मुजफ्फरपुर: राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद अध्ययन में थी एलपी शाही की रुचि

राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद उन्होंने अध्ययन नहीं छोड़ा। उन्होंने राज्य में शिक्षा के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। विद्यार्थियों के लिए कई संस्थानों की स्थापना की। उसके विकास के लिए भी काफी संघर्षरत रहे। बुधवार को उनकी तीसरी पुण्यतिथि है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 11:47 AM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 11:47 AM (IST)
मुजफ्फरपुर: राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद अध्ययन में थी एलपी शाही की रुचि
आजादी के बाद राष्ट्रीय विकास के विभिन्न मोर्चों पर सक्रिय हुए। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, जासं। स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही महान राजनेता और गांधीवादी थे। वे सच्चे अर्थों में ज्ञान के सागर थे। राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद उन्होंने अध्ययन नहीं छोड़ा। उन्होंने राज्य में शिक्षा के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। विद्यार्थियों के लिए कई संस्थानों की स्थापना की। उसके विकास के लिए भी काफी संघर्षरत रहे। बुधवार को उनकी तीसरी पुण्यतिथि है। नौ जून 2018 को 98 वर्ष की आयु में ईश्वर की चरणों में सिधार गए । उनका जीवन देश को समर्पित एक देशभक्त और राजनीतिज्ञ का जीवन था। 98 वर्ष की उम्र में मृत्यु से पांच दिन पहले तक राष्ट्र सेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए पल-पल सक्रिय रहे। किशोर वय में स्वाधीनता आंदोलन के सिपाही के रूप में उन्होंने ङ्क्षजदगी शुरू की। जेल गए और तकलीफें उठाईं। 

आजादी के बाद राष्ट्रीय विकास के विभिन्न मोर्चों पर सक्रिय हुए। बिहार में पहली बार 1947 में जिला परिषद सदस्य का चुनाव जीते और 1949 से 54 तक मुजफ्फरपुर जिला बोर्ड के वाइस चेयरमैन रहे। 1952 मे लालगंज से कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए। बिहार में विधायक और मंत्री के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित किए। उनके नेतृत्व में बिहार ने विकास की अनेक मंजिलें हासिल की। राजीव गांधी मंत्रीमंडल में केंद्रीय मंत्री के रूप में कई दूरगामी और निर्णायक कदम उठाए। बिहार कांग्रेस कमेटी सदस्य अरङ्क्षवद कुमार ङ्क्षसह ने कहा कि शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। कांग्रेस कार्यसमिति के सम्मानित सदस्य के रूप में सारे देश में दौरा कर लोगों की भावनाओं को सार्थक दिशा दिए। शाहीजी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता उनकी मानवीय संवेदनशीलता थी। सब के लिए उनका दरवाजा खुला रहता था। दूसरों को सम्मान और स्नेह देना उनके स्वभाव में था। घर आनेवालों को दरवाजे तक छोड़ते थे। डॉ. श्रीकृष्ण ङ्क्षसह की तरह उन्हें भी पढऩे का बहुत शौक था। अपने सामाजिक जीवन में उन्होंने श्रीकृष्ण जुबली लॉ कॉलेज समेत कई संस्थानों का निर्माण कराया।  

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