असमानता की खाई को पाट रहे रामलखन, गैरबराबरी दूर करने को सह रहे सबकुछ

कई बार हुई लाठी से पिटाई, सिर में लगे चौदह टांके, तीन बार गए जेल, झेल रहे दर्जन भर मुकदमे, खुद हैं कैंसर से पीडि़त।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Tue, 22 Jan 2019 02:47 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jan 2019 03:00 PM (IST)
असमानता की खाई को पाट रहे रामलखन, गैरबराबरी दूर करने को सह रहे सबकुछ
असमानता की खाई को पाट रहे रामलखन, गैरबराबरी दूर करने को सह रहे सबकुछ

दरभंगा, [मृत्युंजय भारद्वाज] ।  ' मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं, मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं।'  दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को जीवन का सूत्र वाक्य मानकर चल रहे दरभंगा जिला अंतर्गत बेनीपुर के चौगमा निवासी रामलखन मिश्र उर्फ अन्ना रामू (70 वर्ष) दशकों से असमानता की खाई पाटने में जुटे हैं। न केवल कानूनी रूप से वरन व्यावहारिक रूप से भी। वे जहां भी गैरबराबरी की बात सुनते हैं, मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं। इस क्रम में कई बार लाठियां भी खाईं।

    सिर में 14 टांके लगे। तीन बार जेल गए। दर्जन भर मुकदमे झेल रहे हैं, लेकिन मानव-मानव में भेद के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी। इतना ही नहीं, अब वे इस थाती को नई पीढ़ी को सौंपना चाहते हैं। इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे। गांधी और अन्ना हजारे को आदर्श मानने वाले रामलखन कैंसर से पीडि़त हैं। चिकित्सकों ने आराम की सलाह दे रखी है, लेकिन विसंगतियों से 'लबालब समाज' को देख उन्हें चैन कहां?

जेपी आंदोलन में जुड़े

स्व. धनीलाल मिश्र के पुत्र रामलखन मिश्र बहेड़ा हाइस्कूल में नौवीं के छात्र थे। इस दौरान जेपी आंदोलन शुरू हुआ तो वे इससे जुड़ गए। इसके बाद पढ़ाई नहीं कर सके। उसी समय से सामाजिक कार्यों में जुट गए। धीरे-धीरे यह जुनून बन गया। कालांतर में दो पुत्र एवं एक पुत्री का दायित्व भी इनपर आया, लेकिन वे डिगे नहीं।

पीडि़तों के साथ मुस्तैदी से खड़े रहते

दबंग किसी को परेशान कर रहा हो या फिर अधिकारी किसी की हकमारी कर रहे हों, सूचना मिलते ही वे डट जाते हैं। पीडि़त के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। हाल में बेनीपुर के शिवराम में दबंगों द्वारा विधवा ङ्क्षरकू देवी की हकमारी की जा रही थी। उन्होंने न केवल घर पर उसका हक दिलाया वरन पेंशन व इंदिरा आवास का लाभ भी दिलाया।

     इसके पहले बसुहाम पंचायत में मनरेगा, इंदिरा आवास और अन्य कई विकास योजनाओं में लोगों के साथ किए जा रहे भेदभाव की शिकायत अधिकारियों से की। कोई कार्रवाई नहीं होता देख उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की। उच्च न्यायालय के आदेश पर 2010 में बहेड़ा थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई। मुखिया, पंचायत सचिव, रोजगार सेवक को जेल जाना पड़ा। बीडीओ एवं जेई को पुलिस ने फरार घोषित कर रखा है।

     श्मशान, कब्रिस्तान, सरकारी तालाब पर अवैध कब्जे को लेकर हाईकोर्ट गए। कब्जा हटाने का आदेश हुआ। प्रशासनिक अधिकारियों ने जैसे-तैसे कब्जा हटाकर खानापूरी कर दी। उनकी शिकायत पर मनरेगा की जांच करने केंद्रीय टीम बसुआम पहुंची थी। पुलिस अधिकारी भी थे।

    सबके सामने घोटालेबाजों ने उनपर हमला कर दिया। सिर में 14 टांके लगे। वर्ष 2012 में अन्ना हजारे के आह्वान से प्रभावित हुए और साइकिल से दिल्ली पहुंच गए। अन्ना के साथ 10 दिनों तक जंतर-मंतर पर धरना पर बैठे।

न्यायालय नहीं होता तो सड़ रहे होते जेल में

महिनाम के गणपत मिश्र, चौगमा के रामभद्र झा, बेनीपुर के प्रमोद साह, शिवराम की धर्मशीला देवी आदि मौजूदा दौर में रामलखन मिश्र के संघर्ष को प्रेरणास्पद बताती हैं। रामलखन अब तिरंगा झंडा, गांधी, अन्ना एवं शहीदों की तस्वीर के साथ देशभक्ति गीत को बजाते हुए अपनी साइकिल से युवाओं को जागरूक करने निकलते हैं।

    वे कहते हैं कि मां-बाप और समाज की सेवा से बढ़कर कुछ नहीं है। यहां का प्रशासनिक तंत्र गैरबराबरी को बढ़ावा देने वाला है। न्यायालय से न्याय मिल रहा है अन्यथा मैं अभी जेल में सड़ रहा होता। 

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