BRABU, Muzaffarpur: कुर्सी की आस में बैठे गुरुजी महीनों से कुंठित
एक गुरुजी जो मुख्यरूप से दावेदार हैं लेकिन उनको पहले ही एक समकक्ष विभाग में कुर्सी मिल चुकी है। इससे उनका दावा कमजोर पड़ रहा है। दूसरे और तीसरे का उतना जोर नहीं लेकिन चौथे स्थान वाले कुर्सी के लिए सबसे अधिक ताल ठोक रहे हैं।
मुजफ्फरपुर,[अंकित कुमार]। साहब बनने और मुख्य कुर्सी पर बैठने के लिए ज्ञानकेंद्र के कई गुरुजी महीनों से कुंठित हैं। कुर्सी खाली है, लेकिन प्रधान उनकी सुन नहीं रहे। सभी दावा कर रहे कि असल दावेदार तो वे ही हैं। कई तो इसके लिए खादीधारियों के पास जाकर वहां से प्रधान को पैरवी करा रहे। इसकी जानकारी मिलते ही दूसरे अदालत तक जाने की तैयारी कर रहे। ऐसे में प्रधान भी पेशोपेश में हैं कि आखिर कुर्सी पर किसे काबिज कराया जाए। एक गुरुजी जो मुख्यरूप से दावेदार हैं, लेकिन उनको पहले ही एक समकक्ष विभाग में कुर्सी मिल चुकी है। इससे उनका दावा कमजोर पड़ रहा है। दूसरे और तीसरे का उतना जोर नहीं, लेकिन चौथे स्थान वाले कुर्सी के लिए सबसे अधिक ताल ठोक रहे हैं। प्रधान किसकी आराधना से प्रसन्न होते हैं यह तो देखना होगा। एक के मुख्य कुर्सी पर बैठते ही उथल-पुथल होना तय है।
ज्ञानकेंद्र में जांच, जांच और सिर्फ जांच
मुख्यालय के सबसे बड़े ज्ञानकेंद्र में पिछले कई महीने से बैठक-दर-बैठक में जांच की जाए, जांच हो रही है और जांच की जाएगी जैसे शब्द हवा में तैर रहे हैं। यहां के प्रधान अपने अधीन हाकिमों के साथ जब भी बैठते हैं तो नई जांच की ही प्लाङ्क्षनग होती है। इतनी जांच कमेटियां गठित हो चुकी हैैं कि इसके सदस्य भी असमंजस में हैं। वे पहले किसकी जांच करें। कई बार तो गठित कमेटी को ही जांच क्या करनी है इसकी खबर तक नहीं रहती। एक बड़ी कुर्सी पर बैठे हाकिम ने कहा कि अब लगता है कि गठित कमेटियों की ही जांच होनी चाहिए। इसमें यह देखा जाना चाहिए कि कमेटियों को जो जिम्मा दिया गया उसमें कहां तक जांच हो पाई है। ये शब्द सुन-सुनकर सभी ऊब चुके हैं। आगे देखना होगा कि जांच रिपोर्ट में क्या सामने आता है?
हितैषी का प्रमाणपत्र
हम आपके हितैषी हैं। आपके हक के लिए सड़कों पर खून बहाने में भी पीछे नहीं हटेंगे। ज्ञानकेंद्र के गलियारे में छात्र राजनीति में अभी-अभी कदम रखने वाले एक युवा नेताजी ने इंटरनेट मीडिया पर विश्वास भरा प्रमाणपत्र जारी कर इसकी घोषणा की है। वे सुविधा शुल्क लेकर फरार हो जाने के कई मामलों में चर्चित रहे हैं। नए पदाधिकारियों से इनकी पैठ नहीं बन पाई है। इससे दिनभर गलियारे में चक्कर काटते रहते हैं। बात-बात पर आंदोलन के लिए तैयार हो जाते हैं। दूसरे शहर से आने वाले भोले-भाले शिक्षार्थी इनके केंद्र में होते हैं। उन्हें पहले समझाकर विश्वास में लेते हैं। इसके बाद पास की चाय दुकान पर जाकर रेट तय होता है। वहां नाकर-नुकर करने पर पिटाई की भी व्यवस्था कर देते हैं। स्थापित छात्र नेताओं के लिए ये परेशानी का सबब बने हैं, क्योंकि छात्र राजनीति को गंदा करने में वह सरेआम भूमिका निभा रहा है।
गांव बसा नहीं गुंडे हाजिर
तीसरे स्तर की कुर्सी पर बहाली की आहट मात्र से शिक्षा के गलियारे में पैरवी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पुराने वित्तीय सलाहकार जो पूर्व में कुर्सी पा चुके वे अपने साहब से इसमें जुगाड़ लगाने को कह रहे हैैं। वहां बात बने न बने पर बाहर में इस बहाली के लिए रेट खुल गया है। ये सलाहकार अपना हवाला दे रहे कि कैसे उन्होंने कुर्सी पा ली। यदि जेब में मन माफिक वजन हो तो वे सेङ्क्षटग करवा देंगे। उनकी मांग इस बार कुछ ज्यादा है। कह रहे कि यहां से सूबे की राजधानी तक सबको हिस्सा देना होगा। ऐसे में जेब थोड़ी अधिक ढीली करनी होगी। उनका कहना है कि एक बार सिस्टम का हिस्सा बन गए तो इससे अधिक तो चंद समय में ही जेब में आ जाएगा। यह कहावत सत्य हो रही कि गांव बसा नहीं गुंडे हाजिर...।