Sitamarhi: जिंदगी और मौत के बीच डॉक्टर ही आखरी उम्मीद, उनसे झगड़े नहीं, विश्वास रखें
जिंदगी से जद्दोजहद करती बिटिया के लाचार-विवश पिता का पेश किया उदाहरण पीएमसीएच में डॉक्टर और आईएएस की पत्नी शिखा आनंद ने डॉक्टर और मरीज के भावुक रिश्ते पर डाली रोशनी कहा अटेंडेंट और डॉक्टर्स में विवाद की नौबत ही नहीं आनी चाहिए।
सीतामढ़ी, जासं। पीएमसीएच में सीनियर रेजिडेंट रेडियोलॉजी विभाग डॉ. शिखा आनंद का कहना है कि डॉक्टर भगवान के रूप होते हैं और कोरोना काल में हम उनके इस रूप को देख भी रहे हैं। इसलिए डॉक्टरों के साथ किसी भी सूरत में बुरा सलूक नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसा कि राज्य के सरकारी अस्पतालाें व मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में मरीज, उनके अटेंडेंट से डॉक्टर्स की कहासुनी व बकझक के को लेकर आए दिन हड़ताल होती रहती है। ऐसी नौबत ही नहीं आनी चाहिए। कोरोना काल में डॉक्टर्स की ऑन ड्यूटी मौजूदगी नितांत आवश्यक है। उनके ड्यूटी पर होने मात्र से सुकुन व जान की हिफाजत की अनुभूति होती है। डॉ. शिखा ने कहानी के जरिए डॉक्टर व मरीज के बीच इंसानियत व फर्ज के रिश्ते को बयां करने की कोशिश की है। डॉ. शिखा शहर के कोट बाजार की बहू हैं। उनके पति डॉ. दीपक आनंद आइएएस हैं।
ऑपरेशन थियेटर के बाहर होती लालबत्ती अंदर होता यही फरिश्ता
डॉ. शिखा की कहानी में एक अस्पताल मेें जिंदगी और मौत से जूझती बिटिया की जिंदगी की सलामती की दुआ मांगते पिता के हालात पर रोशनी डालने की कोशिश की है। उन्होंने उस बुजुर्ग पिता के दर्द को उसके ही शब्दों में बयां किया है। कितना मुश्किल होता है न किसी ऑपरेशन थियेटर के बाहर लगी बत्ती के लाल से हरा होने का इंतजार करना। इस ऑपरेशन थियेटर के बाहर एक लाचार और बूढ़ा बाप अपनी बेटी का ऑपरेशन सफल होने की खबर का इंतजार सामने लगे गणेश भगवान की मूर्ति के आगे सिर झुकाए कर रहा था। मन में लाखों सवाल कौंध रहे थे कि क्या होगा। जबकि, होना सिर्फ सफल या असफल ऑरेशन ही था। पर ये मन असफलता स्वीकार करने को तैयार न था। ये सिर्फ वह पिता ही समझ सकता था कि कैसे थरथराते हाथों से उसने ऑपरेशन फार्म पर हस्ताक्षर किया था। इन्हीं उलझनों व कशमकश में एक हल्की सी आवाज सुनाई देती है- ''अब आपकी बेटी खतरे से बाहर है।'' इतना सुना ही था कि दोड़ते हुए गया और उस शख्स जिसे हम भगवान का दूसरा रूप समझते हैं, उनके पैरों को पकड़ कर रोने लगा। शायद यही उस पिता के धन्यवाद करने का तरीका था। कुछ ही क्षणों बाद डाॅक्टर साहब ने उस शख्स को अपने हाथों से सहारा देते हुए उठाया और गले से लगा लिया। यही वो वक्त था जब उसने डाॅक्टर साहब का चेहरा पहली बार देखा और उनके चेहरे पर पड़े पुराने जख्मों के निशान, जो उनकी दायीं गाल पर था। वो जख्म उस शख्स को चालीस साल पहले की घटना की याद दिला रहा था। डॉक्टर ने उस शख्स को गले से लगाया तो था पर वह अपने अतीत में जा चुका था।
इसी शख्स ने इस डॉक्टर के साथ कभी मारपीट की थी
यह वहीं शख्स था जिसने 40 साल पहले इस डॉक्टर के साथ मारपीट की थी। वो अतीत आज के विपरीत था। तब वह शख्स गर्म खून का एक नौजवान युवक था जिसकी दोस्तों की एक टोली हुआ करती थी, जो सही और गलत में ज्यदा फर्क नहीं रखा करती थी। शायद इसलिए उस वक्त अपने ही एक मित्र की सड़क दुर्घटना के बाद हाॅस्पीटल में महज पंद्रह घंटे के बाद मौत हो जाने पर सभी ने मिलकर तोड़-फोड़ की और इस डॅाक्टर के सिर पर कांच के टुकड़े से मारा और वहां से सभी निकल पड़े। इस वक्त मन में ना कोई बोझ था और ना ही कोई ग्लानी। आज चालीस साल बीत गए और चेहरे पर पड़े डाॅक्टर साहब का निशान इस शख्स को इतना झकझोर रहा था कि वह शर्म से माफी मांगने के लायक भी नहीं था।
प्रायश्चित करते हुए उस शख्स ने कहा कि बीता वक्त और उस निशान को तो नहीं भर सकता पर एक बात आप सबों से अनुरोध करना चाहेगा कि कभी भी किसी डाॅक्टर को किसी की मौत का जिम्मेदार बिना सोच-समझ न बनाए। क्योंकि, ये वो इंसान हैं जो किसी गैर को अपना समझकर अपनी हर कोशिश से बचाना चाहते हैं, पर आखिरी फैसला तो ऊपर वाले के हाथों में रहता है। जो गलती मैंने की वो आप सबों से ना हो। क्योंकि, हमारी गलती की माफी किसी के जख्मों को कभी नहीं भर सकती।