Darbhanga: डीएम होने के बाद भी नहीं भूले डॉक्टर का धर्म, कोरोना संक्रमण के बीच की लोगों की मदद
भारतीय प्रशासनिक सेवा 2011 बैच के दरभंगा के जिलाधिकारी ने एमबीबीएस की पढ़ाई का लाभ जन-जन तक पहुंचाया। कोरोना संक्रमण के बीच जिले में बाढ़ के वक्त गए गांव-गांव लोगों की समस्याओं का किया समाधान। 16 सितंबर को हुए संक्रमित क्वारंटाइन से निकलकर फिर की लोगों की मदद।
दरभंगा [संजय कुमार उपाध्याय]। ऐसे तो इस काम के बदले इन्हें कोई मेवा नहीं मिलता, फिर भी ये कोरोना संक्रमितों की सेवा करते रहे। तमाम व्यस्तताओं के बीच समय निकालते रहे। दरभंगा के जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन एसएम की यह कहानी प्रेरणा देती है। मानवता की सेवा के प्रति लगाव की वजह से ही इन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की, फिर आगे के पथ की ओर अग्रसर हुए। कोरोना संकट के दौर में एक जिलाधिकारी के साथ-साथ चिकित्सक के रूप में इनकी भूमिका सराहनीय रही।
कोरोना संक्रमण चरम पर रहा तब ये एक चिकित्सक के तौर पर लोगों को सलाह देते रहे। दवा की व्यवस्था कराने में लगे रहे। एक पैर क्वारंटाइन सेंटर, अस्पताल, आइसोलेशन सेंटर में रखा तो दूसरा आवास पर। कोरोना संक्रमितों का हाल जानना। उनकी जिंदगी को सुरक्षित करना लक्ष्य था। कोरोना खतरे के बीच बाढ़ ने जिले में दस्तक दी। वे खतरों वाले सभी स्थानों पर गए। लोगों की प्राण रक्षा की। इस दौरान स्वयं 16 सितंबर, 2020 को संक्रमित हो गए। क्वारंटाइन रहने के बाद फिर काम पर लौट गए। संक्रमण से लेकर टीका लगने तक एक ही लक्ष्य बनाया कि जिले में कोरोना से किसी की जान न जाए और संक्रमण कम हो। उसमें कामयाब भी रहे।
उद्देश्य पीडि़त मानवता की सेवा
तमिलनाडु स्थित कोयंबटूर निवासी टेक्सटाइल्स इंजीनियर मोहन और घरेलू महिला उमा देवी के पुत्र त्यागराजन ने कोयंबटूर मेडिकल कॉलेज से 2008 में एमबीबीएस पूरा किया। 2010 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा दी। पहले ही प्रयास में भारतीय पुलिस सेवा के लिए चुने गए। ओडिशा के रामगढ़ा में बतौर एएसपी अपनी सेवा दी। पढ़ाई जारी रखते हुए 2011 में दोबारा यूपीएससी की परीक्षा दी, फिर आइएएस बने और बिहार कैडर मिला। यहां के कई जिलों में विभिन्न पदों पर काम किया।दरभंगा में फरवरी, 2019 से सेवा दे रहे हैं।
चिकित्सक बनने का मतलब सिर्फ पेशा नहीं
डॉ. त्यागराजन कहते हैं कि डॉक्टर का दायित्व है कि वह संवेदनशील हो। चिकित्सक होने के नाते चीजों को वैज्ञानिक तरीके से देखता, सोचता हूं। कोरोना के वक्त लोगों को जागरूक करना और आइसोलेशन में रह रहे लोगों से संवाद करना दायित्व समझा। उस काम को लगातार कर रहा हूं।