पश्चिम चंपारण में नदियों का टूटा कहर, 10 साल में एक हजार किसान तबाह

कालीघाट मधुबनी पिपरासी ठकराहां भितहां समेत रामनगर में नदियों ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है।पिपरासी में गंडक से सर्वाधिक तबाही पिपरासी प्रखंड की करीब 4200 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। सेमरा लबेदाहा पंचायत के भैंसहिया कांटी श्रीपतनगर में तबाही का मंजर दिखता है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Thu, 22 Jul 2021 11:28 AM (IST) Updated:Thu, 22 Jul 2021 11:28 AM (IST)
पश्चिम चंपारण में नदियों का टूटा कहर, 10 साल में एक हजार किसान तबाह
पश्चिम चंपारण के बगहा में खेती योग्य जमीन नदी में समाई। फोटो- जागरण

बगहा (पचं), [सौरभ कुमार]। खेत-खलिहानों में अब नहीं लगती अनाज की ढेरी। बरसात में अथाह पानी और बाकी के महीनों में यहां मरुस्थल दिखता है। खेती वाले हाथ मजदूरी करने लगे हैं। ये पश्चिम चंपारण के बगहा का वो इलाका है, जिसे गंडक, मसान और बरसाती नदियों ने बाढ़ और कटान से तबाह कर दिया है। हजारों एकड़ खेतिहर जमीन नदी में समा गई। पिछले 10 साल में एक हजार से अधिक किसान तबाह हो गए। 

कालीघाट, मधुबनी, पिपरासी, ठकराहां, भितहां समेत रामनगर में नदियों ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है।

पिपरासी में गंडक से सर्वाधिक तबाही : पिपरासी प्रखंड की करीब 4200 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। सेमरा लबेदाहा पंचायत के भैंसहिया, कांटी, श्रीपतनगर में तबाही का मंजर दिखता है। मंझरिया, नैनाहा, सिसकारी, मुजही में भी यही दृश्य है। रामनगर में मसान ने किसानों को बर्बाद किया है। करीब 990 एकड़ उपजाऊ जमीन नदियों की चपेट में आ चुकी है। मुड़ेरा, महुई, शेरहवा, सेवरही बरवा, हरिहरपुर, औरहिया, बरवा, कनघुसरी मनचंगवा आदि गांवों में मसान के साथ ढोंगही, भलुई, सिंगाही, सुखौड़ा आदि नदियों ने अच्छी-खासी जमीन को रेत बना दिया। बगहा-दो के कालीघाट में नदी ने करीब 1000 एकड़ जमीन को तबाह कर दिया है। बगहा-एक में 2000 एकड़ और मधुबनी में 200 एकड़ जमीन अब खेती लायक नहीं रही।

जहां उपजता था गन्ना, वहां बहती है नदी 

श्रीपतनगर के किसान नारायण राम की पीड़ा बातचीत में छलक जाती है। उनकी पांच एकड़ जमीन नदी में समा गई है। मंझरिया के प्रमोद बैठा अब लोगों के कपड़े धोकर गुजारा कर रहे हैं। कभी छह एकड़ जमीन के मालिक थे। कालीघाट के किसान शेषनाथ चौधरी, ब्रह्मा चौधरी व हीरालाल चौधरी बताते हैं, जिस जमीन पर गन्ना उपजता था... वहां अब नदी बह रही है।

पहाड़ी नदियों में रेत और पत्थर की मात्रा ज्यादा 

नदियों के जानकार और भूगोलविद नागेंद्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि पहाड़ी इलाकों से उतरने वाली नदियों की धारा काफी तेज होती है। गंडक, मसान, भलुई, सिकरहना, हरहा, सुखौड़ा, भपसा, मनोर समेत अन्य सभी नदियां पहाड़ से उतरती हैं। ये अपने साथ काफी मात्रा में रेत और पत्थर के टुकड़े लेकर आती हैं। नदियों की पेटी में सिल्ट और गाद भरने से खेतों को नुकसान अधिक होता है। कृषि विशेषज्ञ शशांक नवल का कहना है कि इन इलाकों में सहजन, खरबूज, खीरा, ककड़ी, तरबूज, सब्जी की खेती कर भरपाई की जा सकती है। 

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