पश्चिम चंपारण को मेट्रोपोलिटन शहर का पं. नेहरू का सपना नहीं हो सका साकार, हाल बेहाल
वाल्मीकिनगर गंडक परियोजना की आधारशिला रखने आए थे पं. जवाहरलाल नेहरूवे अपने साथ एक अशोक का पौधा भी लेकर आए थे। वाल्मीकिनगर हाईस्कूल के प्रागंण में लगा यह पौधा पेड़ बन गया है जो पंडित जवाहर लाल नेहरू की याद दिलाता है।
पश्चिम चंपारण, जासं। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू गंडक बराज का शिलान्यास करने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी के साथ पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर आए थे। वे अपने साथ एक अशोक का पौधा भी लेकर आए थे। वाल्मीकिनगर हाईस्कूल के प्रागंण में लगा यह पौधा पेड़ बन गया है, जो पंडित जवाहर लाल नेहरू की याद दिलाता है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर और बिहार के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों की ङ्क्षसचाई के लिए नहर प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से दूरदर्शी परियोजना तैयार कराई जिसका लाभ आज भी दिखता है। गंडक बराज के निर्माण से ङ्क्षसचाई का बेहतर साधन यूपी, बिहार एवं नेपाल को उपलब्ध हुआ है। उसी दौरान उन्होंने कहा था कि बेतिया में ट्रोपोलिटन शहर बनाने की तमाम संभावना है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया।
अलबत्ता, बेतिया को फिलहाल नगर निगम का दर्ज मिल चुका है। नगर निगम की अहर्ता पूरी करने के लिए जिस तरह से ग्राम पंचायतों का अधिग्रहण हुआ है, उससे स्पष्ट है कि नगर निगम क्षेत्र में अधिग्रहित ग्राम पंचायतों को सुविधाओं से अपग्रेड करने में एक दशक लगेगा। बेतिया की पहचान कस्बाई शहर के रूप में ही है। विकास की अपार संभावनाओं को समेटने के बाद भी यहां बेसिक सुविधाएं भी नदारद हैं, जो राजनीतिक एवं प्रशासनिक उपेक्षा ही कही जाएगी। पूरा शहर अतिक्रमण के आगोश में है। जब कोई अधिकारी अतिक्रमण हटाने की योजना बनाता है तो राजनीतिक दबाव में योजना पूरी नहीं हो पाती। खस्ताहाल सड़कें, बिना प्लाङ्क्षनग की बनीं टेढ़ी-मेढ़ी नालियां, गंदगी का अंबार शहर की पहचान है। मेडिकल कॉलेज की स्थापना जरूर हुई है, लेकिन संसाधनों का टोटा है।
शहर के विकास के लिए कभी प्लाङ्क्षनग के तहत काम नहीं हुआ। प्रशासनिक उपेक्षा भी विकास में बाधक है। जल निकासी, सड़क निर्माण जिस सिस्टम से होना चाहिए , उस पर किसी का ध्यान नहीं गया। इससे बेतिया शहर देश के अन्य शहरों की तरह पहचान नहीं बना सका। भले ही बेतिया नगर निगम बन गया है, लेकिन जब तक प्लाङ्क्षनग के तहत काम नहीं होगा तब तक मेट्रोपोलिटन शहर के रूप में विकास की उम्मीद नहीं करना बेकार है। - डॉ. अमिताभ चौधरी, चिकित्सक बेतिया।
-बेतिया को मेट्रोपोलिटन शहर बनाने की तमाम संभावना हैं, लेकिन यहां बेसिक सुविधाओं का शुरू से ही अभाव रहा है। 2004-05 तक लॉ एंड ऑर्डर की खराब स्थिति, बिजली का अभाव, उच्च शिक्षा की कमी के कारण यहां के व्यवसाई पलायन कर गए। जब तक उच्च शिक्षा, बिजली-पानी, मेडिकल फैसिलिटी, एयरपोर्ट जैसी बेसिक सुविधा नहीं मिलेगी तब तक विकास बेमानी है। - मनोज गोयनका उर्फ बिट्टू बाबू, व्यवसायी
-नेपाल से सटा बेतिया तराई का इलाका है। इंडस्ट्रियल और एग्रीकल्चर के विकास की तमाम संभावनाएं हैं। लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव के कारण इसका विकास नहीं हो सका है। जिस शहर को आज तक हवाई मार्ग से नहीं जोड़ा जा सका, रेल कनेक्टिविटी में भी काफी देरी हुई, तो विकास की दौड़ में पिछडऩा ही था। कॉमर्शियल खेती मखाना, ङ्क्षसघाड़ा, बांस, बेंत की खेती के लिए उर्वर भूमि है। यह शहर राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है।
डॉ. आरएन यादव, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, आरएलएसवाई, कॉलेज बेतिया।
- आजादी के बाद राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने चंपारण के विकास का सपना देखा, रूपरेखा बनाई, लेकिन बाद में इस पर अमल नहीं हुआ। यही कारण है कि बेतिया जहां था, वहीं रह गया। इस शहर की हर स्तर से उपेक्षा हुई। किसी ने विकास की दूरगामी परियोजना नहीं बनाई। नगर निगम बनने के बाद एक मौका मिला है। लेकिन अभी भी संशय है कि कहीं बेतिया पहले की तरह ही मकडज़ाल में उलझा ही ना रह जाए। -मनोज केसान, व्यवसायी, लालबाजार