RIP Rahat Indauri: वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उससे कहो मैं मरा नहीं हूं...
RIP Rahat Indauri दैनिक जागरण के तत्वावधान में आयोजित होनेवाले अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में लोगों का यह प्रिय शायर कई बार दरभंगा आए।
दरभंगा [संजय कुमार उपाध्याय]। RIP Rahat Indauri: अभी लबालब भरा नहीं हूं। वो मुझको मुर्दा समझ रहा है। उससे कहो मैं मरा नहीं हूं। अपना आवारा सर झुकाने को तेरी दहलीज देख लेता हूं। कुछ दिखाई ना दे, काम की चीज देख लेता हूं। उर्दू अदब के शायर डॉ. राहत इंदौरी नहीं रहे। उनके निधन की सूचना से मानो साहित्य की दुनिया का एक पन्ना सिमट गया। इंदौर की माटी पर पले-बढ़े डॉ. इंदौरी ने न सिर्फ अपनी रचनाओं से लोगों के दिलों को गुदगुदाया, बल्कि देश को संजीदा भी किया। मंगलवार को अजीम शायर ने दुनिया को अलविदा कहा तो दरभंगा की अवाम ने भी उन्हें अपनी ताजियत पेश की। इंदौरी साहब की रचना- वो बुलाती है, मगर जाने का नहीं। दुनिया है इधर जाने का नहीं। जमीन भी सर पे रखनी हो तो रखो। चले तो ठहर जाने का नहीं।
दैनिक जागरण के तत्वावधान में आयोजित होनेवाले अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में लोगों का यह प्रिय शायर कई बार दरभंगा आए। 2014 में डॉ. नागेंद्र झा स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में इंदौरी साहब आए तो लोगों को अपनी ओर खींचा। ऐसी छाप छोड़ी कि फिर 2018 में पूरी अदब के साथ यहां पहुंचे।
उ नकी रचना - मैं वो दरिया हूं जिसकी हर बूंद भंवर है जिसकी। तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
शहर की फिजां में, टीवी स्क्रीन पर इंदौरी छाए रहे। लोगों की जुबान पर उनकी रचनाएं रहीं। दैनिक जागरण के अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में इंदौरी को सुन चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री सह जदयू नेता अली अशरफ फातमी कहते हैं- इंदौरी साहब का जाना साहित्य की दुनिया में खालीपन का एहसास कराता रहेगा। उनकी रचनाएं लोगों के जेहन में हमेशा रहेंगी। उनसे मेरा रिश्ता 45 सालों से था। आज वह रिश्ता और दरभंगा में उनके द्वारा पढ़ी गई नज्ब को मैं भुला नहीं सकता।
नगर विधायक संजय सरावगी कहते हैं- राहत इंदौरी एक हस्ताक्षर थे। उनकी कमी हमेशा खलेगी।
केवटी के विधायक डॉ. फराज फातमी कहते हैं जिंदादिली का नाम इंदौरी। उनका नहीं होना सबको सताएगा। लेकिन, वे अपनी रचनाओं के साथ अमर रहेंगे।
सीएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मुस्ताक अहमद बताते हैं- वक्त के साथ शायरी कैसे की जाए और महफिल को समझने की जो सलाहियत राहत इंदौरी के अंदर थी, वह विरले नसीब होती है। उनका जाना शायरी की दुनिया से एक सितारे के टूट जाने जैसा है।