जिले के सरकारी अस्पतालों के एक भी प्रसव कक्ष मानक पर नहीं
पूर्व से चरमराई जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को नीति आयोग की रिपोर्ट से भी झटका लगा है।
मुजफ्फरपुर : पूर्व से चरमराई जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को नीति आयोग की रिपोर्ट से भी झटका लगा है। नीति आयोग की समीक्षा में पाया गया है कि जिले के अस्पतालों के एक भी प्रसव कक्ष मानक के पूर्णत: अनुरूप नहीं है। इस रिपोर्ट से सदर अस्पताल को आइएसओ (अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन) का फिर से सर्टिफिकेट मिलने में बाधा आ सकती है। इसे देखते हुए सिविल सर्जन डा. विनय कुमार शर्मा ने सदर अस्पताल के उपाधीक्षक एवं सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को निर्देश जारी किया है। इसमें प्रसव कक्ष में नई व्यवस्था बनाने को कहा गया है। एक भी प्रसव कक्ष लक्ष्य प्रमाणीकरण के लायक नहीं : सिविल सर्जन ने जारी पत्र में कहा है कि यह अत्यंत खेदजनक है कि नीति आयोग की समीक्षा में जिले के सरकारी अस्पताल के प्रसव कक्ष मानक पर खरे नहीं उतरे। एक भी प्रसव कक्ष नहीं है जिसका लक्ष्य प्रमाणीकरण कराया जा सके। समीक्षा में यह बात सामने आई कि प्रसव कक्ष का डाक्यूमेंटेशन नहीं होता। इसे देखते हुए प्रसव कक्षों में यह व्यवस्था की जाए। सिविल सर्जन का टास्क
- सभी प्रसव कक्ष इंचार्ज को प्रतिदिन सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक ड्यूटी पर लगाया जाए। प्रसव कार्य के साथ डाक्यूमेंटेशन को सही करें।
- जीएनएम को प्राथमिकता के आधार पर प्रसव कक्ष के ड्यूटी रोस्टर में लगाया जाए।
- आवश्यकता नहीं हो तो स्वास्थ्य उपकेंद्रों से बुलाई गई एएनएम को प्रसव कक्ष से विरमित किया जाए, ताकि कोविड वैक्सीनेशन में बाधा नहीं हो।
- सभी शल्य कक्ष इंचार्ज के रूप में सिर्फ जीएनएम को नामित किया जाए। इससे लक्ष्य प्रमाणीकरण के कार्य को आगे बढ़ाया जा सकता है। सरकारी अस्पतालों के प्रसव कक्ष में इस तरह की आ रही परेशानी
- मरीजों का ट्राई एज नहीं होता। यानी किसका इलाज पहले और किसका बाद में किया जाए, ऐसा नहीं होता।
- एनस्थेटिक चिकित्सक के अवकाश पर रहने पर मरीज को रेफर कर दिया जाता।
- रात के समय आपरेशन नहीं होता। इससे मरीज को रात भर इंतजार करना होता या दूसरे अस्पताल में जाना होता।
- एंबुलेंस की रेफरल व्यवस्था चरमरा गई है।
- आपरेशन के समय खून की कमी से भी बाधा। मरीज के स्वजनों से मांगा जाता है खून। स्वस्थ स्वजन के साथ नहीं रहने से यहां परेशानी आती है।