दरभंगा में ढीले पड़ने लगे 'काले धन' की इंजीनियर‍िंग के पेंच, कागज पर काम जेब में माल

दरभंगा के इंजीन‍ियर के पास 67 लाख मिलने के बाद लगातार जांच पड़ताल जारी है। जब आर्थिक अपराध ईकाई की चाबुक चली तो कई लोगों के होश ठिकाने लगने लगे । पकड़े जाने के बाद इजीन‍ियार ने जिस ताले को अभेद्य समझा था उसी का पर्दाफाश होने लगा है।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 04:39 PM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 04:39 PM (IST)
दरभंगा में ढीले पड़ने लगे 'काले धन' की इंजीनियर‍िंग के पेंच, कागज पर काम जेब में माल
दरभंगा में काले धन के मामलेे में इजीन‍ियर पर नकेल। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

दरभंगा, {संजय कुमार उपाध्याय} । 'काला धन' और उसे खपाने की सोशल इंजीनियर‍िंग की बयार ने जिले की हवा गरमी ला दी है। वजह यह कि जब गांव की सड़क बनाने के नाम पर जब काला धन जमा किया जा रहा था तो हर स्तर पर उसके पेंच (राजदार) टाइट कसे जाते थे। कोशिश ऐसी कि चाहे जो हो जाए बस जुबान न खुलने पाए। जुबान खुली तो फिर हंगामा हो जाएगा। सो पेंच कसने के लिए भी शाम, दाम, दंड भेद वाले हथकंडे अपनाए गए। फिर भी विधि के लेख के आगे किसकी चली है। काला धन खपाने के माहिर खिलाड़ी साहेब जब स्वयं पड़ोसी जिले में लाखों के साथ दबोचे गए तो सबके होश उड़ गए। 67 लाख मिलने के बाद अब जब आर्थिक अपराध ईकाई की चाबुक चली तो अच्‍छे-अच्‍छों के होश ठिकाने लगने लगे हैं। बात निकली तो यह है कि साहेब ने जिस ताले को अभेद्य समझा था वहीं खुलने को है....।

पहले कागज पर काम जेब में माल, अब तौबा-तौबा कह रहे ....

मिथिला के लोगों की सरलता कई बार उन्हें धोखा दे जाती है। चालाक उनका हक मार जाते हैं और वो समझ नहीं पाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ गांव की सड़कों के साथ। गांव में कहावत है बाढ़ में सरकारी धन का वारा-न्यारा खूब होता है। इस कहावत को गाड़ी से लेकर घर तक 67 लाख कैश रखनेवाले इंजीनियर साहेब ने चरितार्थ किया। ऐसा नहीं था कि वो अकेले इस खेल को खेल रहे थे। इसमें कनीय, सहायक और कार्यपालक भी साथ दे रहे थे। कागज पर सड़क बन रही थी। भुगतान भी हो रहा था। जब मामला फंसा और बड़े साहेब पर शिकंजा कसा तो बीच के लोग साधारण बात पर भी तौबा-तौबा करने लगे। कहने लगे- अरे! भाई अभी फंसे हैं। जांच की जद में हैं छोड़ दीजिए।

ये भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी

पंचायत चुनाव है। प्रत्याशियों की धमा-चौकड़ी है। इस धमा-चौकड़ी पर भारी है मतदाताओं की खामोशी। पिछले पांच साल के काम। पहले पंचायत चुनाव। बीच का दौर और फिर वर्तमान की समीक्षा करते मतदाता भविष्य गढऩे को तैयार हो रहे हैं। दिलचस्प यह कि इस बार के चुनाव में पुराने चेहरों के बीच नए धनसेठ भी दस्तक दे रहे हैं। गुदरी के लाल भी किस्मत आजमा रहे हैं। सो, सभी एक दूसरे की पोल खोल रहे हैं। गांव की सरकार चुनने का अवसर है, सो लोग बड़े चैन से सबको पढ़ रहे हैं। कभी-कभी तो हालत ऐसी हो जाती है कि एक की कौन कहे दूसरे और तीसरे दावेदार भी एक साथ एक ही स्थान पर जमा होने लग रहे हैं। इस स्थिति में लोग ही प्रत्याशियों को संभालते हैं। बताते हैं देखिए। आपके आगे और पीछे दोनों तरफ आपके प्रतिद्वंदी हैं।

ये जो नशे की दुकानवाली भीड़ है ....

सरकार ने बंदिशें कायम कर दी हैं। शराब नहीं बिकेगी। सो, नशे की दुकान और इसके सौदागरों ने अपनी दुकान को कुछ इस तरह संभाला है कि सबकुछ सेट हो गया है। शराब नहीं मिली तो गांजा। गांजा न मिला तो भांग। वो भी न मिला तो किताब की दुकान पर बिकनेवाला व्हाइटनर। दरअसल इन दिनों शहर की युवा पीढ़ी ने नशे के नए तरीके निकाल रखे हैं। युवा इन दिनों सबसे ज्यादा व्हाइटनर का उपयोग कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें कहीं दूर नहीं जाना होता, मोहल्लों की पान-सिगरेट की दुकान पर भी यह आसानी से डिमांड पर मिल जाता है। जानकार बताते हैं पुलिस तो शराब के खिलाफ कार्रवाई करती है। लेकिन, व्हाइटनर सूंघने के बाद होनेवाले नशे को नहीं पकड़ा जा सकता। इसमें तो दुर्गंध आता नहीं। पर, नशा इतना खतरनाक है कि नशे में चूर युवक अचानक से ङ्क्षहसक हो जाते हैं। जहां-तहां मारपीट होने लगती है। लोग कहते हैं अब इसकी जांच जरूरी है।

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