मछली पालन की आधुनिक तकनीक से भर रहें आत्मनिर्भरता की उड़ान
टीवी पर आने वाले कॉमर्शियल विज्ञापन की दुनिया छोड़ राजकुमार झा चार साल से अपने गांव ब्रह्मापुर में नीली क्रांति को बढ़ावा दे रहे हैं। अभी तक वे 200 से अधिक लोगों को मछली पालन की आधुनिक तकनीक से लैस कर चुके हैं।
मुजफ्फरपुर। टीवी पर आने वाले कॉमर्शियल विज्ञापन की दुनिया छोड़ राजकुमार झा चार साल से अपने गांव ब्रह्मापुर में नीली क्रांति को बढ़ावा दे रहे हैं। अभी तक वे 200 से अधिक लोगों को मछली पालन की आधुनिक तकनीक से लैस कर चुके हैं। उन्होंने प्लास्टिक के टैंक में मत्स्य पालन में महारत हासिल की है। यह क्षेत्र में काफी प्रचलित हो रही है।
मधुबनी जिले के घोघरडीहा प्रखंड के राजकुमार ने दिल्ली में रहकर 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद फोटोग्राफी के शौक के चलते विज्ञापन की दुनिया से जुड़ गए। टीवी पर आने वाले विज्ञापन लिखने से लेकर बनाने का काम करने लगे। समय-समय पर जब भी गांव आते मिथिला की मत्स्य पालन की परंपरा खत्म होते देख दुखी होते। इसे उन्होंने पुनर्जीवित करने की ठानी। सात साल पहले दिल्ली में निवास करते हुए उन्होंने हरियाणा व पंजाब सहित अन्य राज्यों में जाकर तालाब के अलावा प्लास्टिक के टैंक में रीसर्कुले¨टग एक्वाकल्चर सिस्टम यानी रैस से मछली पालन की विधि सीखी। इसमें 10 हजार लीटर की क्षमता वाले टैंक में मांगुर, तलापिया एवं पंगसिस सहित अन्य मछलियों का पालन कर सकते हैं। एक टैंक में करीब 2000 मछलियों का उत्पादन एक साल में होता है। एक मछली 800 ग्राम से एक किलो तक होती है। इस पद्धति से साल में 50 हजार तक आमदनी हो जाती है।
यूट्यूब पर मधुबनी रेडियो का संचालन कर देते जानकारी : वे तालाब में भी आधुनिक तकनीक से कम समय में मछली पालन के गुर बताते हैं। ऐसे किसानों से संपर्क कर मछली पालन के लिए प्रोत्साहित करते हैं। राजकुमार रैस विधि के अलावा खुद लीज पर पांच तालाब लेकर मछली पालन कर रहे हैं। वे यूट्यूब पर मधुबनी रेडियो का संचालन कर मछली पालन के अलावा पशुपालन व जैविक खेती की जानकारी देते हैं। इससे तीन हजार किसान जुड़े हैं। उनसे सीखकर मत्स्य पालन कर रहे परसा के शंभू कामत, हरदेव सहनी, सिकंदर सहनी व गुरुदेव सहित अन्य का कहना है कि अब उन्हें रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता है। लोगों को रोजगार से जोड़ना ही मकसद
राजकुमार का कहना है कि उनका मकसद लोगों को रोजगार से जोड़ने के साथ मिथिला की पहचान मछली पालन को बचाना भी है। ब्रह्मापुर स्थित फॉर्म पर प्रतिदिन दर्जनों मत्स्यपालक जानकारी लेने पहुंचते हैं। उन्हें यह देख खुशी हो रही है कि लोग इसके प्रति जागरूक हुए हैं।
जिला मत्स्य पदाधिकारी, सूर्यप्रकाश राम ने बताया कि मत्स्य पालन में आधुनिक तकनीक अपनाए बिना ज्यादा लाभ नहीं मिल सकता। राजकुमार यह काम कर रहे हैं। उनका प्रयास सराहनीय है। विभाग मत्स्य पालन के साथ मुर्गी पालन की योजना भी चला रहा है। इसका लाभ किसान ले सकते हैं।