मजदूरी में मिली मौत, धान रोपनी के लिए हरियाणा-पंजाब गए थे सभी खेतिहर-मजदूर

सीतामढ़ी। धान रोपनी के लिए हरियाणा-पंजाब पलायन करने वाले खेतिहर मजदूरों का दर्द एक पुस्तक

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 05:28 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 05:28 PM (IST)
मजदूरी में मिली मौत, धान रोपनी के लिए हरियाणा-पंजाब गए थे सभी खेतिहर-मजदूर
मजदूरी में मिली मौत, धान रोपनी के लिए हरियाणा-पंजाब गए थे सभी खेतिहर-मजदूर

सीतामढ़ी। धान रोपनी के लिए हरियाणा-पंजाब पलायन करने वाले खेतिहर मजदूरों का दर्द एक पुस्तक के जरिये हम जान सकते हैं, जो पिछले साल लॉकडाउन के समय प्रकाशित होकर बाजार में आई थी। इस पुस्तक का नाम है-''रुकतापुर''। इस किताब के लेखक पुष्यमित्र हैं। इसमें हालात का तथ्यपरक विश्लेषण किया गया है। पता चला कि उन दिनों पंजाब-हरियाणा में धनरोपनी का सीजन था, सारे मजदूर वहीं गए थे। मगर, नियति को कुछ और ही मंजूर था। इस बार गए तो शरीर लौटा मगर प्राण ''रुकतापुर'' में ही रूक गए। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में लखनऊ-अयोध्या हाइवे पर हुए बस हादसे में एक साथ पांच लोगों की जान चली गई, दर्जनभर जख्मी हो गए। लॉकडाउन में रोजी-रोजगार की तंगी के चलते ऐसे तमाम मेहनतकश खेतीहर-मजदूर हर कीमत पर पंजाब या हरियाणा चले जाना चाहते हैं, क्योंकि वहां धनरोपनी व कटनी की अच्छी मजदूरी मिलती है। वहां के किसान बिहारी मजदूरों का सम्मान करते हैं। उन्हें सुविधाएं भी देते हैं। यह हम सभी लोगों ने लॉकडाउन में अपनी आंखों से देखा और सुना भी। जब इसलिए हर साल रोपनी और धनकटनी के मौके पर पूरे राज्य से लाखों मजदूर हजारों किलोमीटर दूर मजदूरी के लिए चले जाते हैं। और धनरोपनी-कटनी के बाद लौट आते हैं।

''रुकतापुर'' से समझिए रोजी-रोटी की जद्दोजहद में कितनी बाधाएं मजदूरों की राह में

''रुकतापुर'' किताब इसलिए भी खास है कि इसमें बिहार के उन आम लोगों के हालात को कलमबंद किया गया है। जो विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील तो हैं मगर उनकी राहों में कितनी ही बाधाएं हैं। इसके बहाने बिहार के वंचित तबके की कहानियों को शब्द दिए गए हैं और सच को सामने लाने का प्रयास किया गया है। नीतीश सरकार के पिछले कार्यकाल में एक वक्त ऐसा भी आया था जब मनरेगा में लोगों को ठीक-ठाक काम मिलने लगा था और यहां के मजदूरों ने बाहर जाना बंद कर दिया था। तब पंजाब और हरियाणा के किसान बिहार आकर बैठे रहते थे। मजदूरों की खुशामद करते थे। उन्हें अपने यहां ले जाने के लिए मोबाइल और टीवी गिफ्ट करते थे। उस वक्त न सिर्फ दूसरे राज्यों में बल्कि, बिहार में भी मजदूरी की दर बढ़ गई। इस कोरोना काल में भी ऐसा ही दिखा, जब देश के लगभग हर इलाके की लग्जरी बसें मजदूरों को लेने बिहार के गांव-गांव में घूमती नजर आई। लॉकडाउन की वजह से अचानक मजदूरों के लौट आने से उनके लिए दिक्कत खड़ी हो गई थी।

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