मुजफ्फरपुर में अब लीची के पौधे के साथ प्रमाणपत्र, प्रभेद की गारंटी
मुजफ्फरपुर स्थित एनआरसीएल में स्थापित किया गया लीची पौधा केंद्र। हर साल 50 हजार पौधा रखने का लक्ष्य अभी आठ हजार पौधे तैयार। एनआरसीएल के मुशहरी स्थित परिसर में इसे विकसित किया गया है। पौधों की खरीदारी पर प्रभेद संबंधी प्रमाणपत्र के साथ बागवानी बुकलेट भी उपलब्ध कराई जा रही।
मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। लीची की मौलिकता, गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर (एनआरसीएल) द्वारा कुछ न कुछ पहल की जा रही। लीची के विभिन्न उत्पाद और नये प्रभेदों को विकसित करने के बाद पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए अब पौधा केंद्र शुरू किया गया है। एनआरसीएल के मुशहरी स्थित परिसर में इसे विकसित किया गया है। पौधों की खरीदारी पर प्रभेद संबंधी प्रमाणपत्र के साथ बागवानी बुकलेट भी उपलब्ध कराई जा रही। वैसे यहां पहले से लीची पौधों की बिक्री होती रही है, लेकिन पौधा केंद्र स्थापित होने से उसकी गुणवत्ता, प्रभेद व उसकी उम्र सत्यापित होगी। लीची उत्पादक किसान एक ही जगह पर जरूरत के अनुसार पौधे प्राप्त कर सकेंगे।
एक साथ मिलेंगे छह प्रभेदों के पौधे
एनआरसीएल के निदेशक डॉ. एसडी पांडेय ने कहा कि लीची पौधा केंद्र का संचालन नर्सरी जैसा ही होता है। यहां लीची के छह प्रभेद के पौधे रखे गए हैं। इनमें शाही, चाइना और बेदाना प्रमुख हैं, इनके अलावा अनुसंधान केंद्र की ओर से विकसित गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा व गंडकी संपदा भी उपलब्ध हैं। एक पौधे की कीमत 100 रुपये रखी गई है।
बिक्री के लिए आठ हजार पौधे तैयार
लीची पौधा केंद्र में इस सत्र में 50 हजार पौधे तैयार कर रखने का लक्ष्य है। पहले चरण में सभी प्रभेदों को मिलाकर 20 हजार पौधे तैयार हो रहे हैं। इनकी फरवरी में बिक्री शुरू होगी। पहले से तैयार आठ हजार पौधों की बिक्री चल रही है। किसानों के बीच शाही व चाइना की मांंग सबसे ज्यादा है। एनआरसीएल अन्य प्रभेदों के प्रति भी किसानों को जागरूक करेगा।
कई राज्यों से हो चुकी बुकिंग
मुख्य विज्ञानी ने बताया कि नॉर्थ-ईस्ट के प्रदेशों में लीची के बाग का तेजी से प्रसार हो रहा है। नगालैंड व अरुणाचल प्रदेश से तीन हजार पौधों की मांग है। पिछले सप्ताह मेरठ से नौ हजार पौधों की मांग आई है। इनके साथ पश्चिम बंगाल से पांच सौ पौधों की बुकिंग है। फरवरी तक सभी जगह आपूॢत कर दी जाएगी। इनके अलावा स्थानीय किसान भी संपर्क में हैं।