बीआरएबीयू में फिशरीज में शोध के लिए 25 वर्षो से वीरान पड़े पोखर का जीर्णोद्धार

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के जूलाजी विभाग के पीछे 25 वर्षो से वीरान पड़े पोखर का जीर्णोद्धार हो गया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 23 Aug 2021 04:43 AM (IST) Updated:Mon, 23 Aug 2021 04:43 AM (IST)
बीआरएबीयू में फिशरीज में शोध के लिए 25 वर्षो से वीरान पड़े पोखर का जीर्णोद्धार
बीआरएबीयू में फिशरीज में शोध के लिए 25 वर्षो से वीरान पड़े पोखर का जीर्णोद्धार

मुजफ्फरपुर। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के जूलाजी विभाग के पीछे 25 वर्षो से वीरान पड़े पोखर का जीर्णोद्धार हो गया है। इसमें बड़ी-बड़ी घासें और जंगल उग जाने के कारण विद्यार्थी शोध नहीं कर पा रहे थे। विभागाध्यक्ष प्रो.मनेंद्र कुमार ने बताया कि करीब 40 वर्ष पूर्व जलीय जंतुओं पर शोध के लिए इस तालाब का निर्माण कराया गया था। बनने के करीब 10-15 वर्षो तक इसमें कार्य भी हुआ। इसके बाद करीब 25 वर्षो से इसमें मछली उत्पादन व जंतुओं पर शोध का कार्य ठप है। बताया कि पीएचडी करने वाले शोधार्थियों गुणवत्तापरक शोध कर सकें, इसको लेकर तालाब का जीर्णोद्धार कराया गया है। विभागाध्यक्ष ने बताया कि तालाब की सफाई हो गई है। अब पानी के सतह पर केवल अल्गी तैर रही हैं। यह कई प्रकार की मछलियों का मुख्य भोजन है। तालाब में इसी माह ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, रोहू, नैनी, कतला आदि के फिंगर लिंग डाले जाएंगे। तालाब में मछली को प्राकृतिक रूप से अल्गी, प्लैन्कटौन, छोटे जलीय पौधे, कीट आदि भोजन के रूप में मिल जाते हैं। मछलियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरसों और मूंगफली की खल्ली भी डाली जाएगी। मछली पालन से विभाग का आय भी बढ़ेगा और फिशरीज के अध्ययन में भी सहायता मिलेगी।

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आइसीएआर और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में शुरू हुआ शोध : विभागाध्यक्ष डा.मनेंद्र कुमार ने बताया कि जूलाजी के शोधार्थियों ने आइसीएआर और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के सहयोग से शोध कार्य शुरू कर दिया है। मधुमक्खी पालन और लीची में लगने वाले कीटों का पता लगाने के लिए शोधार्थियों की टीम बनाई गई है। विभाग के शिक्षक भी इसमें सहयोग कर रहे हैं। इन संस्थानों के साथ विभाग ने एमओयू पर भी हस्ताक्षर किया है। कहा कि पीएचडी शोधार्थियों की शोध गुणवत्तापरक हो इसको लेकर विभाग की ओर से निरंतर प्रयास किया जा रहा है।

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