रोजगारपरक संस्कृत शिक्षा का बुरा हाल, पश्चिम चंपारण के दर्जनभर संस्कृत विद्यालयों में लटके ताले

West Champaran News रोजगार के अपार संभावना होने के बावजूद भी जिले के संस्कृत विद्यालयों की हालत दयनीय है। कई भवन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। संस्कृत स्कूलों पर नजर डालें तो जिले में 12 संस्कृत विद्यालय हैं। चार उच्च विद्यालय चार मध्य विद्यालय और 2 प्राइमरी विद्यालय है।

By Murari KumarEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 10:28 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 10:28 AM (IST)
रोजगारपरक संस्कृत शिक्षा का बुरा हाल, पश्चिम चंपारण के दर्जनभर संस्कृत विद्यालयों में लटके ताले
पश्चिम चंपारण। बंद पड़ा संस्कृत विद्यालय (फोटो- जागरण)

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। आजादी की पूर्व की अंग्रेजों की शिक्षा नीति जहां देश में बेरोजगारों की फौज खड़ा कर रही है, वही संस्कृत की शिक्षा रोजगार की द्वार खोलती है। शिक्षित बेरोजगारों से हर तबका त्रस्त है। ऐसी परिस्थिति में संस्कृत की थोड़ी भी ज्ञान रखने वाला व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा और आदर तो पता ही हैं अपनी जीविका और रोजी-रोटी भी आसानी से प्राप्त कर लेत हैै।  समाज में पंडितों की घटती संख्या से छोटे-मोटे पंडितों और पुरोहितों की पूछ बढ़ गई है। इसे देख अब विद्यार्थी संस्कृत के प्रति आकर्षित होने लगे हैं।

 हर शुभ अवसर शादी-ब्याह, पूजा-पाठ, यज्ञ हवन, तंत्र मंत्र, आयुर्वेद, धर्मशाला, उपनिषद किसी भी शुभ अवसर का मुहूर्त, कुंडली, ज्योतिष, वेद, भविष्य वाचन, कर्मकांड, लग्न में संस्कृत के विद्वानों की महती भूमिका रहती है। यह भूमिका निभाने वाले संस्कृत के आचार्यों, शास्त्रीयो एवं विद्वानों को न केवल इज्जत और शोहरत मिलता है, वरन अच्छी भी हो जाती है। ग्रहों से संबंधित रत्न और पत्थर बेचने वाले छोटे-मोटे पंडित भी अच्छी आमदनी कर लेते हैं। रोजगार के इतनी सुगम साधन को देख छात्रों के संस्कृत के प्रति ललक स्वभाविक है। 

दयनीय हालत में है संस्कृत विद्यालय

रोजगार के अपार संभावना होने के बावजूद भी जिले के संस्कृत विद्यालयों की हालत दयनीय है। कई भवन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। संस्कृत स्कूलों पर नजर डालें तो जिले में 12 संस्कृत विद्यालय हैं। चार उच्च विद्यालय, चार मध्य विद्यालय और 2 प्राइमरी विद्यालय है। उच्च विद्यालयों में राज्य संस्कृत हाई स्कूल बेतिया, हरिहर संस्कृत उच्च विद्यालय बकुलहर मठ, प्रेम जननी संस्कृत उच्च विद्यालय रामनगर, चंडी संस्कृत उच्च विद्यालय हरपुर का नाम शामिल है। इसके अलावा प्रायर पुरुषोत्तम संस्कृत मध्य विद्यालय कोतवाली चौक बेतिया, लक्ष्मी कुमार मध्य विद्यालय लाल बाजार, सरस्वती संस्कृत मध्य विद्यालय साठी, श्रीराम संस्कृत मध्य विद्यालय नारायणपुरघाट तथा चंडी संस्कृत प्राथमिक विद्यालय बगहा एक व बांसगांव मझरिया में भी संस्कृत का प्राथमिक विद्यालय है।

बाधक है कई समस्याएं

संस्कृत की पढ़ाई और इन विद्यालयों के विकास में कई तत्व बाधक बन रहे हैं। इन विद्यालयों के शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों का वेतन समय से नहीं मिल पाता। सरकार की आकर्षक योजनाओं का लाभ इन विद्यालयों में पल रहे बच्चों को पूरी तरह नहीं मिलता। मध्यमा परीक्षा पास करने पर सरकार ने टीचर ट्रेनिंग कॉलेज में 10 फ़ीसदी सीट आरक्षित की थी। पर अब यह आरक्षण समाप्त कर दी गई है। जबकि मदरसा के लिए आरक्षण मिल रहा है। जिससे संस्कृत विद्यालय को करारा झटका लगा है। 

सड़ रहे हैं दुर्लभ और प्राचीन ग्रंथ

संस्कृत विद्यालयों के पुस्तकालय की दयनीय हालत के कारण इन विद्यालयों में संग्रहित दुर्लभ और प्राचीन ग्रंथ दीमक की भेट चढ़ रहे हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले इन प्राचीन ग्रंथों के कद्रदान और विद्वान इसे नई पीढ़ी के लिए संजोकर रखने और सहेजने की भरपूर कोशिश के बाद भी सरकार का सहयोग न मिलने से स्वयं को इसमें असफल पा रहे हैं। राज संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य हरिमोहन ठाकुर ने बताया कि इनकी विद्यालय के पुस्तकालय में 1200 दुर्लभ ग्रंथ और प्राचीन पुस्तक के हैं, जो जीर्णशिर्ण  अवस्था में पहुंच गए हैं।

 इनकी निजी खर्च से पुस्तकों को मढवाने के बाद भी इसकी पूरी तरह न बचा पाने की विवशता इनके चेहरे से स्पष्ट झलकती है। भावुक हो उठे श्री ठाकुर ने बताया कि दुर्लभ ग्रंथ को अगर हम बचा न सके तो नई पीढ़ी को मुंह दिखाने के काबिल ना रह सकेंगे। संस्कृत के प्राचीन दुर्लभ ग्रंथों हमे प्राचीनता से जोड़ता है और उसका अध्ययन हमारी प्राचीन संस्कृति, कला, खगोल विज्ञान, का स्वर्णिम याद दिलाता है। इनकी महत्ता आज भी न केवल भारत और विश्व में भी हैं।

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