मुजफ्फरपुर में खस की खेती ने इस तरह बदल दी एक गांव की तस्वीर, इसके तेल की मांग पटना के अलावा दिल्ली और मुंबई तक
दो दर्जन किसान सालाना एक लाख कर रहे आमदनी। खस की कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती हैं। इसके बाद तेल निकाला जाता है। एक एकड़ में खेती करने पर 60-70 हजार रुपये लागत आती है। 10-12 लीटर तेल निकलता है। तेल अभी 14 से 16 हजार रुपये बिक रहा है।
मुजफ्फरपुर, [ अनिल कुमार झा]। खस की खेती से बीते नौ वर्षों में बंदरा गांव की तस्वीर बदल गई है। दो दर्जन किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर गई है। अब पशुओं और बाढ़ के पानी में डूबने से फसल बर्बाद होने की चिंता नहीं है। उनकी जिंदगी में खस से खुशबू बिखर रही है।
पौधा उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लाए
बंदरा प्रखंड के बंदरा गांव निवासी रत्नेश ठाकुर पहले पारंपरिक फसलों की खेती करते थे। गेहूं व धान की फसल कभी नीलगाय बर्बाद कर देती थीं तो कभी मौसम की भेंट चढ़ जाती थी। ऐसे में उन्हें खस की खेती की जानकारी हुई। वर्ष 2011 में इसका पौधा उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लाए। पांच कट्ठा जमीन में लगाया। दो वर्षों में ही इससे अच्छी आमदनी होने लगी। धीरे-धीरे कर 30 बीघा में इसकी खेती करने लगे। उन्हें देखकर एक-एक कर गांव के दो दर्जन से अधिक किसान तकरीबन 50 एकड़ में इसकी खेती कर रहे हैं। खस की कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती हैं। इसके बाद तेल निकाला जाता है। एक एकड़ में खेती करने पर 60-70 हजार रुपये लागत आती है। 10-12 लीटर तेल निकलता है। 60 फीसद खस कूलर के लायक बचता है। सालाना 80 हजार से एक लाख रुपये प्रति एकड़ मुनाफा होता है।
रत्नेश बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले तेल 20-25 हजार प्रति लीटर बिकता था, अभी 14 से 16 हजार रुपये बिक रहा है। इसकी सप्लाई पटना के अलावा दिल्ली, मुंबई और यूपी में भी होती है। तेल को मुख्य रूप से आयुर्वेदिक व यूनानी दवा के साथ सेंट बनाने वाली कंपनियां खरीदती हैं।
आई आर्थिक मजबूती
नसीर अहमद बताते हैं कि वे सात साल पहले मजदूरी करते थे। अभी लीज पर 20 बीघा में खेती कर रहे हैं। आर्थिक संकट दूर हो गया है। संजय कुमार पहले 15 सौ रुपये पर प्राइवेट शिक्षक की नौकरी करते थे। परिवार चलाना मुश्किल था। दो बीघा में जब से खस की खेती शुरू की, परेशानी दूर हो गई। उप प्रमुख उपेंद्र राय बताते हैं खस से अनाज, दलहन और तेलहन की खेती पर निर्भरता खत्म हुई है। प्रखंड कृषि पदाधिकारी अवधेश कुमार चौधरी कहते हैं कि इस तरह की व्यावसायिक खेती अच्छी है। इसकी बहुत देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती।