नदियों का जलस्तर बढ़ते सिहर उठते मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित प्रखंड के लोग

टूटे बांधों की नहीं हो सकी मरम्मत। गत वर्ष 18 में से 14 पंचायतें हुईं थीं बाढ़ प्रभावित विस्थापित हुए थे 50 हजार लोग। प्रखंड का बड़ा भूभाग प्रतिवर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है। लोगों का जनजीवन कष्टप्रद हो जाता है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 11:47 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 11:47 AM (IST)
नदियों का जलस्तर बढ़ते सिहर उठते मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित प्रखंड के लोग
पिछले साल बाढ़ की चपेट में 18 पंचायतें आर्इं थीं जिनमें 14 पंचायतें पूर्णत: प्रभावित थीं। फाइल फोटो

कटरा (मुजफ्फरपुर), जासं। मानसून की धमक के साथ ही बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। लगातार हो रही बारिश के कारण नदियों के जलस्तर में वृद्धि होने लगी है। यह देख बाढ़ प्रभावित सिहर उठे। प्रखंड का बड़ा भूभाग प्रतिवर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है। लोगों का जनजीवन कष्टप्रद हो जाता है। खासकर नदी किनारे बसे लोगों के सामने जीवन यापन दूभर हो जाता है। लेकिन, इससे सुरक्षा संबंधी कार्यों की गति काफी धीमी है जिससे बड़ी आबादी बाढ़ की त्रासदी झेलने को मजबूर है। बता दें कि पिछले साल बाढ़ की चपेट में 18 पंचायतें आर्इं थीं जिनमें 14 पंचायतें पूर्णत: प्रभावित थीं तथा 4 पंचायत आंशिक प्रभावित थीं। बाढ़ से लगभग डेढ़ लाख आबादी प्रभावित हुई थी। वहीं, लगभग 50 हजार लोग विस्थापित हुए थे जिन्हें महीनों घरों की छत और ऊंचे स्थानों पर शरण लेनी पड़ी थी। बाढ़ से करीब 10 हजार एकड़ में लगी धान, मक्के, सब्जी आदि की फसल बर्बाद हुई थी। 

इस बार फिर परेशानियों की पुनरावृति होने की संभावना दिख रही है। सर्वाधिक तबाही उन गांवों की होती है जो बागमती परियोजना के बांध बनने के कारण विस्थापित श्रेणी में हैं। कारण, इन गांवों में विकास योजनाएं वर्षों से बंद हैं। प्रखंड के गंगेया, बकुची, नवादा, पतांरी, बर्री, चंदौली, भवानीपुर, बरैठा, बसघटृा, मोहनपुर आदि इसी श्रेणी में हैं। इनका कहना है कि विस्थापित कर देने के बाद भी हमें सरकारी सुविधाएं नहीं मिलीं। 50 फीसदी लोगों का दावा है कि उन्हें भूमि व घर का मुआवजा नहीं मिला। भूअर्जन विभाग द्वारा कई तरह की बंदिशें लगाकर भुगतान पर रोक लगाई गई है। विस्थापितों की मांग पुनर्वास संबंधी है। अबतक 10 वर्षों में पुनर्वास की भूमि आवंटित नहीं की गई है।

बता दें कि बरैठा-बकुची के बीच तीन जगहों पर बांध टूटे हैं। बकुची कालेज के पास पिछले साल मनरेगा से काम हुआ था जो विलुप्त हो चुका है। अधूरा काम करके ही संवेदक ने राशि की निकासी कर ली जिससे स्थिति बदतर बनी हुई है। गंगेया हाई स्कूल के पास वर्षों से तटबंध टूटा हुआ है जिससे बड़ी आबादी बाढ़ से प्रभावित होती है। तेहवारा का तोखा सिंह बांध कई वर्षों से क्षतिग्रस्त है। बार-बार ध्यान आकृष्ट करने के बाद भी इसे नहीं बनाया गया। उपमुखिया धीरेंद्र सिंह ने बताया कि इस बांध के बन जाने से दो दर्जन गांव सुरक्षित हो जाएंगे, लेकिन अधिकारी रूचि नहीं लेते हैं। धनेश्वर राय ने बताया कि योजनाओं में कमीशन का खेल बड़ा होता है जिससे काम पूरा नहीं होता। किसी भी योजना में अधिकारी कमीशन पहले ले लेते हैं, फिर काम की गुणवत्ता को देखना भी मुनासिब नहीं समझते।  

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