प्रभु श्रीराम के मिथिला आगमन से जुड़ा मध्यमा परिक्रमा का इतिहास, जान‍िए कहां-कहां होती है पर‍िक्रमा

Madhubani News मध्यमा परिक्रमा के सभी धार्मिक स्थानों का प्रभु श्रीराम व माता जानकी के विवाह से जुड़ा है इतिहास प्रभु श्रीराम व माता सीता के डोला के साथ भारत और नेपाल के विभिन्न धार्मिक स्थलों से गुजरती है यात्रा 84 कोस की होती परिक्रमा।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 03 Mar 2022 04:41 PM (IST) Updated:Thu, 03 Mar 2022 04:41 PM (IST)
प्रभु श्रीराम के मिथिला आगमन से जुड़ा मध्यमा परिक्रमा का इतिहास, जान‍िए कहां-कहां होती है पर‍िक्रमा
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से शुरू होने वाली इस यात्रा का समापन पूर्णिमा के दिन होता।

मधुबनी {राजीव रंजन झा}। अयोध्या में 84 कोस की परिक्रमा का माहात्म्य तो सभी जानते हैं। मिथिला में भी एक ऐसी ही परिक्रमा होती है। इसका नाम मिथिलाधाम मध्यमा परिक्रमा है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से शुरू होने वाली इस यात्रा का समापन पूर्णिमा के दिन होता है। इस बार यह यात्रा तीन मार्च को नेपाल के कचुरीधाम से शुरू हो रही है। इस परिक्रमा का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है। जब प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला के तत्कालीन राजा जनक के द्वारा आयोजित धनुष यज्ञ में भाग लेने के लिए मिथिलाधाम पधारे थे। राजा जनक के दरबार में पहुंचने से पहले प्रभु श्रीराम ने अनुज व गुरु के साथ नगर दर्शन किया था। प्रभु ने नगर दर्शन के दौरान जहां-जहां विश्राम किया, परिक्रमा के दौरान उन सभी स्थानों पर श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह पूरी यात्रा 84 कोस की होती है। परिक्रमा में भारत-नेपाल के संत, साधु व श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

इन स्थलों पर होती परिक्रमा यात्रा 

1. कचुरीधाम

शुरूआती दिनों में परिक्रमा के लिए प्रभु श्रीराम का डोला नेपाल के जनकपुर स्थित अग्निकुण्ड से निकलता था। अग्निकुण्ड विदेह राज का यज्ञ स्थल था। हालांकि, कुछ दिनों बाद अग्निकुण्ड के महंथ डोला निकालने का जिम्मा अपने गुरुभाई कचुरीधाम के महंथ राम नरेश शरण को देकर परलोक सिधार गए। तब से प्रभु का डोला कचुरीधाम से निकलने लगा। यह स्थल नेपाल में है।

2. हनुमानगढ़ी

कचुरीधाम से डोला निकलने के बाद सबसे पहले राजा जनक के दरबार में पहुंचता है। वहां से किशोरीजी के डोला को साथ लेकर श्रद्धालु पहले दिन हनुमानगढ़ी में रात्रि विश्राम होता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में जनकपुरधाम के द्वार पर साक्षात बजरंगबली पहरेदारी करते थे। इसलिए इस स्थान को हनुमानगढ़ी के नाम से जाना जाता है।

3. कल्याणेश्वर स्थान

भारत-नेपाल सीमा पर हरलाखी प्रखंड क्षेत्र में यह स्थान काफी प्रसिद्ध है। प्राचीन मिथिलाधाम के इस प्रवेश द्वार पर राजा जनक ने कल्याणेश्वर महादेव की स्थापना की थी। दूसरे दिन की यात्रा का विश्राम इस स्थल पर होता है। यात्रा का संकल्प भी इसी स्थान पर होता है।

4. गिरजा स्थान फुलहर

हरलाखी प्रखंड अंतर्गत गिरजा स्थान फुलहर वह स्थान है जहां माता सीता प्रतिदिन मां गिरजा के पूजन को आती थी। यहीं वह फुलवारी थी जिसमें माता सीता और प्रभु श्रीराम ने एक-दूसरे को पहली बार देखा था। इसी से इस जगह का नाम फुलहर पड़ा।

5. मटिहानी

मधवापुर प्रखंड के निकट भारत-नेपाल सीमा पर स्थित यह स्थल काफी प्रसिद्ध है। माता सीता व प्रभु श्रीराम के विवाहोत्सव की रस्म मटकोर के लिए इसी जगह से मिट्टी लाई गई थी। इससे इस जगह का नाम मटिहानी पड़ा।

6. जलेश्वर स्थान

जलेश्वर स्थान प्राचीन मिथिलाधाम का दूसरा प्रवेश द्वार माना जाता है। जलेश्वर महादेव की स्थापना भी राजा जनक ने ही की थी। बता दें कि मिथिलाधाम के चारों प्रवेश द्वार पर राजा जनक ने शिवलिंग की स्थापना की थी जो आज भी विद्यमान है।

7. मडै स्थान

नेपाल में स्थित मड़ै स्थान का विशेष महत्व है। माता सीता व प्रभ श्रीराम के विवाहोत्सव के लिए जो मंडप बनाया गया था, उसके लिए खड़ मड़ै स्थान से ही आया था।

8. ध्रुवकुंड

ध्रुवकुंड नेपाल में स्थित है। इसी जगह पर महर्षि ध्रुव ने तपस्या की थी। नगर भ्रमण के दौरान प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरु विश्वामित्र के साथ यहां पहुंचे थे और विश्राम किया था।

9. कंचनवन

नेपाल स्थित कंचनवन का मिथिला की लोक संस्कृति में विशेष महत्व है। मिथिला आगमन पर इसी जगह प्रभु श्रीराम ने होली मनाई थी।

10. छिलेश्वर महादेव

प्राचीन मिथिलाधाम के तीसरे प्रवेश द्वार पर छिलेश्वर महादेव विराजते हैं। इनकी स्थापना भी राजा जनक ने की थी। यह स्थल नेपाल में स्थित है। यहां पर्याप्त जगह के अभाव में यहां पहुंचने के बाद यात्रा का विश्राम पर्वता नामक जगह पर होता है।

11. धनुषा

नेपाल स्थित यह स्थल काफी महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि स्वयंवर के दौरान जिस शिव धनुष को प्रभु श्रीराम ने तोड़ा था उसका मध्य भाग इस स्थल पर गिरा था। यहां आज भी धनुष की प्रस्तर आकृति है जो निरंतर विकसित हो रही है। इसे लोग धनुषा पहाड़ कह कर बुलाते हैं। यहां पूरे साल दूरदरजा से श्रद्धालु पहुंचते रहते हैं।

12. सतोषर स्थान

आदिकाल में यहा सप्त ऋषि का आश्रम था। मिथिला आगमन पर गुरु विश्वामित्र प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण को इस स्थल पर लाए थे। यहां इनलोगों ने विश्राम किया था। यह स्थल भी नेपाल में पड़ता है।

13. करुणा

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित करुणा हरलाखी प्रखंड में पड़ता है। मिथिलांचल में विवाह के बाद बेटी को पानी पिलाकर विदा करने की परंपरा रही है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर माता सीता को मैथिलानियों ने पानी पिलाकर अंतिम विदाई दी थी।

14. विशौल विश्वामिश्र आश्रम

हरलाखी प्रखंड में विशौल पड़ता है। कहा जाता है कि मिथिला आगमन के दौरान मिथिलाधाम में प्रवेश से पहले विशौल में गुरु विश्वामित्र प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण के साथ रुके थे और रात्रि विश्राम किया था।

15. जनकपुरधाम

मिथिलाधाम की राजधानी जनकपुरधाम हुआ करती थी। यहां आज भी माता जानकी का मंदिर विराजमान है जो विश्व प्रसिद्ध है। माता जानकी मंदिर की परिक्रमा के उपरांत ही यात्रा संपन्न होती है और उसी दिन मिथिला में होलिकादहन मनाया जाता है। जनकपुरधाम में माता जानकी मंदिर के अलावा विवाह मंडप, श्रीराम दरबार, राजा जनक दरबार समेत कई दर्शनीय स्थल हैं।

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