समस्तीपुर में मोती उत्पादन ने चमकाई दो युवाओं की किस्मत, कोरोना काल में प्रवासियों को भी दिखा रहे रोजगार की राह

बिहार के समस्तीपुर जिला अंतर्गत दलसिंहसराय प्रखंड के बुलाकीपुर गांव निवासी दो लोगों ने मोती के उत्पादन की नई राह पर कदम बढ़ाया। आज खुद इसमें सफलता का परचम तो लहरा ही रहे इस कोरोना संकट काल में घर लौटे प्रवासियों को घर ही काम करने के योग्य बना रहे।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 11:54 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 07:36 AM (IST)
समस्तीपुर में मोती उत्पादन ने चमकाई दो युवाओं की किस्मत, कोरोना काल में प्रवासियों को भी दिखा रहे रोजगार की राह
सीपों को मोती तैयार करने में लगभग 12 से 18 महीने लगते हैं।

समस्तीपुर, [अंगद कुमार सिंह]। चमकदार मोती हर किसी को आकर्षित करते हैं। हर कोई माला या अंगूठी या माला में इन्हें धारण करना चाहता है। बिहार के समस्तीपुर जिला अंतर्गत दलसिंहसराय प्रखंड के बुलाकीपुर गांव निवासी राजकुमार शर्मा और प्रणव कुमार ने उसी मोती के उत्पादन की नई राह पर कदम बढ़ाने की ठानी और आज खुद इसमें सफलता का परचम तो लहरा ही रहे, कोरोना काल में अपनी रोजी-रोटी छोड़ यहां घर लौटे प्रवासियों को भी इसका प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार की राह दिखा रहे हैं।

अकाउंटेंट की नौकरी छोड़ मोती उत्पादन से जुड़े

राजकुमार बताते हैं कि 2017 में अकाउंटेंट की नौकरी छोड़ इन्होंने मोती उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाया था। उस वक्त इनके निर्णय पर लोगों ने काफी आश्चर्य व्यक्त किया था। यहां तक कि कइयों ने इनकी खिल्ली भी उड़ाई थी। लेकिन, कुछ नया करने की सोच लेकर अपने मित्र प्रणव कुमार के साथ भुवनेश्वर और जयपुर जाकर विधिवत इसका प्रशिक्षण लिया। इसके बाद अपने गांव लौट इसका उत्पादन शुरू किया।

प्रवासियों को दे रहे प्रशिक्षण

प्रणव कहते हैं कि कोराना संकट काल में काफी तादाद में लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है। बाहरी प्रदेशों में कमा रहे लोग बेरोजगार होकर अपने घर वापस आने लगे। इन दोनों ने उन प्रवासियों को मोती उत्पादन का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया। अब एक दर्जन प्रवासी इनसे प्रशिक्षण ले रहे, जिन्हें बुलाकीपुर के अपने प्रशिक्षण केंद्र में ये प्रशिक्षित कर रहे हैं। अभी मोती उत्पादन के बारे में इन्हें सिखाया जा रहा है। इसके बाद सीप से बनने वाले फैंसी आइटम के बारे में भी प्रशिक्षण देने की योजना है। मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पटना आदि जिले के प्रवासी भी प्रशिक्षण को लेकर लगातार इनके संपर्क में हैं।

12 से 18 महीने में तैयार होते मोती

राजकुमार और प्रणव कुमार बताते हैं कि मोती उत्पादन के लिए सीमेंटेड पानी टैंक या तालाब की जरूरत पड़ती है। सीप (ओएस्टर) बाहर से मंगाया जाता है। सीप में छोटी सी सर्जरी कर भुवनेश्वर से मंगाया गया बीज (न्यूक्लियस) डाला जाता है। जालीदार बैग में पांच-छह सीप रखकर उसे तीन से चार फीट गहरे पानी में डाल देते हैं। पानी में पोषक तत्व बढ़ाने के लिए कैल्शियम और शैवाल भी डालते हैं। सीपों को मोती तैयार करने में लगभग 12 से 18 महीने लगते हैं।

कम लागत में ज्यादा मुनाफा

राजकुमार बताते हैं कि एक मोती के उत्पादन से लेकर बाजार तक पहुंचने में करीब 40 रुपये का खर्च आता है। उसी मोती को स्थानीय बाजार में तीन सौ से चार सौ रुपये तक में बेचा जाता है। यहां के मौसम के अनुकूल मोती की तीन किस्में केवीटी मोती, गोनट मोती और मेंटल टिश्यू का उत्पादन किया जाता है। मोती की खेती से ये दो लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं। इसकी बिक्री स्थानीय बाजार सहित बाहर भी होती है।

सीप से भी बनते हैं सजावटी सामान

प्रणव कुमार के अनुसार, एक सीप लगभग 10 से 15 रुपये तक मिलता है। वहीं बाजार में एक से 20 मिमी सीप की मोती की कीमत करीब तीन सौ से लेकर चार सौ रुपये तक होती है। आजकल डिजायनर मोतियों को बेहद पसंद किया जा रहा। सीप से मोती निकाल लेने के बाद मृत सीप को भी बाजार में बेचा जाता है। उस सीप से कई सजावटी सामान तैयार किए जाते हैं। इनमें सीलिंग झूमर, आर्कषक झालर, गुलदस्ते आदि प्रमुख हैं। राजकुमार कहते हैं कि इनपर भी काम करने की योजना है। 

chat bot
आपका साथी