परंपरा के चाक पर रोशन दीयों का कारोबार, उत्तर बिहार बना समृद्ध बाजार

02 से ढाई करोड़ तक के कारोबार की उम्मीद कुम्हारों में देखी जा रही खुशी। चाइनीज संस्कृति से बढ़ती दूरी और स्वदेशी के अपनापन के बीच मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग। दीपावली से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक उत्तर बिहार में दो करोड़ दीया बनाने का लक्ष्य।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 12:18 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 12:18 PM (IST)
परंपरा के चाक पर रोशन दीयों का कारोबार, उत्तर बिहार बना समृद्ध बाजार
01 से डेढ़ लाख औसतन दीयों का प्रतिदिन उत्तर बिहार में हो रहा निर्माण। फोटो- जागरण

मुजफ्फरपुर, [ अजय पांडेय]। इलेक्ट्रानिक क्रांति के बीच टिमटिमाते दीये...अंधियारे को धकेलते, परंपरा और संस्कृति का लौ स्तंभ। चाइनीज संस्कृति से बढ़ती दूरी और स्वदेशी के अपनापन के बीच फल-फूल रही देश की 'मिट्टीÓ। कभी चाक तो कभी सांचे में ढलती हजारों परिवारों के जीवन को रोशन कर रही। इस दीपावली इसका (दीया निर्माण) कारोबार समृद्ध बाजार का रूप ले चुका है। दीयों की बढ़ती मांग देख कुम्हारों के चाक की स्पीड तेज हो गई है। उत्तर बिहार (मुजफ्फरपुर, दरभंगा, चंपारण, समस्तीपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी व शिवहर) में प्रतिदिन औसतन एक से डेढ़ लाख दीयों का निर्माण हो रहा है। 

पिछले साल की तुलना में दोगुने दीयों का निर्माण

उत्तर बिहार में करीब 20 हजार परिवार दीया निर्माण से जुड़े हैं। इनमें कुछ पारंपरिक तो कुछ इलेक्ट्रिक चाक से दीयों को बना रहे। दीपावली से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक दो करोड़ दीया बनाने का लक्ष्य है। इनसे दो से ढाई करोड़ तक के कारोबार की उम्मीद है। प्रजापति समाज संगठन, समस्तीपुर के प्रमोद पंडित बताते हैं कि इस बार पिछले साल की तुलना में दोगुने से अधिक दीयों का निर्माण हो रहा है। कोरोना के बाद बहुत तेजी से लोगों का चाइनीज बल्बों और रंग-बिरंगी लडिय़ों से मोहभंग हुआ है।

दोगुना हुआ मिट्टी का भाव

शिवहर के दशरथ प्रजापति कहते हैं, दो साल में मिट्टी का भाव दोगुना हो गया। बाढ़ और बारिश ने और महंगाई बढ़ा दी है। साल 2018 में दो से तीन क_े का जो खेत छह हजार रुपये में मिला था, अब 12 हजार देना पड़ रहा है। उसमें भी खेत मालिक मुश्किल से दो लेयर मिट्टी की कटाई करने दे रहे हैं। कारीगरी में लगनेवाला खर्च भी बढ़ गया है। मधुबनी के कुम्हार अशोक बताते हैं कि दीया निर्माण के लिए काली और चिकनी मिट्टी की जरूरत होती है। एक दशक पहले तक शहर व इससे सटे गांव के कुम्हार स्थानीय जीवछ नदी के किनारे खोदाई कर मिट्टी निकालते थे। नदियों के किनारे मिट्टी काटने पर रोक के बाद मिट्टी की खरीद होने लगी। पिछले वर्ष 1500 रुपये ट्राली मिट्टी की खरीदारी की गई थी। इस वर्ष इसकी कीमत दो हजार तक पहुंच गई है।

खादी ग्रामोद्योग केंद्र के सहयोग से चल रहे चाक

मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग केंद्र की ओर से वितरित किए गए 160 चाक से हर रोज औसतन पांच से सात हजार दीयों का निर्माण हो रहा है। मंत्री वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि कन्हौली, गोशाला चौक, रामबाग, चूनाभट्टी और कालीबाड़ी इलाके में इन दिनों रात के नौ बजे तक चाक घूम रहे हैं। मुजफ्फरपुर के आयुर्वेदाचार्य डा. ललन तिवारी ने कहा कि मिट्टी के पात्र में घी या सरसों का दीपक जलाने से वातावरण में आक्सीजन का संचार होता है। अगर इसे कपूर के साथ जलाया जाए तो और प्रभावी होगा। बरसात में पनपे विषाक्त कीट-पतंगों का नाश होता है।

दीयों का औसत भाव

छोटा : 100 प्रति सैकड़ा

मध्यम : 125 प्रति सैकड़ा

बड़ा : 500 प्रति सैकड़ा

चौमुखी : 15- 40 प्रति पीस

रंगीन : 10- 30 प्रति पीस 

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