Devkinandan Khatri death anniversary special: चंद्रकांता के लेखक का समस्तीपुर की धरती से गहरा नाता, जहां पहुंचे थे सुशांत जैसे दिग्गज
Devkinandan Khatri death anniversary special समस्तीपुर के चकमेहसी स्थित मालीनगर में हुआ था चंद्रकांता के लेखक देवकीनंदन खत्री का जन्म । दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के अलावा आधा दर्जन लोग कर चुके इस मिट्टी को नमन।
कल्याणपुर (समस्तीपुर), डॉ. विनय कुमार शर्मा। बैठ जाता हूं यहां की धरा पर, एक तिलस्म है आबोहवा में। सहेज न सके तुम उस आभा को, हम तिलक लगा धन्य हो जाते ऐसी शक्ति इस मिट्टी में। बाबू देवकीनंदन खत्री की जन्मभूमि समस्तीपुर के चकमेहसी के मालीनगर की मिट्टी कुछ ऐसा ही एहसास कराती है। तिलस्मी रचना से छाप छोडऩे वाले देवकी बाबू की यादें यहां की मिट्टी मेें हैं। हालांकि एक मायूसी है कि शहर से लेकर गांव तक में उनके नाम की एक पट्टी तक नहीं है। उस मिट्टी को सहेजा नहीं जा सका, जिसका तिलक लगाने साहित्यकार व साहित्यप्रेमी आते हैं।
जन्म | 18 जून, 1861 |
मृत्यु | 01 अगस्त, 1913 |
दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत दो साल पहले यहां पहुंचे थे। देवकी बाबू के पड़ोसी बीनू महथा बताते हैं कि उनके साथ आधा दर्जन लोग थे। सभी ने जन्मस्थल पर जाकर मिट्टी को नमन किया था। मिट्टी से तिलक किया था। उन्होंने कहा था कि चंद्रकांता पढ़कर और धारावाहिक देखकर नाटकों मेें रुझान बढ़ा था।
साहित्यकारों के लिए आदर्श गुरु है यहां की मिट्टी
योजना आयोग (अब नीति आयोग) के सदस्य रहे ध्रुवगामा के डॉ. परमानंद लाभ व प्रशासनिक पदाधिकारी विश्वनाथ पासवान के अलावा वर्ष 2011 में भारतीय नृत्य कला मंदिर के निदेशक रहे हरि उत्पल, 1986 में पूसा कृषि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. गोपालजी त्रिवेदी भी इस मिट्टी को नमन कर चुके हैं। इस साल उनकी जयंती पर मालीनगर पहुंचे डॉ. परमानंद बताते हैं कि वहां की मिट्टी साहित्यकारों के लिए आदर्श गुरु के समान है। मुखिया संघ के प्रखंड संयोजक व पूर्व मुखिया विजय कुमार शर्मा बताते हैं कि इतिहास पुरुष का गांव होने पर हमें गर्व है।
चंद्रकांता ने हिंदी को दिया बड़ा पाठक वर्ग
मोहिउद्दीननगर निवासी गीतकार ईश्वर करुण कहते हैं कि चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, कटोरा भर जैसी रचनाओं से पाठकों का संसार खड़ा करनेवाले देवकी बाबू की गौरव गाथा पर उदासीनता खटकती है। उनकी चंद्रकांता ने हिंदी को जितना बड़ा पाठक वर्ग दिया, शायद ही किसी अन्य रचना या रचनाकार ने दी होगी। उपन्यासकार अश्विनी कुमार आलोक का कहना है कि उनकी जन्मभूमि को भुला देना दुखद है।
1984 में बिक गया जन्मस्थल
देवकीनंदन खत्री समस्तीपुर में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद गया के टिकारी एस्टेट में नौकरी करने लगे थे। 1880 के आसपास काशी जा बसे। ग्रामीण बीनू महथा बताते हैैं कि देवकी बाबू की स्वजन चंपा कुंवरी ने गांव के पवित्र साह को 1984 में 12 क_ा पुश्तैनी जमीन बेच दी थी। यहां अब खेती होती है। इसी मिट्टी को माथे पर लगाने के लिए लोग पहुंचते हैं।