दरभंगा में तालाबों के स्वरूप के साथ छेड़छाड़, करोड़ों के भाव बिक रही जमीन
Darbhanga news शहरी क्षेत्र के ऐतिहासिक तालाबों पर गड़ी है भू-माफियाओं की नजर पूर्व में खानापूर्ति के नाम पर नगर निगम ने चिन्हित लोगों को थमाया नोटिस कुछ पर हुई कार्रवाई बंद हुआ अभियान संबंधित अंचलाधिकारी सरकारी भूमि के रकबे से अनजान तालाबों का सिमटता जा रहा क्षेत्रफल।
दरभंगा, जासं। तालाबों के शहर से नाम से प्रसिद्ध दरभंगा जिला आज अपना अस्तित्व बचाने की कगार पर है। कारण- तालाबों को भू-माफियाओं की नजर लग गई है। इसकी बानगी पहले तालाबों के वर्तमान ढ़ाचे को देखकर लगाई जा सकती है। शहरी क्षेत्र में बचे तालाबों के ढ़ाचे को गौर से देखे तो पता चलेगा कि दिन-प्रतिदिन तालाब चारों ओर से सिकुड़ती जा रही है। तालाबों के किनारे पहले कचरा फेंका जाता है। फिर उसे फैलाया जाता है। बाद में मिट्टी डाली जाती है और अंत में बहुमंजिला इमारतों का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है। हो-हंगामा इसलिए नहीं होता क्यूंकि ये तालाब किसी की निजी संपति नहीं है।
यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक तालाबों के एक बड़े भू-भाग को नहीं भर दिया जाता। इस खेल में भू-माफिया से लेकर अधिकारी और संबंधित विभाग के कर्मचारी भी शामिल है। यहीं कारण हैं कि वर्तमान में शहर में जितने भी सरकारी तालाब है, उनका स्वरूप बदल गया है। यदि तालाबों का खेसरा निकाला जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि कई सरकारी जमीन व तालाबों में से अधिकांश के कागजात गायब है। यहां तक की संबंधित अंचलाधिकारी, जो सरकारी जमीन के संरक्षक होते है, वे भी इसके प्रति उदासीन बने हुए है। कारण जो भी हो, लेकिन बिना सरकारी कर्मी के संलिप्ता के यह संभव नहीं है। शहर के छोटे तालाबों की बात तो दूर, शहर के ऐतिहासिक पांच तालाबों पर भी भू-माफियाओं की नजर है। इसमें हराही, दिग्धी, गंगासागर, मिर्जा खां और लक्ष्मीसागर पोखर शामिल है।
इन तालाबों के चारों तरफ अवैध भवनों का निर्माण करा लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नगर निगम ने कई बार तालाबों की मापी कराई। अतिक्रमणकारियों को चिन्हित कर नोटिस दिया। खानापूर्ति के तहत तीन से चार बार बुलडोजर भी चलाया गया। लेकिन, एक-दो मकानों को छोड़कर अन्य पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। नतीजा, अतिक्रमणकारियों के हौंसले बुलंद होते चले गए और तालाबों का क्षेत्रफल सिमटता चला गया।
मखाना व सिंघाड़ा की खेती को लगी भू-माफियाओं की नजर
तालाबों के शहर का फायदा जिले को मखाना, मछली और सिंघाड़ा की खेती से मिल रहा था। लेकिन, जब से तालाब भू-माफियाओं की पंसद बने है, इसकी खेती को पहले ग्रहण लगना शुरू हुआ, बाद में ये बंदी की कगार तक पहुंच गए। प्रशासनिक उदासीनता और स्थानीय लोगों की विवशता से भू-माफिया फलते-फूलते चले गए। यहां तक की जो तालाब मस्त्य विभाग के अधीन तालाब है, उनकी देखरेख भी संबंधित विभाग नहीं कर पा रहा है। केवल राजस्व से इन विभाग को मतलब रह गया है।