कमला भसीन का शिवहर से भी रहा खास नाता, निधन की खबर से शोक में इलाका

Sheohar News दक्षिण एशिया की प्रख्यात नारीवादी कार्यकर्ता और लेखिका कमला भसीन के निधन से शिवहर में शोक लिंगभेद के खिलाफ आयोजित संवाद कार्यक्रम में भाग लेने दिसंबर 2017 में शिवहर आई थी कमला भसीन ।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 04:28 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 04:29 PM (IST)
कमला भसीन का शिवहर से भी रहा खास नाता, निधन की खबर से शोक में इलाका
शिवहर में कमला भसीन के साथ राइडर राकेश। (फाइल फोटो।)

शिवहर, जासं। ''क्योंकि मैं लड़की हूं, मुझे पढ़ना है ...''। जैसी चर्चित कविता लिखने वाली दक्षिण एशिया की प्रख्यात नारीवादी कार्यकर्ता, समाज विज्ञानी, कवयित्री, लेखिका और गीतकार कमला भसीन का शनिवार को 75 वर्ष की उम्र में नई दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन पर शिवहर में शोक की लहर है। वजह, उनका शिवहर से भी नाता रहा है। पिछली बार वह दिसंबर 2017 में शिवहर आई थी। लिंगभेद के खिलाफ जारी आंदोलन के तहत तरियानी छपरा निवासी राइडर राकेश की ओर से शिवहर में आयोजित कार्यक्रम में वह शामिल हुई थी। तब राकेश राइडर लिंगभेद के लिए 18 राज्यों में साइकिल यात्रा कर चुके थे। उनकी यात्रा का समापन शिवहर में हुआ था। राइडर राकेश, कमला भसीन के बेहद करीब थे।

शनिवार की सुबह उनके निधन की खबर मिलते ही राकेश राइडर विचलित हो गए। राइडर राकेश ने कहा है कि प्रेम और सद्भाव को व्यापक बनाने और स्त्री-पुरुष समानता के लिए पूरा जीवन लगा देने वाली कमला भसीन की मौत पर रोया नहीं करते उनके इरादों, संघर्षों और उनके जीवन को सेलिब्रेट करते हैं। स्त्री-पुरुष समानता पर आधारित परिवार समाज और देश के निर्माण के लिए निरंतर प्रयास ही कमला भसीन के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि कमला भसीन के निधन से देश ही नहीं दक्षिण एशिया ने अनमोल कोहिनूर खो दिया है। बताया कि वह बड़ी शख्सियत थी। अविभाजित भारत के गुजरात जिले के शहीदावाला गांव में 1946 में जन्मी कमला भसीन राजस्थान विवि से स्नातकोत्तर और युनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिंस्टर, जर्मनी से ''विकास के समाजशास्त्र'' में पीएचडी प्राप्त की थी। उन्होंने लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र संघ में काम की।

वह महिलाओं की स्थिति विशेषकर हिंसा और दुर्व्यवहार के विरुद्ध सदैव सक्रिय रहीं। उन्होंने दक्षिण एशिया यानी भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में नारीवादी आंदोलन को मजबूत करने में और स्त्री-पुरुष समानता के पक्ष में कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने पितृसत्ता और नारीवाद पर कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं।

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