विवि में धूल फांक रहा चार करोड़ का सोलर सिस्टम

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में चार करोड़ रुपये की लागत से छह वर्ष पहले स्थापित सोलर सिस्टम धूल फांक रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 02:33 AM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 02:33 AM (IST)
विवि में धूल फांक रहा चार करोड़ का सोलर सिस्टम
विवि में धूल फांक रहा चार करोड़ का सोलर सिस्टम

मुजफ्फरपुर : बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में चार करोड़ रुपये की लागत से छह वर्ष पहले स्थापित सोलर सिस्टम धूल फांक रहा है। इससे बिजली का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। विवि का सारा कामकाज बिजली और जेनरेटर पर निर्भर हो गया है। विवि को मुख्य प्रशासनिक भवन, परीक्षा भवन, कुलपति आवास, अतिथि गृह, केंद्रीय पुस्तकालय, महिला व पुरुष छात्रावास के साथ ही सभी पीजी विभागों को मिलाकर प्रतिमाह करीब 10 से 12 लाख और कुल मिलाकर सालाना डेढ़ करोड़ रुपये बिजली का बिल भरना पड़ रहा है।

13 नवंबर, 2014 को कुलपति डा. पंडित पलांडे के कार्यकाल में तत्कालीन कुलाधिपति डा. डीवाई पाटिल ने बिहार अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी के सहयोग से 100 किलोवाट क्षमता वाली सौर ऊर्जा परियोजना की आधारशिला रखी थी। 2015 में इसे स्थापित कर बिजली का उत्पादन शुरू किया गया। उस समय सोलर पैनल से मुख्य प्रशासनिक भवन, कुलपति आवास, अतिथि गृह और केंद्रीय पुस्तकालय को जोड़ा गया था। तीन वर्षों तक नियमित संचालन के बाद इसकी देखरेख में लापरवाही की जाने लगी। इसके बाद इसका इस्तेमाल ठप हो गया।

अतिरिक्त ऊर्जा पावर ग्रिड को सप्लाई देने की थी योजना : सौर ऊर्जा परियोजना को शुरू करने के पीछे बिजली बिल का खर्च बचाने के साथ अतिरिक्त बिजली को पावर ग्रिड में देना था। शुरुआत में विवि के चार मुख्य भवनों में इसकी आपूर्ति शुरू कराई गई। कुछ पदाधिकारियों ने एसी को सोलर पैनल से जोड़ दिया। अधिक लोड होने से संयंत्र में गड़बड़ी आने लगी। संयंत्र स्थापित करनेवाली एजेंसी को पांच वर्ष तक मेंटेनेंस करना था। कई बार इसे ठीक भी कराया गया, लेकिन बाद में इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।

विवि को 15 लाख रुपये बिजली बिल में मिलती राहत :

सोलर परियोजना के निवर्तमान समन्वयक डा. संजय कुमार बताते हैं कि यदि 100 किलोवाट ऊर्जा का उत्पादन जारी रहता तो विवि को 14 से 15 लाख रुपये बिजली का बिल कम भरना पड़ता।

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..तो डीजल के नाम पर लगाई जा रही चपत

विवि के पूर्व के अधिकारियों का कहना है कि सोलर पैनल खराब होने के कारण बिजली नहीं होने की स्थिति में जेनरेटर के उपयोग के नाम पर हर महीने हजारों रुपये के डीजल की खरीदारी हो हो रही। बताया जाता है कि डीजल की खपत कम होती है, लेकिन खरीदारी अधिक दिखाई जाती है। इसके नाम पर चपत लगाई जा रही है।

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पैसे की बर्बादी रोके विवि प्रशासन

सीनेटर केशरीनंदन शर्मा का कहना है कि विद्यार्थियों की सुविधा की व्यवस्था करने के समय फंड की कमी बताई जाती है, जबकि सोलर सिस्टम होने के बाद भी बिजली का बिल पर इस तरह खर्च करना नाइंसाफी है। सोलर सिस्टम से उत्पादन क्यों नहीं हो रहा, यह देखना विवि प्रशासन का काम है। इसे अविलंब दुरुस्त कराना चाहिए, ताकि लाखों रुपये की बर्बादी न हो और इस पैसे को छात्र हित में लगाया जाए।

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