बिहार के सात युवाओं ने खोजा प्लास्टिक और पराली का निदान, गोमूत्र की मदद से 10 दिनों में तैयार किया मशरूम
जहरीली बॉयो फिनॉल गैस के उत्सर्जन के बिना ही प्लास्टिक कचरे से बना डाला पेट्रोल डीजल व पेट्रो केमिकल्स। नीम के पत्ते व गोमूत्र की मदद से महज 10 दिनों में तैयार किया मशरूम।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। कोरोना महामारी ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला दिया। दूसरी ओर सकारात्मक सोच भी विकसित हुई। आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़े। इसी दौरान सात युवाओं ने प्लास्टिक और पराली का निदान ढूंढ़ निकाला। जहरीली बॉयो फिनॉल गैस के उत्सर्जन के बिना ही प्लास्टिक कचरे से बना डाला पेट्रोल, डीजल और पेट्रो केमिकल्स। पराली पर सहजन व नीम के पत्ते, गोमूत्र की मदद से महज 10 दिनों में तैयार कर दिया मशरूम। इन दोनों प्रोजेक्ट को उद्योग विभाग ने मंजूरी दे दी है।
30 सितंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आइआइटी मद्रास में युवाओं को नए शोध और रिसर्च के लिए प्रेरित कर रहे थे। इधर, राज्य के सात युवाओं में उनकी प्रेरणा ने जोश भर दिया। युवाओं ने शुरुआती समय में सौ लीटर पेट्रोल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसके लिये नगर निगम से प्लास्टिक उपलब्ध हो जाएगा। पेट्रोलियम पदार्थ के ग्राहक तैयार हैं। जिले के खरौनाडीह में प्रोजेक्ट लगाने की तैयारी है।
सौ किलो प्लास्टिक कचरे से 75 लीटर पेट्रोल
टीम के प्रमुख सदस्य और दामूचक निवासी आशुतोष मंगलम ने बताया कि उन्होंने प्रोजेक्ट के बारे में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी को जानकारी दी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष प्लास्टिक से पेट्रो पदार्थ बनाने का डेमोंस्ट्रेशन लद्दाख में किया गया। प्लास्टिक से क्रूड ऑयल बनने के दौरान बॉयो फिनॉल जैसी जहरीली गैस का उत्सर्जन होता है। इसे देखते हुए क्लोरिन, ब्रोमीन व सोडियम का इस्तेमाल किया गया। इस कारण प्लास्टिक (पॉलीथिन) से अतिरिक्त हाइड्रोजन को अलग कर सके।
इससे क्रूड ऑयल के अलावा सोडियम क्लोराइड व सोडियम ब्रोमाइड साल्ट तैयार हुआ। यह हानिकारक नहीं है। क्रूड ऑयल से फ्रैक्शनल डिस्ट्रीलेशन से अलग-अलग पेट्रोल, डीजल व पेट्रो केमिकल्स निकाला जाता है। इससे तैयार पेट्रोल बाजार में 50 से 55 रुपये प्रति लीटर तक बेचा जा सकता है। सौ किलो प्लास्टिक कचरे से 75 लीटर पेट्रोल तैयार होता है। इतने ही से 80 लीटर डीजल, जबकि सौ किलो से 50 लीटर पेट्रो केमिकल्स तैयार होता है।
मशरूम की पैदावार के साथ आर्गेनिक खाद भी
पराली भी प्रदूषण का बड़ा कारक बन रहा। टीम ने पराली का इस्तेमाल मशरूम के उत्पादन में किया। इसमें सहजन (ड्रम स्टीक) व नीम के पत्ते व गोमूत्र का इस्तेमाल किया तो 21 की जगह 10 दिनों में ही मशरूम तैयार हुआ। वहीं पारंपरिक तरीके की तुलना में तीन गुना अधिक उत्पादन हुआ। उपज के बाद इस पराली को घरों व मंदिरों से निकलने वाले कचरे में मिलाकर आर्गेनिक खाद तैयार कर ली।
आइआइटी में जाने के बाद भी जारी रहेगा रिसर्च
सात युवाओं की टीम में आशुतोष मंगलम के अलावा अमन कुमार, जिज्ञासु व अमन कुमार सिंह आइआइटी जेईई की मुख्य परीक्षा पास कर चुके हैं। अब एडवांस का इंतजार है। ये कहते हैं कि आइआइटी में नामांकन के बाद भी इस तरह का रिसर्च जारी रहेगा। टीम के अन्य तीन सदस्यों में कॉमर्स से स्नातक कर रहे मो. हसन ने प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार करने में मदद की। वहीं, सुरभि गोस्वामी ने प्रबंधन का कार्य संभाला, जबकि बायोलॉजी से 10+2 पास करने वाले सुमित ने मशरूम प्रोजेक्ट पर काम किया। मेंटर कीॢत भूषण भारती आर्गेनिक फार्म का संचालन करते हैं।
इस बारे में मुजफ्फरपुर के जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक परिमल कुमार सिन्हा ने कहा कि 'इन युवाओं का रिसर्च प्रेरणादायक है। इसे देखते हुए प्रोजेक्ट में पूरी मदद की। बैंक से ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। इस तरह के प्रोजेक्ट समाज को नई दिशा देंगे।