नवरुणा मामला : आस जगाती सुप्रीम कोर्ट की डेडलाइन, अब तक निराश करती रही सीबीआइ Muzaffarpur News
सात साल तीन जांच एजेंसी आठ डेडलाइन नतीजा सिफर। पिछले 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से सीबीआइ को मिली है तीन माह की नई डेडलाइन। सातवीं डेडलाइन में भी चुप्पी साधी रही सीबीआइ।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। नवरुणा के अपहरण की घटना को 18 सितंबर को सात साल पूरे हो जाएंगे। साढ़े पांच साल से इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है। जांच पूरी करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उसे अब तक आठ डेडलाइन दी है। तीन माह की आठवीं डेडलाइन उसे 21 अगस्त को मिली है। सुप्रीम कोर्ट से मिली अब तक की हर डेडलाइन एक आस जगाती है कि शायद इस अवधि में जांच पूरी हो जाए, लेकिन सीबीआइ की कार्रवाई निराश करने वाली होती है।
अब तक यही होता आया है कि डेडलाइन पूरे होने से कुछ दिन पहले सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करती है। इसमें जांच पूरे करने के लिए लिए छह माह अतिरिक्त समय देने की प्रार्थना की जाती है। इस अर्जी में आगे की जांच करने की बिंदु का भी जिक्र होता है। ऐसा लगता है कि इन बिंदुओं पर जांच होते ही पूरा मामला सामने आ जाएगा। साढ़े पांच साल में मिले आठ डेडलाइनों में नतीजा सिफर ही रहा।
तीन जांच एजेंसियां, तीन सौ से अधिक लोगों से पूछताछ
नवरुणा मामले की जांच तीन एजेंसियों ने की। शुरू में इस मामले की जांच नगर थाना पुलिस ने की। उसने तीन आरोपितों को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था। इसके बाद मामले की जांच सीआइडी को दी गई। नतीजा सामने नहीं आने पर सरकार ने सीबीआइ को जांच की जिम्मेदारी सौंपी। फरवरी 2014 से इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है। इस दौरान सीबीआइ ने तीन सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की। जांच को गति देेने के लिए सीबीआइ को शहर में कैंप कार्यालय तक खोलना पड़ा। एक दर्जन से अधिक लोगों का पॉलीग्राफी व नार्को टेस्ट कराया गया।
सातवीं डेडलाइन में भी चुप्पी साधी रही सीबीआइ
पिछले अगस्त में पूरी हुई तीन महीने की सातवीं डेडलाइन में सीबीआइ चुप्पी साधी रही। उसकी कोई गतिविधि सामने नहीं आई। जबकि, सातवीं डेडलाइन के लिए दाखिल अर्जी में उसने दावा किया था कि अपहरण के बाद 50 दिनों बाद तक नवरुणा जीवित थी। अगर उसे छह माह की डेडलाइन मिले तो उसे नवरुणा को छुपाने वाले व अपराधियों को संरक्षण देने वालों का पता लगा सकती है। एक पुलिस अधिकारी सहित तीन का नार्को टेस्ट कराने को लेकर भी उसे समय की दरकार थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने उसे तीन माह की डेडलाइन दी थी। आठवीं डेडलाइन के लिए दाखिल अर्जी में भी सीबीआइ का यही तर्क था।
विशेष कोर्ट ने प्रगति-प्रतिवेदन दाखिल करने का दे रखा आदेश
मुजफ्फरपुर स्थित विशेष कोर्ट ने सीबीआइ को इस मामले की जांच को लेकर प्रगति-प्रतिवेदन दाखिल करने का आदेश दे रखा है। नवरुणा की मां की अर्जी पर विशेष कोर्ट ने यह आदेश दिया था। हालांकि,अब तक सीबीआइ की ओर से विशेष कोर्ट में प्रगति प्रतिवेदन दाखिल नहीं किया गया था। लंबे समय से सीबीआइ की ओर से कोई अधिकारी विशेष कोर्ट में तारीखों पर पहुंच भी नहीं रहे।
यह है मामला
18 सितंबर 2012 की रात नगर थाने के जवाहरलाल रोड स्थित आवास से सोई अवस्था में नवरुणा का अपहरण कर लिया गया। इसके ढाई माह बाद उसके घर के निकट नाले से एक मानव कंकाल मिला। डीएनए टेस्ट से यह कंकाल नवरुणा का साबित हुआ। इस मामले की जांच पहले पुलिस व बाद में सीआइडी ने की। कोई परिणाम नहीं मिलने पर सीबीआइ को जांच सौंपी गई। 2014 से सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही।
सात साल, नो रिजल्ट : अतुल्य चक्रवर्ती
नवरुणा के पिता अतुल्य चक्रवर्ती कहते हैं कि सात साल लेकिन नो रिजल्ट। साढ़े पांच साल से सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही है। डेडलाइन पर डेडलाइन ले रही है, लेकिन जांच पूरी नहीं हो पा रही है। आखिर इसके पीछे क्या राज है। देश की इतनी बड़ी जांच एजेंसी आखिर किसके सामने कमजोर हो जा रही है। बहुत पहले सीबीआइ के एक बड़े अधिकारी ने उन्हें बताया था कि इसके पीछे बड़े-बड़े लोग हैं। वे कौन हैं उसे सीबीआइ सामने क्यों नहीं ला रही है। सीबीआइ की कार्यशैली निराश करने वाली है। बस सुप्रीम कोर्ट व भगवान पर भरोसा रह गया है।
नवरुणा नहीं मिली, क्या उसे न्याय भी नहीं मिलेगा : अभिषेक
नवरुणा मामले की सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लडऩे वाले दिल्ली विवि के कानून के छात्र रहे अभिषेक रंजन कहते हैं कि नवरुणाा नहीं मिली तो क्या उसे न्याय भी नहीं मिलेगा। फिर सोचता हूं कि देश में इतना अन्याय नहीं है। पिछली दो तारीखों पर सुप्रीम कोर्ट का रुख देखकर ऐसा लगा कि वह इस मामले में काफी गंभीर है। इतने बड़े मामले को लेकर मुजफ्फरपुर के लोगों की चुप्पी परेशान करने वाली है। उनकी कानूनी लड़ाई का एक ही मकसद है कि नवरुणा के अपराधियों को सख्त सजा मिले। जिससे कोई दोबारा इस तरह के अपराध करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।