SAMASTIPUR: विभूतिपुर में चायवाला का बेटा बना दारोगा, बदन की शोभा बढ़ाएगी खाकी

मनीष विभिन्न अवसरों पर हलवाई का काम किया है। दुकान के भीतर पढ़ाई कर यह मुकाम हासिल किया है। मनीष के माता - पिता अपने घर के समीप हीं सीमान चौक पर वर्ष 2001 से चाय नाश्ता की दुकान चलाते हैं।

By Murari KumarEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 05:38 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 05:38 PM (IST)
SAMASTIPUR: विभूतिपुर में चायवाला का बेटा बना दारोगा, बदन की शोभा बढ़ाएगी खाकी
अपनी दुकान पर चाय बनाता मनीष कुमार पंडित

विभूतिपुर (समस्तीपुर), जासं। खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है बेलसंडीतारा वार्ड 7 निवासी दिनेश पंडित और चंदर देवी के पुत्र मनीष कुमार कुमार पंडित ने। इसने दारोगा बनकर प्रदेश में विभूतिपुर का नाम रोशन किया है। अब, बदन पर खाकी वर्दी शोभेगी और चेहरे की चमक बढ़ाएगी। दिलचस्प बात तो यह है कि मनीष विभिन्न अवसरों पर हलवाई का काम किया है। दुकान के भीतर पढ़ाई कर यह मुकाम हासिल किया है। मनीष के माता - पिता अपने घर के समीप हीं सीमान चौक पर वर्ष 2001 से चाय नाश्ता की दुकान चलाते हैं। लोगों में चर्चा का विषय है कि जोश, जज्बे और मेहनत के समक्ष मुफलिसी का हिमालय बौना पड़ गया है।

 अंतिम रूप से दारोगा में चयन होने की खबर ने लोगों को बधाई देने मेें जुटे है। लोग कहते हैं कि जब सुख सुविधाओं से संपन्न युवा अपनी कीमती समय को आत्मसंतुष्टि में बिता रहे होते हैं। ऐसे में सुविधाओं से वंचित इस छात्र ने ²ढ़ संकल्पों के साथ सभी प्रकार की रुढिय़ों को तोड़ते हुए करियर की बुलंदियों को हासिल किया है। यह जीवंत उदाहरण दूसरों के लिए प्रेरणादायी है। मनीष ने रघुनंदन सेठ उच्च विद्यालय सिंघियाघाट से वर्ष 2011 में मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी, जनता महाविद्यालय सिंघिया बुजुर्ग से वर्ष 2013 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी और वर्ष 2016 में ग्रेजुएशन की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की है। दुकानदारी का काम देखते हुए आसपास के युवाओं के साथ संजीत स्मृति क्लब से तैयारी करते रहे। इस क्रम में भारतीय रेल के ग्रुप डी और एएलपी/टेक्निशियन में चूक गए। मगर, भारतीय रेलवे में कार्यरत चचेरे भाई सुधीर कुमार पंडित से प्रेरणा लेकर हिम्मत नहीं हारी। मार्गदर्शक सचिन कुमार, जितेन्द्र शर्मा, शुभम कुमार, अजय रंजन आदि के खुशियों का ठिकाना नहीं है। मनीष के माता - पिता की मानें तो लाखों मुसीबतें झेलकर पुत्र की पढ़ाई करवाने के बाद आज सारे क्लेश मिट रहे।

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