नहीं कोई भेद, सामाजिक सौहार्द का संदेश

यहां न तो जाति का भेद और न ही छुआछूत की भावना। ऊंच-नीच का नाम तक नहीं। तभी तो बेतिया के न्यू कॉलोनी स्थित शिव मंदिर में पुजारी की जिम्मेदारी सात साल से दलित मेवालाल पासवान उर्फ मेवालाल हाजरा के कंधे पर है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 11:02 AM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 11:02 AM (IST)
नहीं कोई भेद, सामाजिक सौहार्द का संदेश
नहीं कोई भेद, सामाजिक सौहार्द का संदेश

मुजफ्फरपुर। यहां न तो जाति का भेद और न ही छुआछूत की भावना। ऊंच-नीच का नाम तक नहीं। तभी तो बेतिया के न्यू कॉलोनी स्थित शिव मंदिर में पुजारी की जिम्मेदारी सात साल से दलित मेवालाल पासवान उर्फ मेवालाल हाजरा के कंधे पर है। सभी उनसे प्रसाद ग्रहण करते हैं। आदर के साथ प्रमाण करते हैं। देश को जाति के नाम पर बांटने वाले राजनीतिक दलों और अन्य को यह मोहल्ला आईना दिखा रहा है।

बेतिया शहर के न्यू कॉलोनी मोहल्ले में गैर दलितों की आबादी 90 फीसद है। 60 फीसद सवर्ण हैं। यहां मेवालाल ने घर के सामने खाली जमीन पर वर्ष 2000 में शिव¨लग रख पूजा-पाठ शुरू किया था। उनका मकसद था कि लोग वहां कूड़ा-कचरा नहीं फेंके। ऐसा ही हुआ। स्वच्छता का माहौल बनने पर मोहल्ले वाले भी यहां आकर पूजा-पाठ करने लगे। उसके बाद मंदिर बनाने पर सहमति बनी। सभी के आर्थिक सहयोग से 2011 में मंदिर का निर्माण हुआ। इसके बाद सभी लोगों ने मिलकर मेवालाल को ही मंदिर का पुजारी बना दिया। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे जग जाते हैं। मंदिर की साफ-सफाई के बाद पूजा-पाठ करते हैं। यहां कोई जातिगत भेदभाव नहीं दिखता है।

आसपास के लोग देते मिसाल

मेवालाल ने बीते साल अपने सहयोग के लिए एक पुजारी रख लिया है। उनका कहना है कि दलित समुदाय के लोग नेताओं के झांसे में आकर सनातन धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार करते हैं। उनका प्रयास है कि ऐसी ताकतों को पुनीत कर्तव्यों से जवाब दिया जाए। ऐसा हो भी रहा है। आसपास के मोहल्ले के लोग इसकी मिसाल देते हैं। यहां नहीं है कोई भेदभाव

अधिवक्ता रमेश त्रिपाठी बताते हैं कि वोट बैंक के चक्कर में जातिगत व्यवस्था को घृणा में तब्दील कर दिया गया है। नीरज मल्ल का कहना है कि दलित समाज एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। राजनीतिक दल ¨हदुओं को बांटने के लिए दलित, ओबीसी व सवर्ण के बीच दरार पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों को हमारे मोहल्ले की तरफ देखना चाहिए। यहां भेदभाव नाम की कोई चीज नहीं है। दलित और सवर्ण एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। मंदिर का पुजारी सिर्फ ब्राह्माण ही हो सकता है, ऐसा नहीं है। जिसके पास ऐसा ज्ञान होगा, वह बन सकता है।

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