मुजफ्फरपुर नगर निगम में चार माह की कुर्सी पाने की बेकरारी

चार माह की कुर्सी के लिए एक-दो चेहरे सामने से हैं तो पीछे से भी। सामने वाले चेहरे यह नहीं बता पा रहे कि चार माह में क्या करेंगे। उन्हें बस कुर्सी चाहिए। पीछे में एक वह भी हैं जिनका इस कुर्सी पर लंबे समय से प्रभाव रहा है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 22 Nov 2021 10:35 AM (IST) Updated:Mon, 22 Nov 2021 10:35 AM (IST)
मुजफ्फरपुर नगर निगम में चार माह की कुर्सी पाने की बेकरारी
विकास की जगह कुर्सी की ही लड़ाई चलती रही।

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। शहरवासियों ने शहर के विकास के लिए लगभग पांच साल पहले प्रतिनिधियों को चुना था। आशा थी कि बेहतरी के लिए काम होंगे। शहर साफ-सुथरा होगा। जलजमाव का दर्द कम होगा। व्यवस्थाएं बेहतर होंगी, मगर यह सब सपना ही रह गया। विकास की जगह कुर्सी की ही लड़ाई चलती रही। अब जबकि इस कार्यकाल के महज चार माह बचे हैं। इसमें भी कुर्सी की ही लड़ाई जारी है। शहरवासियों को इसका भान है कि उनके सपनों की फिर सौदेबाजी हो गई। चार माह की कुर्सी के लिए एक-दो चेहरे सामने से हैं तो पीछे से भी। सामने वाले चेहरे यह नहीं बता पा रहे कि चार माह में क्या करेंगे। उन्हें बस कुर्सी चाहिए। पीछे में एक वह भी हैं जिनका इस कुर्सी पर लंबे समय से प्रभाव रहा है। वे बस प्रभाव ही रखना चाहते। हिसाब की बारी आती है तो वे दूसरे से ही मांगते हैं। इसके बाद भी कुर्सी की बेकरारी...।

बद अच्छा, बदनाम बुरा

एक साहब ने कुछ माह पहले कुर्सी संभाली है। अभी उपलब्धि लायक कोई काम सामने नहीं आया, मगर शिकायतों की झड़ी लग गई है। जिले से लेकर राज्य स्तर तक चिट्ठियां लिखी जा रही हैं। कहा जा रहा है कि पहले की पोङ्क्षस्टग वाली जगह से उनके साथ एक व्यक्ति आए हैं। साहब के आवास तक पहुंच होने से खुलकर भयादोहन कर वसूली का आरोप लग रहा है। प्रधान सचिव के यहां भी शिकायत पहुंच गई है। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में बड़े साहब के सामने भी इसकी चर्चा छिड़ी। कहा गया, साहब किसी सवाल या आरोप का जवाब ही नहीं देते। इस शिकायत में सच्चाई है या नहीं, यह तो जांच का विषय है, मगर कुछ समय के कार्यकाल में ही बदनामी साहब के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।

वाटरलू बन गई नल का जल योजना

सात निश्चय योजना में नल का जल ग्रामीणों के साथ पंचायत जनप्रतिनिधियों के लिए संजीवनी थी। खासकर मुखियाजी के लिए। कब धन-धान्य से परिपूर्ण हो गए पता ही नहीं चला। लगा इसी धन-बल से फिर कुर्सी पा लेंगे। मैदान में इसी आशा से उतरे, मगर नल का जल योजना ही उनके लिए ÓवाटरलूÓ साबित हो गई। अब तक हुए पंचायत चुनाव में इतनी संख्या में निवर्तमान मुखिया की हार नहीं हुई थी। 90 प्रतिशत से अधिक निवर्तमान की कुर्सी छिन गई। जनता को यह पता था कि पानी उनके घर नहीं पहुंचा। इस मद की राशि से पंचायत प्रतिनिधियों के घर धन वर्षा हुई। जनता ने अपना निर्णय सुना दिया, मगर योजना की मानीटङ्क्षरग करने वाले पदाधिकारियों की नजर कभी इसपर नहीं पडऩे से सवाल जरूर उठ रहा है। सवाल यह उठ रहा कि इस बारिश का छींटा तो वहां तक नहीं पहुंच रहा था।

नेताजी को चाहिए तीन सवाल के जवाब

नेताजी पांच साल तक माननीय रहे। दोबारा कुर्सी नहीं मिली तो पाला बदल लिया। तीर वाली पार्टी से निकलकर पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान लालटेन थाम ली। आशा थी कि चुनाव बाद पुरानी वाली कुर्सी मिल जाएगी, मगर यहां भी निराशा हाथ लगी है। दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में लालटेन वाले दल ने उनके हमनाम को उम्मीदवार बनाया तो उन्हें बधाइयां मिलने लगीं। उन्हें बताना पड़ा कि वे वो नहीं हैं। परिणाम पार्टी के पक्ष में नहीं आया। अब नेताजी से तीर वाले ने चुटकी ली, आगे क्या इरादा है। पार्टी से पुराने संबंध का हवाला देते हुए नेताजी अब ÓमुखियाÓ से तीन सवालों के जवाब चाह रहे हैं। इसमें महत्वपूर्ण सवाल यह कि दोबारा कुर्सी क्यों नहीं दी? जवाब से संतुष्ट कर दिया जाए तो उनकी घर वापसी भी हो सकती है। चूंकि अभी विधानसभा चुनाव में लंबा समय है। इसलिए नेताजी को जवाब के लिए लंबा इंतजार भी करना पड़ सकता है।

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