Darbhanga news : संघर्ष के इस दौर में तड़पता 'आदमी', मुश्किल है नामुकिन नहीं

Dharbhanga कुछ लोगों की जान गई और फिर जीवन पटरी पर। पर दूसरे दौर में तो आदमी के साथ-साथ आदमीयत भी मरने लगी। पिता को तड़पता छोड़ पुत्र पराए शहर में रहा। मौत पर जब वापस लौटा तो श्मशान भूमि में दाह-संस्कार करने से परहेज कर गया।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 03:24 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 03:24 PM (IST)
Darbhanga news : संघर्ष के इस दौर में तड़पता 'आदमी', मुश्किल है नामुकिन नहीं
कोरोना संक्रमण से बढ़ी लोगों की परेशानी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

दरभंगा, [संजय कुमार उपाध्याय]। आदमी। आदमीयत। फितरत। ये मात्र तीन शब्द नहीं, कोरोना के काल चक्र की कहानी भी है। कोरोना ने संघर्ष का वह दौर दिया, जिससे पार पाना मुश्किल है। नामुमकिन नहीं। पहले चक्र में आदमी की मौत हुई। कुछ लोगों की जान गई और फिर जीवन पटरी पर। पर, दूसरे दौर में तो आदमी के साथ-साथ आदमीयत भी मरने लगी। पिता को तड़पता छोड़ पुत्र पराए शहर में रहा। मौत पर जब वापस लौटा तो श्मशान भूमि में दाह-संस्कार करने से परहेज कर गया। यह शायद किसी एक पुत्र के साथ नहीं था, कईयों के साथ यहीं कहानी। कोरोना के दूसरे चक्र में तेजी से लोगों के मन में डर फैल गया। तभी तो कई शवों को अपनोंं का कंधा ...। अब तीसरे लहर से युद्ध की तैयारी है तो बस इतनी सी गुजारिश है। धैर्य बनाए रखिए। फितरत बदल डालिए। वरना संघर्ष के इस दौर में आदमी तो तड़प ही रहा है।

अब नए ठौर और नई ताकत की तलाश

देवकला देवी के जीवन में शनिवार नई शुभारंभ करा रहा था। कोरोना से पति की मौत के बाद उन्हें सरकार की ओर से चार लाख की आर्थिक सहायता मिली। अब देवकला पति की मौत के बाद अपने पुराने आशियाने के साथ नई ताकत की तलाश करेंगी। जिससे उनका परिवार और उनके बच्चों को भरण पोषण हो सके। वह अकेली नहीं हैं संघर्ष के इस दौर में। इस कोरोना ने तो कई ऐसे लोगों की दुनिया उजाड़ दी, जिनके पास न रहने को घर। नहीं भोजन का उचित इंतजाम है। ऐसे में सूबे की सरकार की ओर से दी जानेवाली चार लाख रुपयों की आर्थिक सहायता अपने रहनुमा को खो चुके लोगों के लिए वरदान जैसा है। लोग चाहते हैं कि इस राशि को देने में देरी नहीं हो और जिसे भी दी जानी है उसे शीघ्र मिले। ताकि नई ताकत के साथ नया ठौर तय हो जाए।

साहेब का मौनव्रत और 'अनाज के चोर'

विचित्र लीला है पापी पेट की। किसी को पेटभर अनाज नसीब नहीं होता। कोई अनाज सड़ा देता है। सड़े अनाज का सौदा कर लेता है। शायद गरीबों की बस्ती से अन्नपूर्णा नाराज हैं। तभी तो गरीबों की थाली का अनाज कालाबाजार में होता है और वो उसी बाजार से दूसरा अनाज खरीदते हैं और खाते हैं। साहेब के नाक के नीचे सालों से चल रहा गरीबो के अनाज चोरी का यह धंधा लगातार जारी है। आश्चर्य कि साहेब को पता नहीं चलता कि माफिया कौन है। लोग और जांच अधिकारी तो यह मान चुके हैं कि कहां से कैसे खेल चल रहा। साहेब तक रिपोर्ट भी चली गई है। पर यकीन से परे पर हकीकत तो यहीं है कि जिस पर शक की सूई है वहीं रखवाला बन बैठा है। फिर गरीबों का अनाज तो ....।

जानवर नहीं कम से कम आदमी का मोल तो समझिए

कोरोना के नाम पर खौफ का खेल विचित्र है। जिले के सबसे बड़े अस्पताल में जाने के साथ यह भ्रम साफ हो जाता है कि व्यवस्था पर अव्यवस्था किस कदर हावी। एक तरफ दिन रात सरकार और जिले के हाकिम लोगों की प्राण रक्षा के लिए लगातार साफ-सफाई और जागरूकता अभियान पर जोर दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अस्पताल की पुरानी अव्यवस्था आदमी को स्वस्थ करने के लिए बने अस्पताल परिसर में जानवरों को मरता देखते रहती है। जबतक जानवरों को शव सड़कर बदबू नहीं फैलाता तबतक यहां की कुंभकर्णी ङ्क्षनद्रा नहीं टूटती। उपर से लाचार आदमी अपनी पीड़ा के साथ मरे जानवर के लाश के बगल से होकर मरीज के पास पहुंचता है। इलाज कराता है। जबतक मरीज इस अस्पताल में भर्ती रहता है तबतक स्वजन भगवान की दुहाई देते हैं। वरना यहां तो ....।

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