इमाम हुसैन ने शहादत देकर की इस्लाम व इंसानियत की हिफाजत
मोहर्रम की नौ तारीख को जगह-जगह मजलिस का आयोजन कर इमाम हुसैन व 72 साथियों की शहादत को बयान किया गया। शिया समुदाय ने शहीदों के लिए मातम कर अपने गम का इजहार किया।
मुजफ्फरपुर। मोहर्रम की नौ तारीख को जगह-जगह मजलिस का आयोजन कर इमाम हुसैन व 72 साथियों की शहादत को बयान किया गया। शिया समुदाय ने शहीदों के लिए मातम कर अपने गम का इजहार किया। इस दौरान शिया उलेमाओं ने कहा कि इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में शहादत देकर पूरी इंसानियत को बचा लिया। हुसैन ने 72 साथियों के साथ अपने जान की कुर्बानी दे दी, मगर बुराई के सामने सिर नहीं झुकाया। इमाम हुसैन पैगंबर-ए- इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल.) के नवासे और हजरत अली व बीबी फातमा के पुत्र थे। कर्बला के मैदान में धर्म और अधर्म के बीच युद्ध हुआ। एक तरफ यजीद की फौज थी, वहीं दूसरी तरफ इमाम हुसैन और उनके परिवार वह खानदान के 72 लोग थे। यजीद अधर्म के रास्ते पर चल रहा था। हुसैन अपने पूरे परिवार को सम्मान के साथ जब कर्बला पहुंचे तो यजीद ने फुर्रात नदी और नहरों पर फौज का पहरा बैठा दिया। सैनिकों को आदेश दिया कि हुसैन और उनके परिवार के किसी सदस्य को एक बूंद भी पानी नहीं दिया जाए। भूखे-प्यासे तीन दिन गुजर गए। इमाम हुसैन के परिवार के छोटे और मासूम बच्चे प्यास से तड़पने लगे। मोहर्रम की 10 वीं तारीख (यौम ए आशुरह) को हुई। इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए। करबला का दर्दनाक वाकया सुन लोग फफक कर रो पड़े। यौम-ए-आशूरा आज, नहीं
निकाला जाएगा मातम जुलूस
मोहर्रम की दस तारीख यौम-ए-आशुरा के मौके पर आज शिया समुदायों द्वारा जगह-जगह मजलिस का आयोजन होगा। कोरोना को लेकर सरकार के गाइडलाइन का पालन करते हुए मातम जुलूस नहीं निकाला जाएगा। लोग अपने घरों में ही मजलिस मातम करेंगे एवं बारी-बारी से करबला पहुंच कर अकीदत पेश करेंगे। उलेमाओं ने भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए भीड़ से बचने व घरों में ही मजलिस मातम करने की अपील की है।