करोड़ों की लागत के बावजूद वाल्मीकिनगर में क्षमता के मुताबिक बिजली उत्पादन नहीं
गंडक के जलस्तर में वृद्धि व नहर क्षतिग्रस्त होने से वाल्मीकिनगर में लगीं पांच यूनिटों में से चार से उत्पादन ठप। कुल 18 मेगावाट क्षमता की जगह एक यूनिट से महज एक मेगावाट उत्पादन एक यूनिट तो लगने के बाद से चली ही नहीं।
वाल्मीकिनगर (पश्चिम चंपारण), [तूफानी चौधरी]। वाल्मीकिनगर में 26 साल पहले बने हाइड्रो प्रोजेक्ट अपनी क्षमता के अनुरूप बिजली का उत्पादन नहीं कर रहे। शुरू होने के बाद से ही यह स्थिति है। यहां पांच में एक यूनिट तो शुरू ही नहीं हो सकी, जबकि तीन यूनिटेें काफी समय से बंद हैं। उन्हें शुरू करने की दिशा में कुछ नहीं किया जा रहा। कुल 18 मेगावाट क्षमता की जगह महज एक मेगावाट ही उत्पादन हो रहा है। नेपाल से निकलने वाली गंडक नदी से सिंचाई के लिए वाल्मीकिनगर में बराज बनाया गया है। यहां से पश्चिमी नहर और तिरहुत नहर निकली हैं। तिरहुत नहर से तीन उप नहरें निकली हैं। इन्हीं में से एक पूर्वी गंडक नहर पर कोतराहां में 1995 में जलविद्युत परियोजना लगाई गई। पांच-पांच मेगावाट की तीन यूनिटें हैं। वहीं त्रिवेणी संयोजक नहर पर डेढ़-डेढ़ मेगावाट की दो यूनिटें लगी हैं। इन पर तकरीबन एक अरब रुपये खर्च किए गए हैं। गंडक नहर की दो यूनिटों से बिजली उत्पादन तो शुरू हुआ, लेकिन तीसरी से आज तक उत्पादन शुरू ही नहीं हो सका है। वहीं, गंडक के जलस्तर में अत्यधिक वृद्धि एवं नहर क्षतिग्रस्त होने से बीते 27 अगस्त को दो अन्य यूनिटों से भी बिजली उत्पादन ठप हो गया। त्रिवेणी संयोजक नहर की एक यूनिट भी उसी दिन बंद हो गई। इस समय सिर्फ एक यूनिट से महज एक मेगावाट उत्पादन हो रहा है।
इस कारण कम उत्पादन
इस पावर प्लांट को चलाने के लिए गंडक बराज से अतिरिक्त पानी नहीं दिया जाता। डिविजन एक बेतिया से सिंचाई के लिए डिमांड आने पर ही पानी छोड़ा जाता है। उसी से यूनिटों का संचालन होता है। पूर्वी गंडक नहर की तीनों यूनिटों के संचालन के लिए रोजाना लगभग 10 हजार, 500 क्यूसेक पानी की जरूरत होती है, जबकि दो से ढाई हजार ही उपलब्ध हो पाता है। वहीं, त्रिवेणी संयोजक नहर की यूनिट के लिए 2500 क्यूसेक पानी की जरूरत होती है, लेकिन महज 500 से 600 क्यूसेक ही जलापूॢत होती है।
इस योजना से खत्म होगी पानी की समस्या
इन संयंत्रों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो, इसके लिए 1995 में ही स्कैप चैनल बनाने की योजना बनी। इसके अनुसार यू आकार का एक चैनल बनना था, जो गंडक बराज से छोड़े गए पानी को टरबाइन से आगे जाने के बाद दोबारा गंडक बराज में पहुंचा देता। इससे पानी का दोबारा सदुपयोग होता और आगे पानी नहीं जाने से नहर या फसलों को नुकसान भी नहीं होता। इसके लिए भूमि सर्वे से आगे काम नहीं बढ़ा। बिहार स्टेट हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन, वाल्मीकिनगर के परियोजना प्रबंधक त्रिपुरारी ने बताया कि बिजली यूनिटों के संचालन में जो दिक्कत है, उसे दूर किया जाएगा। जल्द ही इसका संचालन शुरू होगा।