बहरीन में आयोजित पैरालंपिक गेम्स में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे दरभंगा के राकेश

अंधविश्वास के कारण राकेश को समाज का साथ नहीं मिला लेकिन परिवार ने हिम्मत बढ़ाई और आज वह यूथ एशियन पैरालंपिक गेम्स में शामिल हो रहा है। इसी के साथ राकेश सूबे का पहला युवक हो गया है जिसने अपना नाम यूथ एशियन पैरालंपिक गेम्स-2021 में दर्ज कराया।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sat, 20 Nov 2021 11:24 AM (IST) Updated:Sat, 20 Nov 2021 11:24 AM (IST)
बहरीन में आयोजित पैरालंपिक गेम्स में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे दरभंगा के राकेश
एक से आठ दिसंबर तक बहरीन में आयोजन होगा। फोटो- जागरण

दरभंगा, [दिनेश राय]। लहेरियासराय के बाकरगंज अभंडा पोखर निवासी राकेश कुमार को तीन महीने की उम्र में पोलियो ने हराने की कोशिश की। उसका दाहिना पैर पोलियो से 50 प्रतिशत प्रभावित हो गया। अंधविश्वास के कारण राकेश को समाज का साथ नहीं मिला, लेकिन परिवार ने हिम्मत बढ़ाई और आज वह यूथ एशियन पैरालंपिक गेम्स में शामिल हो रहा है। इसी के साथ राकेश सूबे का पहला युवक हो गया है, जिसने अपना नाम यूथ एशियन पैरालंपिक गेम्स-2021 में दर्ज कराया। आज सभी राकेश के हौसले के मुरीद हैं। आत्मविश्वास से लबरेज इस युवा खिलाड़ी को पैरालंपिक कमेटी आफ इंडिया ने अपनी टीम की सूची में 36 वें और बैडमिंटन टीम के 13 वें नंबर पर रखा है। 

यूएई के बहरीन में आयोजित होगा गेम

यूथ एशियन पैरालंपिक गेम एक से आठ दिसंबर तक यूएई के बहरीन में आयोजित होगा। इसमें एशिया के सभी देशों के खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। राकेश भारत की टीम के साथ 26 नवंबर को टीम के साथ बहरीन के लिए रवाना हो जाएंगा।

माता-पिता की मेहनत ने दिया मुकाम, बारहवीं में पढ़ता है राकेश

राकेश की पारिवारिक स्थिति बेहद कमजोर है। उनकी मां मोना देवी अनपढ़ हैं। पिता श्याम सहनी आठवीं पास हैं। परिवार की माली स्थिति बेहद कमजोर है। उसके पिता लहेरियासराय टावर चौक की फुटपाथ पर मखाना की दुकान चलाते हैं। माता-पिता की मेहनत की बदौलत शिक्षा के क्षेत्र में भी इस युवा ने अपनी पहचान बनाई है। सफी मुस्लिम हाई स्कूल लहेरियासराय में बारहवीं में पढ़ते हैं। स्कूल में भी इनका प्रदर्शन काफी बेहतर है।

कोच की मेहनत रंग लाई

बैडमिंटन के कोच मोहन सहनी और विकास शर्मा ने दिन - रात लहेरियासराय के बैडङ्क्षमटन कोर्ट में प्रैक्टिस राकेश की प्रैक्टिस कराई। दोनों कोच ने राकेेश के हौसले को चार चांद लगा दिया। कोच ने बताते हैं- राकेश ने कभी भी खेल में हिम्मत नहीं हारी। वो सामान्य खिलाडिय़ों के साथ भी उम्दा प्रदर्शन करते रहे।

थी पैरालंपिक में भाग लेने की चाहत

राकेश बताते हैं कि माता-पिता और कोच ने उनकी हिम्मत बढ़ाई। परिणाम यह कि चाहत पैरालंपिक गेम्स में भाग लेकर देश का नाम रौशन करने की बनी। चार साल की उम्र से ही खेल रहा हूं। अब मौका मिला है तो देश का नाम रौशन करने का निश्चय किया है।  

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