East Champaran: नेपाल में दशहरा पर दो सप्ताह तक रहता उत्सव का माहौल
नेपाल में ऐतिहासिक होता है दशहरा गढ़ी माई मंदिर में दी जाती है पशुओं की सर्वाधिक बलि पांच वर्षों में एक बार लगता है मेला षष्टी के दिन नेपाल सेना के सैनिक बैंड बाजा के साथ निकालते हैं डोली दशहरा के त्योहार को नेपाल में कहा जाता है बड़ा दशई।
रक्सौल {विजय कुमार गिरि}। नेपाल में दशहरा के दौरान दो सप्ताह तक उत्सव का माहौल रहता है। भारत का पड़ोसी देश नेपाल है जिसका प्रमुख त्योहार दशहरा भी है। इस त्योहार को नेपाल में बड़ा दशई कहा जाता है। कलश स्थापना के साथ पूजा -अर्चना शक्तिपीठों और घरों में की जाती है। सप्तमी से एक दिन पूर्व के दिन माता की डोली के साथ श्रद्धालु नगर भ्रमण करते हैं। भारत-नेपाल सीमा के पर्सा जिला वीरगंज में ऐतिहासिक गहवा माई, जिसे द्वारदेवी माई स्थान के नाम से लोग जानते हैं। यहां फुलापाति यानी खष्टी के दिन नेपाल सेना के सैनिक बैंड बाजा के साथ डोली लेकर निकलते हैं।
पर्सा जिला में स्थित विन्ध्यवासिनी माई स्थान है। इस मंदिर में प्रतिदिन एक पशु यानी बकरा, कबूतर, मुर्गा, भैंसा आदि की बलि अनिवार्य रूप से श्रद्धालु करते हैं। जिस दिन बलि नहीं हुआ, उस दिन मंदिर की ओर से बलि देने के बाद संध्या आरती के उपरांत ही कपाट बंद होता है। इसके अलावा बारा जिला के बरियारपुर में गढ़ी माई स्थान है। यहां पांच वर्षों में एकबार मेला लगता है। इस मेले में देश- विदेश से लोग पहुंचते हैं। मन्नतें पूरी होने पर बलि देते हैं। यहां दुनिया की सर्वाधिक पशुओं की बलि होती है। इस स्थल पर भी दशहरा के समय साधक पूजा -अर्चना करने पहुंचते हैं।
वीरगंज के द्वार देवी स्थान यानी गहवा माई मंदिर में सीमावर्ती रक्सौल अनुमंडल के विभिन्न प्रखंडों के पंचायतों और बेतिया, मोतिहारी जैसे प्रमुख जगहों से इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सेना के जवान भथुवा की बलि देते हैं। उसके उपरांत पशुओं की बलि भी होती है। तांत्रिक और वैदिक विधि से पूजा-अर्चना किया जाता है। दशहरा में नेपाल के विभिन्न जिलों में शक्तिपीठों में सरकारी खर्च पर प्रथम पूजा की जाती है। इसके उपरांत मंदिर का पट खुल जाता है। बता दें कि सीमावर्ती क्षेत्र के उक्त दोनों मंदिरों में वर्ष में एक बार नेपाल के पूर्व राजा के परिवार के लोग पूजा- अर्चना के लिए पहुंचते हैं। दोनों मंदिरों का दो सौ वर्ष पुराना है। इधर कोरोना संक्रमण काल में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र और महारानी दो वर्षों से पूजा के लिए नहीं आये हैं।
नित्य बनता है पकवान
नेपाली नागरिक दशहरा में नित्य पकवान बनाते हैं। नव वस्त्र और ईस्ट मित्रों को खिलाने और खाने की परंपरा है। जिसमे पहाड़ी समुदाय में प्रतिदिन मांसाहरी भोजन और स्थानीय भाषा में रक्सी यानी शराब पीने-पिलाने की व्यवस्था प्रत्येक घरों में रहती है।
दशहरा में रहती है लंबी छुट्टी
नेपाल में दशहरा पूजा में सात दिनों तक छुट्टी रहती है। सरकारी- गैर सरकारी दफ्तरों और अखबार के दफ्तर तक बंद रहते हैं। सूचनाओं के आदान-प्रदान भी सरकारी कार्यालयों से नहीं होता है।
पौराणिक काल से ही नेपाल में 15 दिनों तक मनाया जाता है दशहरा
पौराणिक काल से ही नेपाल में 15 दिनों तक दशहरा मनाया जाता है। इस दौरान जयंत्री विसर्जन के उपरांत कुंआरी कन्याओं की पूजा की जाती है। परिवार के बड़े सदस्यों से आशीर्वाद लिया जाता है। घर के सदस्य जयंत्री देकर चंदन लगाकर आशीर्वाद देते हैं। इस के साथ ही भाई टीका शुरू होता है जो पूर्णिमा तक चलता है।