मुजफ्फरपुर की जनता कर रही जनप्रतिनिधियों की मुंह दिखाई की तैयारी, जानें आक्रोश की वजह

कोरोना जैसी आपदा में इन जनप्रतिनिधियों की ओर से मदद तो दूर उनका चेहरा तक नहीं दिख रहा। लोग अपने बलपर जिंदगी की जद्दोजहद कर रहे। अपना चेहरा बचाने के लिए कुछ ने केंद्र सरकार को पताही में कोविड अस्पताल चालू कराने को लेकर पत्र लिखा और चुप बैठ गए।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 08:11 AM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 08:11 AM (IST)
मुजफ्फरपुर की जनता कर रही जनप्रतिनिधियों की मुंह दिखाई की तैयारी, जानें आक्रोश की वजह
कोरोना लहर लंबी चली तो कहीं कार्यकाल ना पूरा हो जाए।

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। जिले की जनता ने अपनी बेहतरी के लिए 11 विधायक, तीन विधान पार्षद और दो सांसद चुने। उन्हें उम्मीद थी कि विकास कार्य के साथ आपदा में उनकी ओर से भरपूर मदद मिलेगी, मगर हुआ इसके उलट। कोरोना जैसी आपदा में इन जनप्रतिनिधियों की ओर से मदद तो दूर उनका चेहरा तक नहीं दिख रहा। लोग अपने बलपर जिंदगी की जद्दोजहद कर रहे। अपना चेहरा बचाने के लिए कुछ ने केंद्र सरकार को पताही में कोविड अस्पताल चालू कराने को लेकर पत्र लिखा और चुप बैठ गए। अब बारी महामारी झेल रही जनता की है। चर्चा इसकी हो रही कि जनप्रतिनिधियों की मुंह दिखाई की रस्म निभाई जाएगी। क्षेत्र में नजर आने के बाद यह रस्म पूरी की जाएगी। एक जनप्रतिनिधि को तो ढूंढने वालों के लिए इनाम भी घोषित हो गया है। लोगों का इंतजार है कि ये अपना चेहरा कब दिखाएंगे। कोरोना लहर लंबी चली तो कहीं कार्यकाल ना पूरा हो जाए।

कोरोना ने छीन ली करूणा

बाजारीकरण ने सबकुछ को बिकाऊ बना दिया है। इसमें मानवता भी कहां बचने वाली थी। कोरोना की दूसरी लहर ने मानवता को तार-तार कर दिया है। जिंदगी के बदले लोगों को सबकुछ का सौदा करना पड़ा है। कई तो सारे सौदे करके भी ङ्क्षजदगी नहीं बचा सके। इस सौदे में Óधरती के भगवानÓ भी कहीं ना कहीं शामिल हैं। शहर के कई अस्पतालों ने जरूर लोगों की जान बचाई, मगर मानवता पीछे छूट गई। एक-एक बेड के लिए सौदा। इतने का पैकेज, भर्ती करना है? जल्दी कीजिए समय नहीं है? ये सवाल बड़े अस्पतालों में कोरोना मरीज को भर्ती कराने के लिए लाने पर पूछे जा रहे। अगर आपके पास कम से कम 50 हजार नहीं तो अस्पताल में बेड मिलना मुश्किल। बेड मिली तो ऐसी दवा लिखी जा रही जो मिलती नहीं। फिर इसके लिए सौदा। आखिर कोरोना ने करूणा भी छीन ली।

कालाबाजारी के खिलाफ कागजी लड़ाई

आपदा में अवसर तलाशने वालों की कमी नहीं। कोरोना लहर में जमाखोरी से लेकर कालाबाजारी का ही बाजार है। पांच सौ का ऑक्सीजन पांच से दस हजार तो दो हजार की दवा के 50-50 हजार रुपये में भी उपलब्ध नहीं। कमाई देख इस काम में अस्पताल के कर्मी भी लग गए। कोई ऑक्सीजन भरवाकर बेच रहा तो कोई एंटीजन किट का सौदा कर रहा है। ऐसा नहीं है कि प्रशासन की ओर से इसे रोकने के लिए कवायद नहीं की जा रही है। बड़ी-बड़ी टीम बनी, मगर ये सिर्फ कागज पर ही दिखाई देती है। जमाखोरी रुक रही ना कालाबाजारी। पदाधिकारी के स्तर से कुछ नहीं हो पा रहा। हां, स्थानीय तंत्र और मीडिया से सूचना मिलने पर थोड़ी बहुत कार्रवाई हो रही। सवाल यही उठ रहा कि पुलिस और पदाधिकारियों का अपना तंत्र क्या कर रहा है। महज कागजी लड़ाई से कैसे रुकेगी कालाबाजारी।

सैनिटाइजेशन से माननीय को ÓजवाबÓ

कुश्ती के दावपेच में पहलवान को यह भी बताया कि प्रतिद्वंद्वी की हर हरकत पर नजर रखी जाए। इसके बाद अपनी दाव चला जाए। कुछ यही दाव कोरोना काल में एक माननीय पर आजमाया गया है। आपदा में शांत बैठे एक माननीय को जवाब देने के लिए सैनिटाइजेशन का सहारा लिया गया है। यह काम शुरू किया है पराजित पूर्व माननीय के छोटे पुत्र ने। शहरी क्षेत्र के गली मुहल्ले के सैनिटाइजेशन का बीड़ा उठाकर वे एक तीर से दो शिकार भी कर रहे। प्रतिदिन मुहल्ले का रोडमैप जारी कर वहां सैनिटाइजेशन करवा रहे हैं। जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे कि जिन्होंने वादा कर वोट लिए उन्होंने पहली संकट में ही साथ छोड़ दिया। साथ ही माननीय पर भी दबाव बढ़ा दिया। अब अंदाजा लगाया जा रहा कि माननीय भले सामने नहीं आएं, चुनाव में कमान संभालने वाली उनकी पुत्री मोर्चे पर आ सकती हैं।  

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