दिवस। फाेटो- जागरण

पूसा (समस्तीपुर), [पूर्णेंदु कुमार]। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूरे कर चुका है। 3 दिसंबर 1970 को ही इसकी स्थापना बिहार सरकार के शिक्षा आयोग की अनुशंसा पर की गई थी। इन पचास वर्षों के कार्यकाल के दौरान हमने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों पर एक पड़ताल की तो पाया कि विश्वविद्यालय ने जहां कृषि, कृषि अभियंत्रण, पशुपालन, मत्स्य पालन सामुदायिक विज्ञान एवं जैव तकनीकी से संबंधित उच्च शिक्षा शोध पर बेहतर कार्य किया वहीं सौ से अधिक प्रभेदों को भी विकसित किया। लेकिन सुखेत मॉडेल ने इसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब दिला दी जब प्रधानमंत्री ने मन की बात में इसका उल्लेख किया।

शक्तिमान मक्का से बनी थी विश्वसनीयता

राष्ट्रीय स्तर पर 2001 में पहली बार इस विश्वविद्यालय को कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में इसके प्रभेदों के कारण विश्वसनीयता हासिल हुई थी। 2001 में शक्तिमान 1 एवं शक्तिमान 2 नामक मक्के की किस्म को विकसित किया गया। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसकी सफलता के बाद विश्वविद्यालय ने शक्तिमान 3 ,4 एवं पांच किस्में भी विकसित की। फिर इटालियन मधुमक्खी से मधु उत्पादन की तकनीक विकसित करने, लीची एवं आम के बगीचों की खाली जमीन पर खेती के लिए कृषि उद्यान प्रगति के तहत मिश्रित फसल प्रणाली को विकसित करने के कारण भी इसे खूब वाहवाही मिली। वर्तमान में विश्वविद्यालय के द्वारा 132 किस्में विकसित की गई। इसमें धान की 23, गेहूं की 5 मक्का की 11, अरहर की 3, मूंग की 1, चना की 3, उड़द की एक, शकरकंद की 5, हल्दी की 2, मसूर की एक राय की चार तोरी की दो पीली सरसों की तीन, जामुन की एक, बैगन की दो, कद्दू की एक एवं गन्ने की 22 किस्में सहित कई अन्य फसलों की नई किस्म विकसित की गई।

सुगंधित धान की प्रभेद भी विकसित

विश्वविद्यालय ने विदेश व्यापार के अनुकूल सुगंधित धान की किस्में सुभाषिनी विकसित की। वहीं बोरो धान की उन्नत किस्म गौतम तथा इसके उत्पादन तकनीक भी विश्वविद्यालय ने विकसित की थी। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पूर्व धान की राजेंद्र भगवती, राजेंद्र मंसूरी वन, तुरंता, प्रभात, कनक, सहित कई किस्में विकसित हुई।

कचरे एवं कृषि अवशेष से वर्मी कंपोस्ट तैयार करना

मधुबनी का सुखेत मॉडल ने विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। इसमें कचरा के बदले गैस सिलेंडर देने का विश्वविद्यालय ने तंत्र विकसित किया था। इसे स्वच्छ भारत अभियान का वाहक भी बताया गया। इसी तरह देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के बेल पत्र एवं फूलों से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने, नाव आधारित सोलर पंप सेट, किसानों के साथ मिलकर बीज ग्राम की स्थापना, सोलर प्लेट संचालित मत्स्य बंधु सवारी, भिंडी तोड़ने की यंत्र, आटा चक्की सहित कई उपलब्धियाें को इसने अपने खाते में शामिल कर लिया।

मशरूम ने भी दी ऊंचाई

7 अक्टूबर 2016 को विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित हुआ और इसके विकास में पंख लग गए। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां 8 नए कोर्स की भी पढ़ाई विश्वविद्यालय स्तर पर की गई। शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय के द्वारा पुस्तकालय सुविधा, नवीनतम तकनीक से बना छात्रावास, प्रयोगशाला, सहित विभिन्न अनुसंधान के लिए जैसे पशुपालन मत्स्य क्षेत्र शैक्षणिक उद्यान इत्यादि के लिए अलग क्षेत्र विकसित किए गए। मशरूम की आधा दर्जन से अधिक उत्पाद को विकसित किया गया। लगभग 50,000 से अधिक लोग इस प्रशिक्षण में भाग लेकर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं। 

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