गीतों में रचे-बसे प्रभु श्रीराम, शब्दों में धर्म व कर्म का मर्म, मिथिला के पारंपरिक गीतों का खास महत्‍व

Muzaffarpur News विवाह पंचमी को लेकर सात दिनों तक चलता विवाहोत्सव पारंपरिक गीतों का महत्व। गीतों में प्रभु श्रीराम के कोमल स्वरूप से लेकर राजा जनक की वेदना तक की चर्चा। राम-जानकी विवाहोत्सव में पारंपरिक गीतों का महत्व।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 05:14 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 05:14 PM (IST)
गीतों में रचे-बसे प्रभु श्रीराम, शब्दों में धर्म व कर्म का मर्म, मिथिला के पारंपरिक गीतों का खास महत्‍व
विवाह पंचमी को लेकर सात दिनों तक चलता विवाहोत्सव। जागरण

मजफ्फरपुर, {अजय पांडेय}। मिथिला के पारंपरिक गीतों में प्रभु श्रीराम रचे-बसे हैं। शब्दों में धर्म और कर्म का मर्म है। शब्दों में भाव और दर्शन हैं। प्रभु श्रीराम के कोमल स्वरूप का वर्णन है, तो लोक कल्याण की कामना का भी। बेटी को विदा करते विछोह की वेदना है तो बरातियों के लिए गाली गातीं महिलाओं का अंदाज भी। सात दिनों तक चलनेवाले राम-जानकी विवाहोत्सव में पारंपरिक गीतों का खूब महत्व है। जनकपुरधाम के अलावा मधुबनी, सीतामढ़ी और चंपारण में नेपाल से सटे इलाकों में पिछले एक सप्ताह से ऐसे मांगलिक गीत गाए व सुने जा रहे हैं। गीतों की यह शृंखला अब तो अन्य जिलों में भी स्थापित हो रही है।

विवाह के हर प्रसंग पर लिखे गए गीत 

मैथिली साहित्यकार समस्तीपुर के रोसड़ा निवासी परमानंद मिश्र बताते हैं कि मिथिला के वैवाहिक गीतों में परंपरा का दर्शन होता है। साहित्यकारों ने जितनी रचनाएं कीं, उनके भाव में प्रभु श्रीराम, माता जानकी, अयोध्या और मिथिलावासी रहे। प्रभु श्रीराम के जनकपुरधाम आगमन से लेकर विदा होने तक, ऐसा कोई प्रसंग नहीं, जिसपर गीत न लिखा गया हो। पशु-पक्षियों की भाव-भंगिमाओं तक का वर्णन है। 'बड़ रे जतन से, हम सिया धिया पोसलौं...सेहो धिया राम लेने जाए...,Ó इस गीत में राजा जनक की वेदना को समझिए। बेटी को पाल-पोसकर बड़ा करने और शादी के बाद ससुराल के लिए विदा करने की परंपरा की व्याख्या शब्द और भावों में रचा-बसा है।

मैथिली के साथ हिंदी, भोजपुरी व बज्जिका का भी समावेश

भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री शिवहर निवासी डा. अर्चना सिंह बताती हैं कि माता जानकी और प्रभु श्रीराम कण-कण में विद्यमान हैं। उनकी कीर्ति गीतों में दिखती है। विवाह गीत केवल आस्था के नहीं, बल्कि लोकगीत बनकर शादी-विवाहों में गाए जाते हैं। हालांकि, पारंपरिक गीतों में कुछ बदलाव आया है। मैथिली के साथ हिंदी, भोजपुरी व बज्जिका का भी समावेश हुआ है। प्रभु श्रीराम के जनकपुरधाम पहुंचने पर गाया जानेवाला गीत 'आज मिथिला नगरिया निहाल सखिया, चारों दूलहा में बड़का कमाल सखिया...,Ó रोम-रोम हर्षित करता है। 'ए पहुना ए ही मिथिले में रहु ना...Ó इस गीत में साहित्य और मिथिला की अथाह परंपरा है। मिथिला भाषा की जानकार डा. नूतन सिंह बताती हैं कि मिथिला के विवाह गीत में संपूर्ण रसों का प्रदर्शन है। मंडप गीत 'आज जनकपुर में मड़वा, बड़ा सुहावन लागे...Ó मिथिला के अलावा भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में गाया-बजाया जा रहा है।

तिलकोत्सव में हंसी-ठिठोली का दौर 

सोमवार को प्रभु श्रीराम के तिलकोत्सव पर पारंपरिक गीतों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। 'मिथिला से अइले तिलकहरू... सुन हो रघुनंदन हरे...राम के तिलक चढ़ावे, सुन हो रघुनंदन हरे...Ó गीत लोकप्रिय रहा। 'रामजी से पूछे जनकपुर के नारी, बता द बबुआ, लोगवा देत काहे गारी...Ó में हंसी-ठिठोली और मनोरंजक अंदाज दिखा।

chat bot
आपका साथी