Bihar News: रसगुल्ले तो बहुत खाए बिहार में, अब टेस्‍ट लीजिए लीचीगुल्ले का; मुजफ्फरपुर में हो रहा तैयार

Bihar News राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी में तैयार हो रहा लीची का रसगुल्ला। इसमें नहीं होता बीज प्रसंस्करण के लिए साइट्रिक एसिड का होता इस्तेमाल।

By Murari KumarEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 05:42 PM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 06:30 PM (IST)
Bihar News: रसगुल्ले तो बहुत खाए बिहार में, अब टेस्‍ट लीजिए लीचीगुल्ले का; मुजफ्फरपुर में हो रहा तैयार
Bihar News: रसगुल्ले तो बहुत खाए बिहार में, अब टेस्‍ट लीजिए लीचीगुल्ले का; मुजफ्फरपुर में हो रहा तैयार

मुजफ्फरपुर, [अजय पांडेय]। रसगुल्ले तो बहुत खाए होंगे, लेकिन अब चाशनी में डूबे लीचीगुल्ला का भी मजा लीजिए। कोई केमिकल नहीं। बस लीची के बीजरहित गुदे और चीनी की चाशनी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुशहरी लीची के स्वाद के साथ पल्प को रसगुल्ले का आकार दे रहा। लीची और रसगुल्ले का यह फ्यूजन नए नाम के साथ स्वाद देगा। इसके शौकीन सालभर लीची का मजा भी ले सकेंगे।  

 विज्ञानी डॉ. अलेमवती पोंगेनर बताते हैं कि ताजा लीची के छिलके को हटाकर स्टील के विशेष चाकू से ऊपरी परत को साफ किया जाता है। फिर, चाकू से ही बीज को ऐसे निकाला जाता है, जिससे वह फटे नहीं। अब बिना छिलका तथा गुठली के लीची पल्प को पानी से धोकर स्टरलाइज किया जाता है। इससे पल्प की अतिरिक्त नमी खत्म हो जाती है। फिर इसे स्टरलाइज्ड डिब्बे में रखा जाता।ऊपर से चाशनी (चीनी, पानी तथा साइट्रिक एसिड का घोल) डालकर डिब्बे को मशीन से एयर टाइट कर दिया जाता है। पैक डिब्बे को भी स्टरलाइज किया जाता है।

 विज्ञानी बताते हैं कि प्रसंस्करण में किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए इसकी सेल्फ लाइफ एक साल तक होती है। अनुसंधान केंद्र इसे अपनी तकनीक पर विकसित कर रहा, जिससे बाजार के अनुकूल बनाया जा सके। अभी इसपर रिसर्चचल रहा, जिससे इसकी सेल्फ लाइफ और स्वाद की परख हो सके। इस उत्पाद में लीची के सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। 

अच्छे फल का चयन जरूरी

लीचीगुल्ला बनाने के लिए अच्छे फल का चयन बेहद जरूरी होता है। समय से पहले तोड़े गए फल में खाने योग्य गूदा कम होता है। ऐसे फल खट्टे और कम गुणवत्ता के भी होते हैं। इसलिए, फल परिपक्व अवस्था वाला होना चाहिए। फलों की त्वचा जब चमकीले लाल रंग और रसीला स्वाद हो तब तोडऩा उचित होता है। इस अवस्था में घुलनशील ठोस पदार्थ (टीएसएस) 18-20 डिग्री ब्रिक्स तथा अम्लता 0.5 फीसद से कम होता है।  

 फल तोडऩे के बाद खेत की गर्मी (फील्ड हीट) दूर करने के लिए पूर्व-शीतलन उपचार होता है। उसके बाद फल को उपयुक्त आकार के मजबूत बक्से में पैक किया जाता है। उसे ठंडे कमरे या शीतगृह में 3-5 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80-90 फीसद आद्र्रता वाले स्थान पर संग्रहित किया जाता है। इसके बाद फल को लीचीगुल्ला के लिए तैयार किया जाता है।

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