सीतामढ़ी में साजिश के तहत अधिवक्ता की हत्या! न तबियत खराब थी न एक्सीडेंट हुआ फिर भी चली गई की जान
सीतामढ़ी में वकील के संदेहास्पद मौत के बाद उनके भाई ने कराई कत्ल की एफआइआर स्वजनों ने बताया कि उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक थी कुछ परिचित लोग वाहन से आए और उन्हें ले गए। फिर कुछ ही देर बाद मौत की सूचना आई।
सीतामढ़ी, जासं। अधिवक्ता अजीत कुमार उर्फ राकेश के छोटे भाई रविशंकर कुमार ने नगर थाने में अपने भाई के बारे में जो एफआइआर लिखवाई है, उससे यह साफ हो जाता है कि मौत की यह घटना सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। रविशंकर ने साफ-साफ कहा है कि उनके भाई की न तबियत खराब थी न उनका एक्सीडेंट हुआ है बल्कि, साजिशन उनकी हत्या की गई है। क्या कुछ हुआ उस रात रविशंकर ने उस बात का साफ-साफ उल्लेख भी किया है। उन्होंने बताया है कि मेरे अधिवक्ता भाई के साथ गोलू नाम का व्यक्ति मुंशी का काम करता था तथा जूनियर में प्रकाश गुप्ता उर्फ चुन्नू भी करते थे। मंगलवार की अद्र्ध रात्रि गोलू ने मोबाइल से सूचित किया कि आपके भाई वकील साहब की तबियत खराब है, इलाज के लिए मुजफ्फरपुर ले जा रहा हूं। मैंने पूछा कि परिवार के लोगों को खबर है तो उसने कहा नहीं और फोन काट दिया। तब मैं अपने भतीजा शिवम कुमार एवं गुड्डू कुमार के साथ भाभी के डर पर जाकर बताया।
भाभी ने कहा कि मुंशी गोलू व जूनियर प्रकाश गुप्ता डेरा पर आए थे और उन्हें अपने साथ बुलाकर ले गए। उनकी तबियत बिल्कुल खराब नहीं थी। इतना सुनकर हम सभी चार चक्का वाहन से मुजफ्फरपुर के लिए चल पड़े। रुन्नीसैदपुर के पास जनार गांव के आगे पहुंचे तो एक एंबुलेंस रूकी। उससे गोलू व प्रकाश गुप्ता उतरकर बताए कि वकील साहब की मृत्यु हो चुकी है।
मैंने पूछा कि सीतामढ़ी क्यों नहीं दिखलाए कि उनको सीधे मुजफ्फरपुर ही लेकर चल दिए। इसपर गोलू ने कहा कि बीमारी ठीक नहीं होने वाली थी इसीलिए मुजफ्फरपुर लेकर चला गया। मैंने मुजफ्फरपुर के डॉक्टर का पूजा मांगा तो वह हक्का-बक्का होकर भागने लगा। मैंने उसको पकड़ लिया जबकि, जूनियर प्रकाश गुप्ता भागने में सफल रहे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन लोगों के बीच संबंध ठीक नहीं था। साजिश करके हत्या कर इलाज का बहाना बनाकर हमारे परिवार को धोखा देने की कोशिश की है। रविशंकर ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच और न्याय की मांग गुहार लगाई है।
लौटा दो मुझको मेरे पापा, रोती-बिलखती कृति बस यूं ही रट लगा रही
कृति साध्वी अपने पापा के गम में बेसुध-बदहवाश है। जब कोई उसको ढांढस बंधाने जाता वह पापा को लौटाने की ही जिद करती। कहती पापा के लिए हर बेटी परी होती है, उनकी जान होती है। एक बेटी होने के नाते हमेशा से ही मेरा झुकाव पापा की तरफ अधिक रहा और जब कभी मां से डांट पड़ती तो वे अपने पास बुलाकर दुलार दिया करते। मां ने किसी चीज के लिए मना किया, तो चोरी-चुपके पापा वो फरमाइशें पूरी कर दिया करते थे। हर शौक, हर ख्वाहिश मेरे उन्होंने पूरी की। हर छोटी-बड़ी उपलब्धि पर मेरा उत्साह बढ़ाते रहे। जब भी मेरी हिम्मत जरा भी कहीं कम पड़ती दिखाई देती, तो हौसला उन्होंने दिया। ये कहकर कि 'तुम करो, आगे बढ़ो/ मैं हूं ना तुम्हारे साथ, फिर किस बात की चिंता' पापा के इन शब्दों ने जीवन की किसी भी कठिन और असमंजसभरी परिस्थिति में मेरा साथ नहीं छोड़ा। दुगने आत्मविश्वास के साथ मैं आगे बढ़ रही थी। आगे समय चाहे जैसा भी हो, चाहे कोई साथ खड़ा हो न हो, मुझे ये विश्वास था कि पापा हर पल मेरे साथ खड़े रहेंगे। मगर, मुझसे मेरे पापा को कातिलों ने दूर कर दिया।