Memories of Emergency: बिजली मिस्त्री बन सीढ़ी व कटर लेकर निकले और काट दिए टेलीफोन कनेक्शन

25 जून 1977 को देश में लगाया गया था आपातकाल। रेडियो से मिली जानकारी जगह-जगह जुटने लगे आंदोलनकारी। पुलिस से हर जगह होने लगा सामना बचते हुए तेज किया आंदोलन। हर जगह पर तोड़-फोड़ व विरोध और सरकार विरोधी लगने लगे नारे।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 11:45 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 11:45 AM (IST)
Memories of Emergency: बिजली मिस्त्री बन सीढ़ी व कटर लेकर निकले और काट दिए टेलीफोन कनेक्शन
आपातकाल की घोषणा की सूचना आते ही देश का माहौल आंदोलन वाला हो गया था। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, अमरेंद्र तिवारी। 25 जून, 1975 की आधी रात को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आंतरिक आपातकाल की घोषणा की तो सारा मुल्क सो रहा था। सुबह-सुबह आकाशवाणी के हवाले से खबर सुनाई दी। उसके बाद तो पूरा माहौल आंदोलन में बदल गया। इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले जेपी सेनानी रमेश पंकज पुराने दिनों की याद ताजा कर आक्रोश हो जाते हैैं। कहते हैं कि अब शायद ही भारतीय इतिहास में ऐसा देखने व सुनने को मिलेगा। 

नई तालीम विद्यालय परिसर में हुआ जुटान

रमेश पंकज कहते हैं कि बाबू ने रेडियो वाली जानकारी दी। यह भी बताया कि जेपी सहित अनेक शीर्षस्थ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। कन्हौली स्थित नई तालीम विद्यालय परिसर में अचानक सब जुटे और रणनीति बननी शुरू हो गई। तय हुआ कि सभी टेलीफोन लाइन काट दी जाएं। आपातकाल विरोधी नारों से दीवारों को को रंग दिया जाए। एनएच पर पेट्रोल छिड़क आग लगाई जाए। 26 जून को देर रात बिजली मिस्त्री के रूप में उनके साथ एक टोली निकली। बांस की सीढ़ी और कटर लेकर उस टोली में मुख्य रूप से प्रमोद कुमार, गणिनाथ व सुधीर गोशाला से रोहुआ तक टेलीफोन के तार को काट दिया। इससे टेलीफोन संपर्क भंग हो गया। प्रमुख दीवारों पर नारे लिखे गए। दूसरे व तीसरे दिन दिघरा के पास एनएच पर तेल पटाकर आग लगाई गई ।

अचानक पुलिस ने कर दिया घर का घेराव

पंकज बताते हैं कि पटना से पर्चे, बुलेटिन आने लगे और हम सब उसे रात में ही बांट देते थे। रोज दिन कहीं और रात कहीं गुजारनी पड़ी। 29 जून को सुबह घर पर कुछ मंत्रणा करनी थी। नौ-10 साथी भी थे। अचानक तीन थानों की पुलिस ने घर की घेरेबंदी कर दी। सभी भागे मैं और प्रमोद तो भाग निकले, लेकिन मेरे बड़े भाई रत्नेश्वरी नंदन, अनुज उमेश कुमार, शैलेंद्र, कृष्णकांत, शंकर, गणनाथ को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। 17 माह वहीं रहना पड़ा। इसी कड़ी में सैकड़ों साथी जेल गए तो सैकड़ों बाहर रहकर कमान संभालते रहे। चार अक्तूबर, 1975 को समाहरणालय परिसर से पुलिस ने विनोद बाबू के नेतृत्व में सार्वजनिक विरोध मार्च के दौरान रमेश पंकज को भी गिरफ्तार कर लिया।

आपातकाल आंदोलन में ये रहे कुछ प्रमुख लोग

उस समय महान समाजवादी पूर्व मंत्री ठाकुर प्रसाद ङ्क्षसह, पूर्व सांसद महंत श्याम सुंदर दास, रामचंद्र गौड़, पूर्व विधायक साधु शरण शाही, पूर्व विधायक प्रो.अरुण कुमार सिन्हा, पूर्व मंत्री कमल पासवान, पूर्व विधायक गणेश प्रसाद यादव, अधिवक्ता राजाराम प्रसाद जो हमारे बीच नहीं हंै। उनके साथ युवा क्रांतिकारी के रूप में दिन-रात आंदोलन को गति देने वाले अनिल सिन्हा, देवेंद्र प्रसाद, ताराचंद्र शर्मा, डा.हरेंद्र कुमार, रमण कुमार, भानु भाई, पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव, अंजनी कुमार सिन्हा, पूर्व विधायक नलिनी रंजन ङ्क्षसह, सुरेंद्र कुमार, अनिल प्रकाश, अधिवक्ता पराशुराम मिश्रा, चंद्रिका साहू जैसे नेता आज हैं और समाज में अलग-अलग मोर्चा पर युवाओं को नेतृत्व दे रहे हंै।

कब लगा आपातकाल

25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की थी। 25 और 26 जून 1975 की रात आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। यह सब न्यायपालिका के उस आदेश के बाद हुआ था, जिसमें 1971 में इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया गया था।  

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