मुजफ्फपफरपुर: शाही व चाइना से ज्यादा वजनदार होता गंडकी संपदा का फल,असाम, पंजाब के किसान की पहली पसंद

शाही व चाइना के बाद अब देश में एनआरसीएल की नई वेरायटी की बढ़ रही मांग। मदर प्लांट के लिए अभी किया जा रहा ज्यादा उपयोग किसान भी ले रहे पौधे। इस वेरायटी की ज्यादा मांग पंजाब पंतनगर उतराखंड व आसाम में ज्यादा है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 11:44 AM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 11:44 AM (IST)
मुजफ्फपफरपुर: शाही व चाइना से ज्यादा वजनदार होता गंडकी संपदा का फल,असाम, पंजाब के किसान की पहली पसंद
अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के तहत अलग-अलग राज्य के सेंटर पर भेजा जा रहा है। फाइल फोटो

मुजफ्फपफरपुर, [अमरेन्द्र तिवारी]। शाही व चाइना वेरायटी से जयादा वजनदार राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) मुजफ्फरपुर की विकसित वेरायटी गंडकी संपदा के फल का एवरेज वजन शाही, चाइना से ज्यादा है। 2015-2019 में इस वेरायटी को विकासित किया गया था। इस वेरायटी की ज्यादा मांग पंजाब, पंतनगर, उतराखंड व आसाम में ज्यादा है।राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक डा.विशालनाथ कहते हैं कि उनकी देखरेख में यह वेरायटी विकसित हुई। परिसर में गंडकी संपदा के 200 पौधे, गंडकी लालिमा के 200 पौधे व गंडकी योगिता के 40 व गंडकी लौंगन के 20 पौधे पर ट्रायल किया गया। बहुत सफल रहा। फल बेहतर रहे। शाही का एवरेज वजन 24 से 25 ग्राम, चाइना का 28 से 29 ग्राम वही गंडकी संपदा का एवरेज वजन 38 ग्राम तक जाता है। उन्होंने कहा कि नई वेरायटी को प्रचार-प्रसार होने में समय लगता है। पांच-दस साल और उससे भी ज्यादा वक्त लगता है। लेकिन संपदा अभी पंजाब, आसाम, उराखंड, पंतनगर इलाके में गई है। इसी तरह से योगिता व लालिमा का भी मदर प्लांटेंशन के रूप ज्यादा प्रसार किया जा रहा है। बीआरएबीयू की शोधार्थी स्वाति सुमन ने कहा कि लीची में बाग व कीट प्रबंधन बेहतर हो तो फल की क्वालिटी अच्छी होती है। मंजर निकलने के समय कीटनाशी का व्यवहार नहीं करनी चाहिए तथा एक तरह के कीटनाशी का उपयोग बारबार न करे। इससे फल पर असर पड़ता है।

मदर प्लाटेंशन के लिए सात राज्य में जा रहे पौधे

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. एचडी पाण्डेय ने कहा कि मुजफ्फरपुर में विकसित लीची की तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा देश के सात अन्य राज्यों के किसानों को आसानी से उपलब्ध हो इसके लिए अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के तहत अलग-अलग राज्य के सेंटर पर भेजा जा रहा है। सभी प्रजातियों के 50-50 पौधे वहां भेजे जाएंगे। वहां की मिट्टी एवं वातावरण के अनुसार इन्हें विकसित किया जाएगा। उसके बाद किसानों को उपलब्ध होगा। डा.पाण्डेय ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय मोहनपुर, पश्चिम बंगाल, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड, आरसीइआर रिसर्च सेंटर नामकुम रांची झारखंड, डॉ. यशवंत सिंघ परमार यूनिवॢसटी ऑफहाॢटकल्चर एंड फोरेस्ट्री सोलन, हिमाचल प्रदेश और सेंट्रल हाॢटकल्चरल एक्सपेरिमेंट स्टेशन, चेट्टाली, कर्नाटक भेजे जाएंगे। इसके साथ केन्द्र से किसान भी आकर ले जाते है। 

chat bot
आपका साथी